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ब्लॉग: महाराष्ट्र में कहीं तू चल मैं आया की तैयारी तो नहीं...!

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: August 14, 2023 09:45 IST

हाल ही में जब पुणे में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा किया, तब भी कुछ बातें हवा में उड़ने लगी थीं। हालांकि उस दौरान मंच पर एक तरफ उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे उपस्थित थे।

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ठळक मुद्देमहाराष्ट्र की राजनीति में दो नेता शरद पवार और अजित पवार की मुलाकात हमेशा नई हलचल पैदा करती है।साफ है कि राकांपा प्रमुख पवार की हमेशा से लोगों को पहेली बुझाने का अवसर देने की राजनीति रही है। इस बार भी कुछ नया नहीं है।अतीत में पवार को लेकर दोनों नेताओं की बयानबाजी काफी सुनी गई है। किंतु इस बार इतिहास दरकिनार था।

महाराष्ट्र की राजनीति में दो नेता शरद पवार और अजित पवार की मुलाकात हमेशा नई हलचल पैदा करती है। चाहे उसके पीछे कारण कोई भी हो। कभी चाची प्रतिभा पवार की कुशलक्षेम जानने की बात हो या फिर अन्य कोई पारिवारिक प्रसंग, दोनों ही नेता चर्चाओं के बाजार को गर्म करते रहते हैं। अब ताजा घटनाक्रम पुणे के व्यवसायी अतुल चोरड़िया के घर पर दोनों नेताओं के मिलने का है। 

माहौल बनाने के लिए यह भी कहा जा रहा है कि यह गुप्त भेंट थी, लेकिन मीडिया से लेकर पार्टी के अध्यक्ष जयंत पाटिल तक वहीं मौजूद थे। इसके अलावा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अनेक नेता बैठक पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे। साफ है कि राकांपा प्रमुख पवार की हमेशा से लोगों को पहेली बुझाने का अवसर देने की राजनीति रही है। इस बार भी कुछ नया नहीं है। 

हाल ही में जब पुणे में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा किया, तब भी कुछ बातें हवा में उड़ने लगी थीं। हालांकि उस दौरान मंच पर एक तरफ उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे उपस्थित थे। अतीत में पवार को लेकर दोनों नेताओं की बयानबाजी काफी सुनी गई है। किंतु इस बार इतिहास दरकिनार था। 

इन घटनाओं से स्पष्ट है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राकांपा की दूरियां अधिक नहीं हैं। शरद पवार भी उसे अस्पृश्य नहीं मानते हैं। पवार ‘इंडिया’ गठबंधन की बैठक में लगातार शामिल होते हैं और सार्वजनिक मंच से भाजपा पर टिप्पणी करने से चूकते नहीं हैं। किंतु सब कुछ संतुलित ही होता है। अब भी संभल कर कदम रखे जा रहे हैं। अभी समस्या यह है कि अजित पवार राकांपा को शिंदे सेना की तरह नहीं बनाना चाहते हैं। उन्होंने राकांपा के नेताओं को टटोल कर देख लिया है कि कोई भाजपा के साथ सरकार बनाने से नाराज नहीं है। आम तौर पर भाजपा के मुखर विरोधी छगन भुजबल, धनंजय मुंडे जैसे नेता भी शांति के साथ चल रहे हैं। ऐसे में पूरी राकांपा भी सरकार के साथ आ जाए तो नुकसान नहीं होगा। अन्यथा मत विभाजन से लोकसभा और विधानसभा चुनाव में शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना जैसा खेल बिगड़ेगा। 

इस बाबत शरद पवार नासमझ नहीं हैं, लेकिन उन्हें कोई राजनीतिक मुहूर्त नहीं मिल रहा है। इसके साथ ही यदि केंद्र में सुप्रिया सुले को मंत्री पद मिलता है तो आगे की राह सुरक्षित हो सकती है। यहां तक कि लोकसभा चुनाव में ठोस समझौता कर कम से कम पहले की तरह सीटें तो बचाई जा सकेंगी। इसी बेचैनी में अजित पवार चाचा के पास बार-बार पहुंच रहे हैं। 

हालांकि अब शरद पवार राज्यव्यापी दौरे भी नहीं कर रहे, जैसा उन्होंने पहले कहा था। इसलिए कहीं न कहीं समझौते की चाचा-भतीजे दोनों को ही आवश्यकता है। दिक्कत यह है कि लोक-लाज के आगे पहले कौन झुकता है। आने वाले दिन इसी इंतजार में कटेंगे। पल-पल की खबरें देने वालों के लिए हर घड़ी चिंता में गुजरेगी।

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