योगेश कुमार गोयल का ब्लॉगः तेज, शक्ति एवं साहस के प्रतीक संकटमोचक हनुमान
By योगेश कुमार गोयल | Published: April 16, 2022 12:16 PM2022-04-16T12:16:35+5:302022-04-16T12:16:51+5:30
आजन्म ब्रह्मचारी हनुमानजी को भगवान महादेव का 11वां अवतार अर्थात् रूद्रावतार भी माना जाता है और हिंदू धर्म में हनुमान जन्मोत्सव का विशेष महत्व है।
हिंदू पंचांग के अनुसार हनुमान जन्मोत्सव चैत्र मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इस वर्ष यह 16 अप्रैल को मनाया जा रहा है। हालांकि देश के कुछ हिस्सों में इसे कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भी मनाया जाता है। वैसे हनुमान जन्मोत्सव साल में दो बार मनाया जाता है। पहला हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को और दूसरा कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी अर्थात् नरक चतुर्दशी को। कुछ मान्यताओं के अनुसार चैत्र पूर्णिमा को प्रातःकाल में एक गुफा में हनुमान का जन्म हुआ था जबकि वाल्मीकि रचित रामायण के अनुसार हनुमान का जन्म कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को हुआ था।
मान्यता है कि चैत्र पूर्णिमा के दिन हनुमान सूर्य को फल समझकर खाने के लिए दौड़ पड़े थे और एक ही छलांग में उन्होंने सूर्यदेव के पास पहुंचकर उन्हें पकड़कर अपने मुंह में रख लिया था। जैसे ही नटखट हनुमान ने सूर्य को मुंह में रखा, तीनों लोकों में हाहाकार मच गया था। इसी तिथि को विजय अभिनंदन महोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। एक मान्यता के अनुसार कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन हनुमान की भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर माता सीता ने उन्हें अमरता का वरदान दिया था।
आजन्म ब्रह्मचारी हनुमानजी को भगवान महादेव का 11वां अवतार अर्थात् रूद्रावतार भी माना जाता है और हिंदू धर्म में हनुमान जन्मोत्सव का विशेष महत्व है। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि कहा है। हनुमान की भक्ति से हर प्रकार के संकट तुरंत हल हो जाते हैं और इसीलिए हनुमान को संकटमोचक भी कहा गया है। यह भी मान्यता है कि हनुमानजी की पूजा जीवन में मंगल लेकर आती है, इसीलिए उन्हें मंगलकारी कहा गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हनुमान ही ऐसे देवता हैं, जो सदैव अपने भक्तों की रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं।
शक्ति, तेज और साहस के प्रतीक देवता माने गए हनुमान को सभी देवताओं ने वरदान दिए थे, जिससे वह परम शक्तिशाली बने थे। दरअसल वाल्मीकि रामायण के अनुसार बचपन में हनुमान ने जब सूर्यदेव को फल समझकर अपने मुंह में रख लिया था तो पूरी सृष्टि में हाहाकार मच गया था। तब घबराकर देवराज इंद्र ने पवनपुत्र हनुमान पर अपने वज्र से प्रहार किया, जिसके बाद हनुमान बेहोश हो गए। यह देख पवनदेव ने क्रोधित होकर समस्त संसार में वायु का प्रवाह रोक दिया, जिससे संसार में हाहाकार मच गया। तब परमपिता ब्रह्मा हनुमान की बेहोशी को दूर कर उन्हें होश में लाए। उसके बाद सभी देवताओं ने दिल खोलकर उन्हें वरदान दिए। सूर्यदेव ने उन्हें अपने प्रचंड तेज का सौवां भाग देते हुए कहा कि जब इस बालक में शास्त्र अध्ययन करने की शक्ति आएगी, तब मैं ही इसे शास्त्रों का ज्ञान दूंगा, जिससे यह अच्छा वक्ता होगा और शास्त्रज्ञान में इसकी बराबरी करने वाला कोई नहीं होगा।
परमपिता ब्रह्मा ने उन्हें दीर्घायु, महात्मा और सभी प्रकार के ब्रह्मदंडों से अवध्य होने, इच्छानुसार रूप धारण करने, जहां चाहे वहां जा सकने, अपनी गति को अपनी इच्छानुसार तीव्र या मंद करने का वरदान दिया। देवराज इंद्र ने कहा कि यह बालक मेरे वज्र द्वारा भी अवध्य रहेगा और देव शिल्पी विश्वकर्मा ने भी उन्हें चिंरजीवी तथा अपने बनाए सभी शस्त्रों से अवध्य रहने का वर प्रदान किया। ऐसे ही वरदान उन्हें भगवान शिव, कुबेर, जलदेवता वरुण, यमराज इत्यादि ने भी दिए। इंद्र का वज्र बालक मारुति की हनु (ठोड़ी) पर लगा था, जिससे उनकी ठोडी टूट गई थी, इसीलिए उन्हें हनुमान कहा जाने लगा।