विश्व वन्यजीव दिवस 2025ः वनों का विनाश और विलुप्त होती प्रजातियां
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: March 3, 2025 06:02 IST2025-03-03T06:01:44+5:302025-03-03T06:02:43+5:30
World Wildlife Day 2025: आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों के कारण प्रजातियों की घटती कमी के खिलाफ लड़ने की जरूरत की याद दिलाता है.

सांकेतिक फोटो
देवेंद्रराज सुथार
प्रतिवर्ष तीन मार्च को पृथ्वी पर मौजूद वन्यजीवों और वनस्पतियों की सुंदरता और विविधता के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व वन्यजीव दिवस मनाया जाता है. विश्व वन्यजीव दिवस का उद्देश्य वैश्विक स्तर पर वन्यजीवों के संरक्षण की दिशा में जागरूकता, सहयोग और समन्वय स्थापित करना है. साथ ही ये दिन वन्यजीवों और वनस्पतियों के संरक्षण से पृथ्वी पर रहने वाले लोगों को मिलने वाले लाभ के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए भी मनाया जाता है. इसके अलावा यह दिन हमें वन्यजीवों के खिलाफ होने वाले अपराध और मानव द्वारा उत्पन्न विभिन्न व्यापक आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों के कारण प्रजातियों की घटती कमी के खिलाफ लड़ने की जरूरत की याद दिलाता है.
दरअसल, जैवविविधता विलोपन के भविष्य के सारे अनुमान इस गणित पर आधारित हैं कि यदि किसी वन्यजीव के प्राकृतिक वास को 70 प्रतिशत कम कर दिया जाए तो वहां निवास करने वाली 50 प्रतिशत प्रजातियां विलोपन की स्थिति में पहुंच जाएंगी. विलोपन के इसी भूगोल से ज्ञात होता है कि यदि विनाश की गति यथावत रही तो आने वाले 25 वर्षों में 10 प्रतिशत प्रजातियां पृथ्वी पर विलुप्त हो जाएंगी.
विश्व संसाधन संस्थान, वाशिंगटन के एक प्रतिवेदन के आधार पर अगली आधी सदी के दौरान प्रजाति विलोपन का सबसे बड़ा अकेला कारण कटिबंधी वनों का विनाश होगा. उल्लेखनीय है कि पृथ्वी पर कटिबंधी वनों का प्रतिशत क्षेत्रफल केवल 7 ही है, और उसमें संपूर्ण की 50 प्रतिशत से भी अधिक वनस्पति प्रजातियां पाई जाती हैं.
ये वन वनस्पति ही नहीं अपितु वन्य प्रजातियों के संदर्भ में और अधिक समृद्ध हैं. एक आकलन के आधार पर विश्व की कुल वन्य प्रजाति के विलोपन से प्रकृति के संतुलन में व्यापक प्रभाव पड़ता है. प्रकृति की व्यवस्था में मानव नगण्य है. कहने का आशय यह है कि यदि पृथ्वी पर मानव विलुप्त हो जाएं तो प्राकृतिक व्यवस्था में कहीं भी किसी भी प्रकार का असंतुलन नहीं होगा.
मानव के लिए यह कितनी बड़ी विडंबना है. प्रकृति में वनस्पति प्रजाति व वन्य प्राणी प्रजातियों के इस अति-संवेदनशील संतुलन से बहुत सोच-विचारकर छेड़छाड़ करनी चाहिए अन्यथा इसके घातक प्रभाव से मानव जाति का बच पाना संभव नहीं होगा.