डॉ. शिवाकांत बाजपेयी का ब्लॉग: संस्कृति की संवाहक महिलाएं
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 8, 2019 10:29 AM2019-03-08T10:29:57+5:302019-03-08T10:29:57+5:30
निया के अनेक भागों में मातृ-सत्तात्मक परिवेश दिखाई देता है जो कि महिलाओं को उच्चतम सम्मान देने की परंपरा को प्रदर्शित करता है। वर्तमान परिवेश में भी अनेक महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में अधिक सफलताएं अर्जित की हैं।
प्रतिवर्ष पूरी दुनिया में 8 मार्च को महिला दिवस मनाया जाता है किंतु हमारी भारतीय संस्कृति में नारी का सम्मान हमेशा सर्वोच्च प्राथमिकता पर रहा है और वैसे भी स्त्नी, नारी, महिला और मां ये कुछ ऐसे शब्द हैं जिनके बिना दुनिया की मानव सभ्यता का इतिहास अधूरा है। और मानव जाति ही क्यों देवताओं का भी वर्णन अधूरा ही रहता है क्योंकि देवियों के बिना देवताओं का अस्तित्व ही अपूर्ण होता है। इसीलिए भारतीय परिदृश्य में देवताओं के नामोल्लेख के पूर्व देवियों का नाम अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है जैसे–लक्ष्मीनारायण, सीताराम, राधाकृष्ण, उमा-महेश्वर आदि। बल, बुद्धि और ऐश्वर्य की प्रदाता भी देवियां ही हैं जिन्हें क्रमश: दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी के नाम से जाना जाता है। यही नहीं हमारे देश में तो स्त्रियों की पूजा का विधान है। इससे भी बढ़कर हमारे देश को ही माता का दर्जा दिया गया है और इसे भारत माता के नाम से पुकारा जाता है।
सृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही महिलाओं की महती भूमिका को देखते हुए जो आदर एवं सम्मान उन्हें प्रदान किया गया वह किसी अन्य को प्राप्त नहीं है। अपाला, लोपामुद्रा जैसी महिलाओं को तो वैदिक ऋ षि का दर्जा प्राप्त है जिन्होंने वेदों की ऋचाओं की रचना की। आपने कभी सोचा है कि बेटों के नाम से पहले मां का नाम पहले लिखने की परंपरा कब से प्रारंभ हुई। रोचक यह है कि पैठण (प्राचीन प्रतिष्ठान) हमारे सातवाहन राजाओं की लगभग दो हजार साल पहले राजधानी हुआ करती थी, वहां के सातवाहन शासक गौतमीपुत्न सातकर्णी, वाशिष्ठीपुत्न पुलमावी तथा वाशिष्ठीपुत्न सातकर्णी के नामों के पहले उनकी माताओं का नाम मिलता है।
इसी प्रकार त्याग और बलिदान की सर्वोच्च गाथाएं भी महिलाओं के खाते में ही दर्ज हैं। भारतीय इतिहास में पन्ना धाय द्वारा अपने स्वामी के पुत्न के प्राणों की रक्षा हेतु अपने ही बेटे को न्यौछावर कर देने की रोंगटे खड़े कर देने वाली बलिदानी गाथा दर्ज है और ऐसी अद्भुत त्याग की मिसालें कहीं और नहीं मिलती हैं।
उल्लेखनीय है कि दुनिया के अनेक भागों में मातृ-सत्तात्मक परिवेश दिखाई देता है जो कि महिलाओं को उच्चतम सम्मान देने की परंपरा को प्रदर्शित करता है। वर्तमान परिवेश में भी अनेक महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में अधिक सफलताएं अर्जित की हैं। यहां पर उद्देश्य तुलना का न होकर स्त्रियों की अपरिमित क्षमताओं का है उपरोक्त तथ्यों से प्रमाणित होता है कि महिलाएं हर युग में अपने कार्यो से संस्कृति की संवाहक रही हैं।