थर्मल कैमरों की मदद से बाघों को बचाने की कवायद सफल होगी!
By प्रमोद भार्गव | Published: June 30, 2019 08:04 PM2019-06-30T20:04:10+5:302019-06-30T20:04:10+5:30
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के प्रमुख रहे राजेश गोपाल ने तब कैमरा ट्रैप पद्धति को ही सही तरीका मानते हुए बाघों की गिनती और निगरानी के बाबत उपाय किए थे. गौरतलब है जब 2009-10 में पन्ना बाघ परियोजना से बाघों के गायब होने की खबरें आ रही थीं तब 2008 में वन विभाग ने कैमरे से फोटो लेकर बताया था कि पन्ना में 16 से लेकर 32 बाघ हैं.
मध्य प्रदेश का वन विभाग बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान और रातापानी अभ्यारण्य में बाघों की निगरानी और सुरक्षा की दृष्टि से थर्मल कैमरे लगाने जा रहा है. इन कैमरों से अन्य वन्य प्राणियों के अलावा शिकारी, लकड़ी माफिया और गश्ती दलों पर भी निगाह रखने का दावा किया जा रहा है. लेकिन अब तक जिन अभ्यारण्यों में कैमरे लगाकर बाघों की निगरानी एवं गणना के उपाय किए गए हैं, वे कसौटी पर खरे नहीं उतरे हैं. दरअसल कई उद्यानों के जंगल इतने विस्तृत, दुर्गम व सघन हैं कि इस पूरे क्षेत्र को कवर करने के लिए इतनी बड़ी संख्या में न तो कैमरे लगाना मुमकिन है और न ही निगरानी रखना मुमकिन है. इनका रखरखाव भी एक कठिन काम है.
बाघों की गिनती के लिए ‘कैमरा ट्रैपिंग’ प्रणाली उपयोग में लाई गई थी. इसकी शुरुआत दक्षिण भारत के पार्को में की गई थी. इसके लिए बाघ के रहवासी क्षेत्रों में कैमरे लगाए गए. इसमें जंगली बाघों की तस्वीरें लेकर उनकी गणना की जाती थी. प्रत्येक बाघ के शरीर पर धारियों का प्रारूप अलग-अलग होता है. यह एक महंगी आकलन प्रणाली थी. पर यह बाघों के पैरों के निशान लेने की तकनीक से कहीं ज्यादा सटीक थी. इसके तहत कैप्चर और री-कैप्चर की तकनीकों वाले परिष्कृत सांख्यिकी उपकरणों और प्रारूप की पहचान करने वाले सॉफ्टवेयर का प्रयोग करके बाघों की विश्वसनीय संख्या का पता लगाने की शुरुआत हुई.
इस तकनीक द्वारा गिनती सामने आने पर बाघों की संख्या नाटकीय ढंग से घट गई. राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के प्रमुख रहे राजेश गोपाल ने तब कैमरा ट्रैप पद्धति को ही सही तरीका मानते हुए बाघों की गिनती और निगरानी के बाबत उपाय किए थे. गौरतलब है जब 2009-10 में पन्ना बाघ परियोजना से बाघों के गायब होने की खबरें आ रही थीं तब 2008 में वन विभाग ने कैमरे से फोटो लेकर बताया था कि पन्ना में 16 से लेकर 32 बाघ हैं. इस गणना में 50 प्रतिशत का लोच था. जब हम एक उद्यान के बाघों की सटीक गिनती और निगरानी नहीं कर सकते हैं तो कई पार्को की कैसे करेंगे?
इन कैमरों के माध्यम से पार्को की सुरक्षा में लगे गश्ती दल पर भी निगाह रखी जाएगी. ये देखा जाएगा कि कौन वन क्षेत्रधिकारी, वनपाल और वनरक्षक किस क्षेत्र में भ्रमण कर रहे हैं. यदि अवैध कटाई करने वालों से वन अमला कोई लेनदेन करता है तो उसकी जानकारी भी कैमरे में कैद हो जाएगी. अवैध उत्खनन में लगे वाहनों की फोटो वनअधिकारियों तक पहुंच जाएगी. किंतु यहां सवाल उठता है कि शिकार या अवैध उत्खनन करते समय वन अमला मौके पर धर-पकड़ के लिए क्या पहुंच जाएगा? और क्या वनअधिकारी चौबीसों घंटे कैमरे से आ रही लाइव तस्वीरों पर निगाह बनाए रखेंगे?