ब्लॉग: समाज में महिलाओं के विरुद्ध क्यों बढ़ रही है मानसिक विकृति

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: August 22, 2024 10:31 IST2024-08-22T10:28:25+5:302024-08-22T10:31:00+5:30

सबसे अफसोस की बात यह है कि  ऐसी नृशंस घटनाओं की जांच करने, उन्हें रोकने में सरकार का साथ देने के बदले तमाम दल राजनीति की रोटियां सेंक रहे हैं। कोलकाता में चिकित्सा छात्रा की बलात्कार के बाद नृशंस हत्या से पूरा देश उसी तरह उबल रहा है जैसे एक दशक पहले निर्भया सामूहिक बलात्कार-हत्या को लेकर उबला था।

Why is mental disorder increasing against women in the society? | ब्लॉग: समाज में महिलाओं के विरुद्ध क्यों बढ़ रही है मानसिक विकृति

फोटो क्रेडिट- एक्स

Highlightsसुप्रीम कोर्ट जब कोलकाता प्रकरण पर चिंता जता रहा थाउसी वक्त पूरा महाराष्ट्र बदलापुर में दो मासूम बच्चियों  के साथ स्कूल में यौन अपराध हुएसवाल यह है कि निर्भया हत्याकांड के बाद सख्त कानून बनने के बाद अपराधियों में खौफ क्यों नहीं

देश भर में कोलकाता बलात्कार-हत्याकांड की गूंज के बीच महाराष्ट्र में ठाणे जिले के बदलापुर की एक शाला में दो मासूम छात्राओं के यौन शोषण का मामला सामने आ गया। दोनों मामले समाज में लड़कियों के प्रति बढ़ती विकृत मानसिकता के परिचायक हैं। एक बात साफ है कि हम चाहे सख्त से सख्त कानून बना लें, लेकिन विकृत मानसिकता वाले लोगों की तादाद बढ़ रही है। ऐसी घटनाओं में जांच के साथ-साथ इस बात का भी गहराई से अध्ययन किया जाना चाहिए कि शिक्षा का प्रचार-प्रसार होने के बावजूद ऐसी मानसिक विकृति क्यों बढ़ रही है। 

सबसे अफसोस की बात यह है कि  ऐसी नृशंस घटनाओं की जांच करने, उन्हें रोकने में सरकार का साथ देने के बदले तमाम दल राजनीति की रोटियां सेंक रहे हैं। कोलकाता में चिकित्सा छात्रा की बलात्कार के बाद नृशंस हत्या से पूरा देश उसी तरह उबल रहा है जैसे एक दशक पहले निर्भया सामूहिक बलात्कार-हत्या को लेकर उबला था। उसके बाद सख्त कानून बना, जिसमें  ऐसी घिनौनी हरकत करने वाले के लिए सजा-ए-मौत का प्रावधान तक है, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। इसी कानून में यह भी व्यवस्था है कि महिलाओं पर किसी भी किस्म के अत्याचार की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें बनेंगी और अपराधियों को छह माह के भीतर सजा सुना दी जाएगी। यह कानून दिखावे का रह गया है। अभी भी स्थिति पहले जैसी ही है। राजस्थान की एक निचली अदालत ने सौ से ज्यादा लड़कियों के यौन शोषण के अपराधियों को सजा सुनाने में 32 साल लगा दिए। 

अपराधी खुद को बचाने के लिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे तथा उसमें पांच-दस साल निकल जाएंगे। राजस्थान के इस मामले की पीड़िताएं तीन दशक से ज्यादा समय से शारीरिक-मानसिक पीड़ा झेल रही हैं। आधा-अधूरा न्याय मिलने में अगर 32 साल लग जाएं तो उनके दिल पर कितना गहरा घाव हुआ होगा। कोलकाता प्रकरण पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प। बंगाल सरकार को कानून और व्यवस्था की ध्वस्त व्यवस्था के लिए कड़ी फटकार लगाई और कहा कि देश बलात्कार की एक और घटना का इंतजार नहीं कर सकता। 

सुप्रीम कोर्ट जब कोलकाता प्रकरण पर चिंता जता रहा था, उसी वक्त पूरा महाराष्ट्र बदलापुर में दो मासूम बच्चियों  के साथ स्कूल में यौन अपराध पर आक्रोश जता रहा था। सवाल यह पैदा होता है कि निर्भया बलात्कार हत्याकांड के बाद सख्त कानून बनने के बावजूद अपराधियों के मन में खौफ पैदा क्यों नहीं हो रहा है। बदलापुर प्रकरण के दो हफ्ते पहले ठाणे जिले में एक कोचिंग क्लास के शिक्षक द्वारा कई छात्राओं के यौन शोषण का मामला सामने आया था। उस पर न तो कोई आंदोलन हुआ और न ही पक्ष-विपक्ष ने कोई प्रतिक्रिया दी। 

पिछले हफ्ते ही उत्तराखंड में एक निजी स्कूल की बस में छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। उस पर भी कहीं कोई आक्रोश नजर नहीं आया। कोलकाता की घटना को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के त्यागपत्र की मांग की जा रही है। उनके त्यागपत्र देने से महिलाओं के विरुद्ध यौन अपराध अगर थम जाते हैं तो उन सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे दे देने चाहिए, जहां बलात्कार की घटनाएं होती हैं। 

महिलाओं के विरुद्ध यौन अपराध करने वाले यह नहीं देखते कि राज्य में किस पार्टी या गठबंधन की सरकार है। सारा मामला विकृत मानसिकता से जुड़ा हुआ है। कहीं व्यक्तिगत दुश्मनी के लिए महिलाएं शारीरिक उत्पीड़न का शिकार हो जाती हैं, तो  कहीं पारिवारिक विवाद में बदला लेने की भावना ऐसे जघन्य अपराध को जन्म देती है। छोटी बच्चियां हो या किशोरियां या युवतियां, कोई भी कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं क्योंकि कानून का डर अपराधियों के मन से निकल चुका है। देश में बलात्कार के रोज 81 मामले दर्ज हो रहे हैं। 

तीस साल पहले यह संख्या 42 थी। निर्भया बलात्कार हत्याकांड के वक्त देश में रोज बलात्कार की 28 घटनाएं सामने आ रही थीं। एक दशक में यह संख्या तीन गुना बढ़ गई है। बलात्कार तथा महिलाओं के विरुद्ध अन्य सभी तरह के अत्याचारों को एक सामान्य अपराध की तरह नहीं देखा जाना चाहिए। समय आ गया है कि हम मनोवैज्ञानिक अध्ययन भी करें, यह भी देखें कि समाज का बदलता स्वरूप, एक इकाई के रूप में परिवार संस्था के बिखरने की प्रक्रिया, बचपन में मिलने वाले संस्कार तथा किशोरावस्था में परिवार के भावनात्मक समर्थन के खत्म होने जैसी प्रवृत्तियां भी ऐसे जघन्य अपराधों के लिए कितनी जिम्मेदार हैं।

Web Title: Why is mental disorder increasing against women in the society?

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