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भारत तमाशबीन क्यों बना हुआ है?

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: October 15, 2021 15:44 IST

प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्नी जयशंकर ने अलग-अलग मौकों पर अफगानिस्तान के बारे में जो भी कहा है, वह शतप्रतिशत सही है लेकिन आश्चर्य है कि भारत की तरफ से कोई ठोस पहले क्यों नहीं है

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ठळक मुद्देपीएम ने जी 20 में कहा -तालिबान सरकार आतंकवाद को बिल्कुल भी प्रश्रय न देहमें अफगान-संकट को हल करना है या पाकिस्तान को कूटनीतिक पटखनी देनी हैअमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने अभी तक इमरान खान से हाय-हलो तक नहीं की है

प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्नी जयशंकर ने अलग-अलग मौकों पर अफगानिस्तान के बारे में जो भी कहा है, वह शतप्रतिशत सही है लेकिन आश्चर्य है कि भारत की तरफ से कोई ठोस पहले क्यों नहीं है? 20 प्रमुख देशों के जी-20 सम्मेलन में दिया गया मोदी का भाषण अफगानिस्तान की वर्तमान समस्याओं या संकट का जीवंत वर्णन करता है और उसके समाधान भी सुझाता है. जैसे सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव का संदर्भ देते हुए मोदी ने मांग की कि काबुल में एक सर्वसमावेशी सरकार बने, वह नागरिकों के मानव अधिकारों की रक्षा करे, वह स्त्रियों का सम्मान करे और अफगान अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाकर अफगान जनता को अकाल से बचाए. उनका सबसे ज्यादा जोर इस बात पर था कि तालिबान सरकार आतंकवाद को बिल्कुल भी प्रश्रय न दे. वह किसी भी देश का मोहरा न बने और पड़ोसी देशों में आतंकवाद को फैलने से रोके.

लगभग यही बात विदेश मंत्नी जिस देश में भी जाते हैं, बार-बार दोहराते रहते हैं. लेकिन वे सिर्फ इसी बात से संतुष्ट दिखाई पड़ रहे हैं कि अफगानिस्तान के बहाने वे हर जगह पाकिस्तान को आड़े हाथों ले रहे हैं. यहां मुख्य सवाल यह है कि हमें अफगान-संकट को हल करना है या पाकिस्तान को कूटनीतिक पटखनी देनी है? हम खुश हैं कि इस वक्त हमने पाकिस्तान को हाशिये में डलवा दिया है. अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने अभी तक इमरान खान से हाय-हलो तक नहीं की है. हमारी यह समझ गलत है कि यह हमारी वजह से हो रहा है. यह इसलिए हो रहा है कि पाकिस्तान इस वक्त चीन की गोद में बैठा है और चीन व अमेरिका के बीच शीत-युद्ध चल रहा है. ज्यों ही चीन से अमेरिकी संबंध सहज हुए नहीं कि पाकिस्तान दुबारा अमेरिका का प्रेम-भाजन बन जाएगा. पाकिस्तान की किस्मत में लिखा है कि वह सदैव किसी न किसी महाशक्ति का दुमछल्ला बनकर रहे.

भारत न तो कभी किसी महाशक्ति का दुमछल्ला बना है और न ही उसे कभी बनना चाहिए लेकिन इधर उल्टा ही हो रहा है. अफगानिस्तान के मामले में ही नहीं, चौगुटे (क्वाड) के चंगुल में भी वह इस तरह फंसा हुआ है कि उसकी स्वतंत्न विदेश नीति कहीं छिपी-छिपी सी नजर आने लगी है. बजाय इसके कि वह तालिबान से सीधी बात करता, जैसे कि अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और यूरोपीय समुदाय कर रहे हैं, हमारे विदेश मंत्नी अन्य छोटे-मोटे देशों के चक्कर लगा रहे हैं. जो महाशक्तियां तालिबान से सीधे बात कर रही हैं, उनके मुकाबले भारत अफगानिस्तान का सबसे निकट पड़ोसी है और उसने वहां 500 से भी ज्यादा निर्माण कार्य किए हैं. क्या यह शर्म की बात नहीं है कि अमेरिका के निमंत्नण पर हम पहले कतर गए और रूस के निमंत्नण पर अब हम मास्को जाकर तालिबान से चलनेवाली बात में शामिल होंगे? ये अंतर्राष्ट्रीय बैठकें नई दिल्ली में क्यों नहीं होतीं? क्या भारत फुटपाथ पर खड़ा-खड़ा तमाशबीन ही बना रहेगा?

टॅग्स :G20तालिबानTalibanKabul
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