ब्लॉग: ‘अंग्रेजी की गुलामी’ शब्द का इस्तेमाल आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्यों किया?
By वेद प्रताप वैदिक | Published: October 21, 2022 01:50 PM2022-10-21T13:50:08+5:302022-10-21T13:52:51+5:30
अंग्रेजी हटाओ का अर्थ अंग्रेजी मिटाओ बिल्कुल नहीं है. इसका एक मतलब है कि अंग्रेजी की अनिवार्यता हर जगह से हटानी चाहिए और दूसरा ये कि विदेश नीति, विदेश व्यापार और अनुसंधान के लिए हमें केवल अंग्रेजी पर निर्भर न रहना पड़े.
गुजरात के स्कूलों में 5जी की तकनीक के बारे में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कमाल कर दिया. उन्होंने प्रधानमंत्री की हैसियत से ‘अंग्रेजी की गुलामी’ के खिलाफ जो बात कह दी है, वह बात आज तक भारत के किसी प्रधानमंत्री ने नहीं कही. मोदी ने ‘अंग्रेजी की गुलामी’ शब्द का प्रयोग किया है, जिसके बारे में पिछले 60-70 साल से मैं बराबर बोलता और लिखता रहा हूं और अपने इस विचार को फैलाने की खातिर मैं जेल की सजा भी काटता रहा हूं और अंग्रेजी भक्तों का कोप-भाजन भी बनता रहा हूं.
देश की लगभग सभी पार्टियों के सर्वोच्च नेताओं और प्रधानमंत्रियों से मैं अनुरोध करता रहा हूं कि हिंदी थोपने की बजाय आप सिर्फ अंग्रेजी हटाने का काम करें. अंग्रेजी हटेगी तो अपने आप हिंदी आएगी. उसके अलावा कौनसी भाषा ऐसी है, जो भारत की दो दर्जन भाषाओं के बीच सेतु का काम कर सकेगी?
अंग्रेजी हटाओ का अर्थ अंग्रेजी मिटाओ बिल्कुल नहीं है. इसके सिर्फ दो अर्थ हैं. एक तो अंग्रेजी की अनिवार्यता हर जगह से हटाओ और दूसरा विदेश नीति, विदेश व्यापार और अनुसंधान के लिए हम सिर्फ अंग्रेजी पर निर्भर न रहें. अंग्रेजी के साथ-साथ अन्य विदेशी भाषाओं का भी इस्तेमाल करें. यदि ऐसा हो तो भारत को महाशक्ति और महासंपन्न बनने से कोई ताकत रोक नहीं सकती.
प्रधानमंत्री के अंग्रेजी-विरोध का आशय केवल इतना ही है लेकिन तमिलनाडु विधानसभा ने सरकार की भाषा नीति के विरुद्ध प्रस्ताव पारित करके वास्तव में तमिलनाडु का बड़ा अहित किया है. गृह मंत्री अमित शाह ने अपने भाषणों में हिंदी थोपने की बात कभी नहीं की है लेकिन देश के हिंदी-विरोधी नेता मनगढ़ंत तथ्यों के आधार पर उनकी बातों का विरोध कर रहे हैं. मुझे तो आश्चर्य है कि इस मुद्दे पर कांग्रेस-जैसी पार्टी चुप क्यों है?