ब्लॉग: चुनावों में क्यों हावी हो रहे हैं बाहुबली और धनबली

By विश्वनाथ सचदेव | Published: April 10, 2024 10:50 AM2024-04-10T10:50:51+5:302024-04-10T10:52:39+5:30

शायद आपने भी देखा हो फेसबुक पर चक्कर लगाते उस संदेश को, जिसमें आगाह किया गया है कि 4 जून तक यानी आम-चुनाव के परिणाम आने तक, पचास हजार की नकदी लेकर घूमने से बचें अन्यथा सरकारी एजेसियों द्वारा परेशान किए जाने की आशंका बनी रहेगी।

Why are Bahubali and Dhanbali dominating the elections | ब्लॉग: चुनावों में क्यों हावी हो रहे हैं बाहुबली और धनबली

फाइल फोटो

Highlightsहर चुनाव के मौके पर इस आशय के समाचार मिलते रहे हैं कि फलां जगह इतना बेहिसाबी पैसा पकड़ा गया फलां जगह उम्मीदवार मतदाता को पैसा बांटते देखा गयामतदाता तक पहुंचने के लिए, उस तक अपनी बात पहुंचाने के लिए जरूरी साधन बिना पैसे के नहीं जुट सकते

शायद आपने भी देखा हो फेसबुक पर चक्कर लगाते उस संदेश को, जिसमें आगाह किया गया है कि 4 जून तक यानी आम-चुनाव के परिणाम आने तक, पचास हजार की नकदी लेकर घूमने से बचें अन्यथा सरकारी एजेसियों द्वारा परेशान किए जाने की आशंका बनी रहेगी। हर चुनाव के मौके पर इस आशय के समाचार मिलते रहे हैं कि फलां जगह इतना बेहिसाबी पैसा पकड़ा गया, फलां जगह उम्मीदवार मतदाता को पैसा बांटते देखा गया। इस बीच शायद यह समाचार भी आपने देखा-पढ़ा होगा जिसमें देश की वित्त मंत्री को यह कहते बताया गया है कि वे लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ सकतीं, क्योंकि उनके पास चुनाव लड़ने लायक पैसा नहीं है।

मतदाता तक पहुंचने के लिए, उस तक अपनी बात पहुंचाने के लिए जरूरी साधन बिना पैसे के नहीं जुट सकते। चुनाव आयोग द्वारा लगाए गए अनुमान के आधार पर यह सीमा की तय की गई है कि लोकसभा और विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार क्रमशः 75 लाख और 40 लाख रुपए खर्च कर सकता है. पर हकीकत यह है कि चुनाव जीतने के लिए उम्मीदवार करोड़ों रुपए खर्च करते हैं।

यह दुर्भाग्य ही है कि हमारी चुनावी-व्यवस्था पर बाहुबली और धनबली हावी हैं। आज हमारी राज्यसभा में नब्बे प्रतिशत सांसद करोड़पति हैं, 543 सांसदों वाली हमारी लोकसभा में 475 सांसदों का करोड़पति होना भी क्या यह नहीं बताता कि सांसद या विधायक बनने के लिए उम्मीदवार की जेब भारी होना भी एक जरूरी शर्त है।

था कोई जमाना जब आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति भी संसद या विधानसभा में पहुंचने का सपना देख सकता था। मुझे याद है दूसरे आम चुनाव में राजस्थान के सिरोही विधानसभा क्षेत्र के लिए सड़क पर बैठकर जूते ठीक करने वाला एक उम्मीदवार चुनाव जीता था। तब उसे चंदा करके इतना पैसा दिया गया था कि वह ढंग से ठीक-ठाक तरीके से राज्य की राजधानी जयपुर पहुंचकर विधायक पद की शपथ ले सके।

दो बार देश के प्रधानमंत्री बनने वाले डॉक्टर मनमोहन सिंह भी चुनाव लड़कर कभी संसद में नहीं पहुंच पाए। पता नहीं कितनी सच है यह बात, पर कहते हैं एक बार उन्होंने राजधानी दिल्ली से चुनाव लड़ा था। हार गए थे वे यह चुनाव। उनके कार्यकर्ता बताते हैं कि इस हार का एक कारण यह भी था कि वह अपने कार्यकर्ताओं को सबेरे नाश्ते में दो-चार केले और एक कप चाय ही दिया करते थे।

वह इससे ज्यादा खर्च ही नहीं कर पाए। हमारी वर्तमान वित्त मंत्री भी जब यह कहती हैं कि उनके पास चुनाव लड़ने लायक पैसा नहीं है तो इसे हमारे जनतंत्र पर एक शर्मनाक टिप्पणी के रूप में ही स्वीकारा जाना चाहिए। बननी चाहिए कोई व्यवस्था ऐसी कि जनतंत्र का हर नागरिक चुनाव लड़ने लायक बन सके। पर कब होगा ऐसा।

Web Title: Why are Bahubali and Dhanbali dominating the elections