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ब्लॉग: चीतों की मौत के लिए आखिर कौन है जिम्मेदार?

By प्रमोद भार्गव | Published: May 31, 2023 12:06 PM

प्रत्येक चीता के गले में कॉलर आईडी है और चीते बाड़ों में कैमरों की निगरानी में हैं, फिर भी चूक के कई मामले सामने आ चुके हैं. कहा जा सकता है कि ईमानदारी से निगरानी की ही नहीं जा रही है.

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अफ्रीकी देशों से लाकर कूनो अभ्यारण्य में बसाए गए चीतों की लगातार हो रही मौतों से उनकी निगरानी, स्वास्थ्य और मौत के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है, यह सवाल खड़ा होता जा रहा है. जिस तरह से चीते अकाल मौत का शिकार हो रहे हैं, उससे लगता है, उच्च वनाधिकारियों का ज्ञान चीतों के प्राकृतिक व्यवहार से लगभग अछूता है. इसलिए एक-एक कर तीन वयस्क और तीन शावकों की मौत चार माह के भीतर हो गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी चीता परियोजना के लिए यह बड़ा झटका है. विडंबना ही है कि इन चीतों की वास्तविक मौत के कारण भी पता नहीं चले हैं.

23 मई को जिस चीता शावक की मौत हुई थी, उसे जन्म से ही कमजोर बताया जा रहा था. मां का दूध भी वह कम पी रहा था. बावजूद उसके इलाज के ठोस प्रयास नहीं हुए. इलाज भी तब शुरू हुआ जब निढाल होकर वह गिर गया और निगरानी दल ने चिकित्सकों को जानकारी दी. हैरानी है कि इन चीतों की निगरानी के लिए भारतीय विशेषज्ञों के साथ दो नामीबिया के और चार दक्षिण अफ्रीका के विशेषज्ञ कूनो में डेरा डाले हुए हैं. क्या इनकी जिम्मेदारी नहीं थी कि वे इस बीमार शावक द्वारा दूध नहीं पीने के कारण को जानते और उपचार करते. 

शावकों की मौतों पर पर्दा डालने के लिए बताया जा रहा है कि चीता शावकों की मृत्यु दर बिल्ली प्रजाति के प्राणियों में सबसे ज्यादा है. इसलिए इन मौतों को अनहोनी नहीं माना जाना चाहिए.  

नौ मई को मादा चीता दक्षा की मौत से यह स्पष्ट है कि वन्य प्राणी विशेषज्ञों को व्यावहारिक ज्ञान नहीं है. दक्षा से जोड़ा बनाने के लिए एक साथ दो नर चीते छोड़ दिए गए. जो एक बड़ी भूल थी. बिल्ली प्रजाति के नर प्राणियों में मादा से संबंध बनाने को लेकर संघर्ष और मौत आम बात है. बावजूद इनकी निगरानी नहीं की गई. इसी का परिणाम रहा कि इस जानलेवा हमले की खबर प्रबंधन को तब लगी, जब दक्षा को बचाने के प्रयास असंभव हो गए. 

आश्चर्य इस बात पर भी है कि प्रत्येक चीता के गले में कॉलर आईडी है और चीते बाड़ों में कैमरों की निगरानी में हैं, फिर भी यह चूक हुई तो कहा जा सकता है कि ईमानदारी से निगरानी की ही नहीं जा रही है. 25 अप्रैल को उदय नाम के चीते की मृत्यु हुई. इस मौत को हृदयाघात बताया गया. लेकिन शव विच्छेदन के बाद मौत का कारण संक्रमण निकला. 

उदय की खस्ता हालत का भी तब पता चला जब वह निढाल होकर एक ही जगह पड़ा रहा. 27 मार्च को 20 चीतों में से कूनो में सबसे पहले मादा साशा की मौत की खबर आई थी. इसकी मौत का कारण गुर्दा में संक्रमण बताया गया. यह गंभीर बीमारी नामीबिया से ही थी. आखिर बीमार चीता लाने की क्या मजबूरी थी, वन प्रबंधन इस प्रश्न पर मौत के बाद से ही चुप्पी साधे हुए है, क्यों ? 

टॅग्स :Madhya PradeshWildlife Conservation Department
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