ब्लॉग: सफेद लैबकोट पहने देवदूत के समान होते हैं चिकित्सक
By योगेश कुमार गोयल | Updated: July 1, 2024 10:56 IST2024-07-01T10:53:34+5:302024-07-01T10:56:35+5:30
चिकित्सक दिवस मनाने का मूल उद्देश्य चिकित्सकों की बहुमूल्य सेवा, भूमिका और महत्व के संबंध में आम जन को जागरूक करना, चिकित्सकों का सम्मान करना और साथ ही चिकित्सकों को भी उनके पेशे के प्रति जागरूक करना है।

फोटो क्रेडिट- (एक्स)
चिकित्सकों के समाज के प्रति समर्पण एवं प्रतिबद्धता के लिए कृतज्ञता और आभार व्यक्त करने तथा मेडिकल छात्रों को प्रेरित करने के लिए प्रतिवर्ष एक जुलाई को 'राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस' मनाया जाता है। इस साल राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस 'उपचार करने वाले हाथ, देखभाल करने वाले हृदय' विषय के साथ मनाया जा रहा है। यह विषय अपने कार्य के प्रति चिकित्सकों के समर्पण की सराहना करते हुए मानव जीवन में उनकी भूमिका का सम्मान करता है, जो अपने जीवनकाल में लाखों लोगों की जान बचाने में अहम भूमिका निभाते हैं।
चिकित्सक दिवस मनाने का मूल उद्देश्य चिकित्सकों की बहुमूल्य सेवा, भूमिका और महत्व के संबंध में आम जन को जागरूक करना, चिकित्सकों का सम्मान करना और साथ ही चिकित्सकों को भी उनके पेशे के प्रति जागरूक करना है। दरअसल कुछ चिकित्सक ऐसे भी देखे जाते हैं, जो अपने इस सम्मानित पेशे के प्रति ईमानदार नहीं होते लेकिन ऐसे चिकित्सकों की भी कमी नहीं, जिनमें अपने पेशे के प्रति समर्पण की कमी नहीं होती। बिना चिकित्सा व्यवस्था के इंसान की जिंदगी कैसी होती, इसकी कल्पना मात्र से ही रोम-रोम सिहर जाता है. यही कारण है कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में चिकित्सकों का महत्व सदा से रहा है और हमेशा रहेगा।
भारत में चिकित्सक दिवस की स्थापना वर्ष 1991 में हुई थी। पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री और जाने-माने चिकित्सक डॉ. बिधान चंद्र रॉय के सम्मान में चिकित्सकों की उपलब्धियों तथा चिकित्सा क्षेत्र में नए आयाम हासिल करने वाले डॉक्टरों के सम्मान के लिए इसका आयोजन होता है। वे एक जाने-माने चिकित्सक, प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और वर्ष 1948 से 1962 में जीवन के अंतिम क्षणों तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने पश्चिम बंगाल में दुर्गापुर, बिधाननगर, अशोकनगर, कल्याणी तथा हबरा नामक पांच शहरों की स्थापना की थी. संभवतः इसीलिए उन्हें पश्चिम बंगाल का महान वास्तुकार भी कहा जाता है।
संयोगवश डॉ. रॉय के जन्म और मृत्यु, दोनों का दिन एक जुलाई ही है। उनका जन्म 1 जुलाई 1882 को पटना में हुआ था और मृत्यु 1 जुलाई 1962 को हृदयाघात से कोलकाता में हुई थी। चूंकि चिकित्सक प्रायः मरीज को मौत के मुंह से भी बचाकर ले आते हैं, इसीलिए चिकित्सकों को भगवान का रूप माना जाता रहा है। चिकित्सा केवल पैसा कमाने के लिए एक पेशा मात्र नहीं है बल्कि समाज के कल्याण और उत्थान का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है इसीलिए चिकित्सक को सदैव सम्मान की नजर से देखने वाले समाज के प्रति उनसे भी समर्पण की उम्मीद की जाती है।