West Bengal Teacher recruitment scam: घोटाले इतनी देर से क्यों पकड़ में आते हैं?, न्यायालय ने 25000 से ज्यादा शिक्षकों की भर्ती को किया रद्द

By विकास मिश्रा | Updated: April 8, 2025 05:18 IST2025-04-08T05:18:15+5:302025-04-08T05:18:15+5:30

घोटाले ने मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले की याद दिला दी है और यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि घोटाले इतनी देर से क्यों पकड़ में आते हैं?

West Bengal Teacher recruitment scam Why do scams get detected so late blog Vikas Mishra court cancelled recruitment more than 25,000 teachers | West Bengal Teacher recruitment scam: घोटाले इतनी देर से क्यों पकड़ में आते हैं?, न्यायालय ने 25000 से ज्यादा शिक्षकों की भर्ती को किया रद्द

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Highlightsसिस्टम से चूक होती है या सिस्टम मजबूर होता है? कुछ ही दिन बाद मेरिट लिस्ट को बदल दिया गया.मंत्री परेश अधिकारी की पुत्री अंकिता अधिकारी का नाम पहले नंबर पर आ गया.

West Bengal Teacher recruitment scam:पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले का अंतिम न्यायिक रिजल्ट आ गया है. सर्वोच्च न्यायालय ने 25 हजार से ज्यादा शिक्षकों की भर्ती को रद्द कर दिया है. ये सभी लोग फिर से बेरोजगार हो गए हैं. कहने को कहा जा सकता है कि घोटाले केे सरदार पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी और उनकी बेहद करीबी फिल्म अभिनेत्री अर्पिता मुखर्जी के साथ ही अन्य कई लोग गिरफ्त में हैं और सबकुछ ठीकठाक रहा तो आगे-पीछे सजा भी होगी. इस घोटाले ने मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले की याद दिला दी है और यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि घोटाले इतनी देर से क्यों पकड़ में आते हैं?

सिस्टम से चूक होती है या सिस्टम मजबूर होता है? अब पश्चिम बंगाल में हुए इस घोटाले के ही टाइम फ्रेम पर नजर डालिए. 2016 में शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की भर्ती के लिए स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) ने परीक्षा आयोजित की. नवंबर 2017 में परीक्षा परिणाम आया. मेरिट लिस्ट भी जारी की गई लेकिन कुछ ही दिन बाद मेरिट लिस्ट को बदल दिया गया.

यहीं से शंका की शुरुआत हुई क्योंकि तृणमूल कांग्रेस सरकार में तब मंत्री परेश अधिकारी की पुत्री अंकिता अधिकारी का नाम पहले नंबर पर आ गया. सिलिगुड़ी की एक लड़की पहली मेरिट लिस्ट में थी लेकिन दूसरी में नहीं थी इसलिए उसके पिता ने इस मेरिट लिस्ट को कोर्ट में चुनौती दी. राज्य सरकार ने न्यायमूर्ति (रिटायर्ड) रंजीत कुमार बाग की अध्यक्षता में जांच के लिए  समिति गठित की.

समिति ने जांच में पाया कि घोटाला तो हुआ है. समिति ने पांच अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की सिफारिश की. मामला राजनीतिक रूप ले चुका था इसलिए स्वाभाविक तौर पर तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच जंग शुरू हो गई. ममता बनर्जी इस मामले में बैकफुट पर थीं क्योंकि और भी नाम उछल रहे थे. इस बीच उच्च न्यायालय ने 2021 में सीबीआई जांच के आदेश दिए.

पार्थ चटर्जी की कुर्सी चली गई. जेल गए लेकिन जैसा कि आमतौर पर होता है, उनका स्वास्थ्य खराब हो गया और अस्पताल पहुंच गए. उनके करीबी अयन शील, तृणमूल कांग्रेस के नेता शांतनु बंद्योपाध्याय और कुंतल घोष भी जेल गए. लेकिन इसमें चार साल लग गए. अभिनेत्री अर्पिता को पार्थ से दोस्ती महंगी पड़ी.

छापे में उनके फ्लैट से 21 करोड़ 90 लाख रुपए नकद के अलावा विदेशी मुद्रा और सोने के गहने भी मिले जिसका कोई हिसाब अर्पिता नहीं दे पाईं. स्वाभाविक रूप से शंका यही है कि ये घोटाले का पैसा है. सवाल यह पैदा होता है कि जब अयोग्य उम्मीदवारों को नौकरी दिलाने के लिए उत्तरपुस्तिकाओं में नंबर बढ़ाने का खेल चल रहा था तब क्या वाकई किसी को कुछ पता नहीं था?

ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी को भनक ही न लगे? खासकर तब जब अपनी उत्तरपुस्तिकाओं में नंबर रिवीजन के लिए बड़ी संख्या में परीक्षार्थी आवेदन दे रहे थे. जब मेरिट लिस्ट बदलने के बाद तत्काल मामला कोर्ट में गया था तब राज्य सरकार ने परीक्षा को क्यों नहीं रद्द किया? खासकर जब एक मंत्री की बेटी को लेकर सवाल उठा था तो सरकार को परीक्षा रद्द करनी चाहिए थी.

लेकिन जब भांग पूरे कुएं में घुली हो तो सत्य का झंडा कौन थामे? यह कितने कमाल की बात है कि जिन उत्तरपुस्तिकाओं में नंबर बदले गए वे गायब भी हो गईं और पूरा सिस्टम अंधा बना रहा? उत्तरपुस्तिकाएं बड़े सुरक्षित कमरों में रखी जाती हैं. वे गायब हुईं तो इसका मतलब है कि वहां तैनात सभी लोग इसमें शामिल थे या फिर किसी के डर से बोल नहीं रहे थे!

यह तो भारतीय न्याय व्यवस्था की ताकत है कि उसने 25 हजार से ज्यादा नौकरियों को समाप्त करने का बड़ा फैसला लिया. व्यवस्था को इससे कुछ तो सीख मिलेगी कि घोटाले भले ही देरी से पता चलें लेकिन मामला न्यायालय तक यदि पहुंच गया तो फैसला होगा! लेकिन कई बार न्यायालय के लिए भी स्थितियां कठिन हो जाती हैं.

न्यायालय को यदि पुलिस प्रमाण उपलब्ध न करा पाए तो न्यायालय क्या करे? घोटाले के पर्दाफाश और उस पर कार्रवाई में देरी का बड़ा उदाहरण हमारे सामने है मध्यप्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल का, जिसे पूरा देश व्यापम घोटाले के नाम से जानता है. आपको याद दिला दें कि 1982 में गठित व्यापम प्रारंभ से ही विवादों में घिर गया था.

हर तरफ आरोप लगने लगा था कि पैसे लेकर अयोग्य लोगों को परीक्षा में चयन होने लायक नंबर दिलवा दिए जाते हैं. इसके लिए एक पूरा नेक्सस काम कर रहा था. परीक्षा में नकल कराने से लेकर उत्तरपुस्तिका के साथ छेड़छाड़ या फिर परीक्षार्थी की जगह दूसरे व्यक्ति द्वारा परीक्षा देने का मामला भी शामिल था. व्यापम की परीक्षा में धांधली की चर्चाएं खुलेआम चल रही थीं लेकिन पहला मामला 2013 में ही दर्ज हो पाया.

पुलिस ने हार्ड डिस्क जब्त की और उसके बाद जो जिन्न बाहर निकला, उसे बोतल में बंद करने में धांधलीबाजों को नाकों चने चबाने पड़े. राजनीति के बड़े-बड़े नाम उछले. ढेर सारी गिरफ्तारियां हुईं लेकिन एक मंत्री को छोड़ दें तो बाकी सब छोटे लोग थे.

इस मामले से जुड़े 36 लोगों की शंकास्पद परिस्थितियों में मौतें हुईं लेकिन वे छोटे लोग थे. बड़े लोग आज भी आजाद घूम रहे हैं क्योंकि पुलिस उनके खिलाफ सबूत नहीं ढ़ूंढ़ पाई. स्वाभाविक है. वे बड़े लोग हैं ..उनके हाथ बड़े भी हैं और प्रभावशाली भी हैं. क्या कीजिएगा? यहां का दस्तूर यही है!

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