Weather Update Mausam Imd: केरल का वायनाड हो या राजस्थान के अनेक जिलों में भारी बरसात के बाद अचानक आई बाढ़ या फिर दिल्ली-मुंबई में भारी वर्षा की बात हो, अब मौसम के साथ आफत कभी भी आ सकती है. यह बात ठंडे प्रदेशों में अचानक भयंकर बर्फबारी के रूप में भी सामने आ रही है. स्पष्ट है कि इससे समूचा जनजीवन ध्वस्त हो जाता है. अनेक क्षेत्रों को दोबारा बसाने की नौबत आ रही है. किंतु इसके कारणों के समाधान की तह तक पहुंचा नहीं जा रहा है. मौसम विशेषज्ञ इसे वायुमंडलीय नदियों की भारत में बढ़ती तीव्रता का परिणाम मान रहे हैं, जो सामान्यत: दिखाई नहीं देता है, लेकिन अत्यधिक वर्षा और बाढ़ में योगदान देता है. वायुमंडलीय नदियाें को उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में गर्म होते महासागरों द्वारा पोषित जल वाष्प की ध्रुव-बद्ध धारा कहा जाता है.
जब वे उत्तर की ओर जाती हैं तो वे तेज हवाओं से प्रेरित होती हैं और अपने रास्ते में आने वाले क्षेत्रों में भारी वर्षा लाती हैं. भारत में भी वर्ष 1985 से वर्ष 2020 के दौरान इसका असर देखा गया है. इस दौरान देश में 70 प्रतिशत बाढ़ वायुमंडलीय नदियों के कारण आई थी. मौसम के जानकारों के अनुसार पिछले पांच वर्ष में जुलाई में भारी बरसात और अत्यधिक वर्षा वाले स्थानों की संख्या पूरे देश में दोगुनी से अधिक हो गई है, जो वर्ष 2023 में क्रमशः 1,113 और 205 तक जा पहुंची है. अब मानसून की बारिश अनियमित हो चली है.
लंबे समय तक सूखा रहने के बाद किसी जगह पर अचानक बहुत कम समय में मूसलाधार बारिश हो जाती है. वैज्ञानिकों का कहना है कि अब तो वायुमंडलीय नदियां और बड़ी, चौड़ी तथा अधिक तीव्र होती जा रही हैं, जिससे पूरी दुनिया में बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है. देश के मौसम विज्ञानियों के अनुसार हिंद महासागर गर्म होने से वायुमंडलीय नदियां बन रही हैं, जो जून और सितंबर के बीच होने वाली मानसून की बारिश पर असर डाल रही हैं. बताया जाता है कि एक वायुमंडलीय नदी की औसत लंबाई लगभग 2000 किलोमीटर और चौड़ाई 500 किलोमीटर तक होती है.
इसकी गहराई तीन किलोमीटर तक हो सकती है. किंतु ये और लंबी और चौड़ी हो रही हैं. कुछ की लंबाई 5,000 किलोमीटर से अधिक हो सकती है. साफ है कि हमने अपने आस-पास के पर्यावरण को इतना अधिक बिगाड़ दिया है कि मौसमी परिस्थितियां नियंत्रण के बाहर होती जा रही हैं. जमीन के भीतर पानी जाने के रास्ते बंद हो रहे हैं और पानी का वाष्पीकरण अधिक हो रहा है.
ऐसे में अधिक बरसात को तो कहीं-कहीं संभाला जा सकता है, लेकिन वायनाड जैसे हालात का समाधान नहीं मिल पा रहा है. इसलिए आवश्यक यह है कि विकास के नाम पर विनाश को आमंत्रण नहीं दिया जाए. प्रकृति विकास का भार जितना उठा सकती है, उतना ही उसके सिर पर लादा जाए. वर्ना जब वह अपना बोझ इंसानों के ऊपर फेंकेगी तो उसकी चपेट में आने वाले दोबारा नहीं उठ पाएंगे.