पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ, जिन्हें पाकिस्तान की एक अदालत ने मौत की सजा सुनाई है, संभवत: अपने मुल्क की पहली बड़ी शख्सियत थे, जो बापू की समाधि राजघाट पहुंचे थे. यह 17 जुलाई, 2001 की बात है. उस दिन दिल्ली में झमाझम बारिश हो रही थी.
खबरिया चैनलों से दिखाई जाने वाली तस्वीरों से साफ लग रहा था कि वे राजघाट पर पहुंचने के बाद से ही बेहद तनाव में थे. उन्होंने वहां पर विजिटर्स बुक में बापू की शख्सियत की प्रशंसा भी की थी.तब कुछ ग्राफोलॉजिस्ट (हैंड राइिटंग के विशेषज्ञों) ने उनकी हैंड राइिटंग का अध्ययन करने के बाद दावा किया था कि मुशर्रफ के राजघाट पर विजिटर्स बुक पर लिखते वक्त हाथ कांप रहे थे और वे तनाव में थे. वे तब भारत की सरकारी यात्रा पर आए थे.
तब तक कारगिल की जंग हो चुकी थी जिसकी इबारत उन्होंने ही लिखी थी. इस कारण उनसे देश नाराज था. पर चूंकि दिल्ली उनका जन्म स्थान था इसलिए उनकी उस यात्रा को लेकर जिज्ञासा का भाव भी था.हालांकि मुशर्रफ के दिल्ली से रिश्तों की जानकारी सबको है, पर कम लोगों को पता है कि उनका बचपन मिन्टो रोड के मोहल्ले टैगोर रोड में बीता. वहां उनके पिता सईद मुशर्रफउद्दीन को सरकारी घर मिला हुआ था. वे तब भारत सरकार की नौकरी करते थे.
अगस्त, 1947 का महीना था. देश का बंटवारा हो चुका था. एक दिन सईद मुशर्रफउद्दीन सुबह अपने अखबार देने वाले हॉकर आर.पी.पुरी का इंतजार कर रहे थे. उन्हें पुरी को अपने परिवार के एक बड़े फैसले से अवगत करवाना था.
पुरी मिन्टो रोड में ही स्थित जहांगीर रोड, अहिल्याबाई मार्ग, थॉमसन रोड, नूरजहां रोड, टैगोर रोड वगैरह के सरकारी घरों में भी अखबार डालते थे. पुरी साहब जब सईद साहब के घर में अखबार डालकर अपनी साइकिल को दौड़ाने लगे तो सईद साहब ने उन्हें आवाज देकर रोका. कहा, ‘सुनो, तुमसे बात करनी है.’ पुरी रुक गए. साइकिल मोड़ ली सईद साहब की तरफ. सुनने लगे सईद साहब की बात. ‘पुरी भाई, आपके साथ हमारा बहुत अच्छा मेल-जोल रहा. अब हमें अखबार देना बंद कर देना. हम यहां से पाकिस्तान जा रहे हैं.’ आर.पी.पुरी आगे चलकर कनॉट प्लेस की सेंट्रल न्यूज एजेंसी के मालिक बने. वे कहते थे कि मुशर्रफ का परिवार बहुत सुशिक्षित था. कुछ साल पहले 94 साल की उम्र वे चल बसे थे. यह किस्सा उन्होंने इस लेखक को तब सुनाया था जब मुशर्रफ दिल्ली आए थे.