सैयद अली शाह गिलानी के निधन के साथ ही अलगाववादी राजनीति के एक अध्याय का अंत

By भाषा | Published: September 2, 2021 07:54 PM2021-09-02T19:54:24+5:302021-09-02T19:54:24+5:30

A chapter of separatist politics ends with the death of Syed Ali Shah Geelani | सैयद अली शाह गिलानी के निधन के साथ ही अलगाववादी राजनीति के एक अध्याय का अंत

सैयद अली शाह गिलानी के निधन के साथ ही अलगाववादी राजनीति के एक अध्याय का अंत

तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य से तीन बार के विधायक एवं पाकिस्तान के स्पष्ट समर्थक सैयद अली शाह गिलानी ने तीन दशक से अधिक समय तक अलगाववादी राजनीति का नेतृत्व किया। कश्मीर घाटी में कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब करने की रणनीति के तहत बार-बार बंद का आह्वान करने के लिए उन्हें 'हड़ताल मैन’ (हड़ताल आहूत करने वाला) कहा जाता था। कट्टरपंथी अलगाववादी नेता गिलानी का लंबी बीमारी के बाद बुधवार रात श्रीनगर स्थित उनके आवास पर 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हें शहर के बाहरी इलाके हैदरपोरा में उनके घर के पास स्थित एक मस्जिद में दफनाया गया। इस मौके पर परिवार के कुछ करीबी सदस्य मौजूद थे। सफेद दाढ़ी वाले गिलानी मृदुभाषी थे। वह विभाजन पूर्व समय के उन कुछ नेताओं में से थे, जो उदारवादी अलगाववाद में कभी विश्वास नहीं करते थे और हुर्रियत कांफ्रेंस के साथ अपने जुड़ाव के दिनों के दौरान किसी भी शांतिपूर्ण कदम के खिलाफ मुखर थे। हुर्रियत कान्फ्रेंस 26 दलों का एक समूह था जिसका गठन 1993 में किया गया था।पांच दशक से अधिक लंबे अपने राजनीतिक करियर के दौरान गिलानी उन कुछ नेताओं में से थे जिन्होंने 1947 में जम्मू कश्मीर के भारत में विलय से शुरू होकर और अंत में 2019 में तत्कालीन राज्य के विशेष दर्जे को समाप्त किये जाने एवं उसके विभाजन के महत्वपूर्ण चरणों के गवाह बने। पाकिस्तान के साथ कश्मीर के विलय की अपनी विचारधारा पर दृढ़, गिलानी को 1990 में आतंकवाद की शुरुआत के बाद कई बार जेल में डाला गया।1996 के बाद से चुनावी राजनीति के मजबूत होने के साथ ही गिलानी का रुख और अधिक कट्टर होता गया, जिसके परिणामस्वरूप 2003 में हुर्रियत कांफ्रेंस का विभाजन हो गया। उसके बाद उन्होंने अपनी तहरीक-ए-हुर्रियत बनाई। इसका कारण यह था कि वह स्वयं को नयी दिल्ली के करीब नहीं दिखाना चाहते थे। कट्टरपंथी नेता के लिए एक झटका 2002 में आया जब आयकर विभाग ने उनके आवास पर छापेमारी की और वहां से पाकिस्तान सरकार द्वारा उपहार में दी गई हीरे जड़ित एक घड़ी के अलावा 10,000 डॉलर की बेहिसाब नकदी बरामद करने का दावा किया। उन्हें गिरफ्तार करके झारखंड जेल भेज दिया गया, जहां उनकी तबीयत खराब हो गई और उन्हें मुंबई के एक अस्पताल में स्थानांतरित किया गया। बाद में उन्हें स्वास्थ्य के आधार पर छोड़ दिया गया। उन पर आयकर की 1.73 करोड़ रुपये और प्रवर्तन निदेशालय की 14 लाख रुपये से अधिक की कर देनदारी है।2008 में अमरनाथ भूमि गतिरोध के बाद जब तत्कालीन राज्य सरकार ने वार्षिक तीर्थयात्रा के लिए अस्थायी ढांचे के निर्माण की अनुमति देने का प्रस्ताव दिया था, गिलानी ने एक आंदोलन का नेतृत्व किया। जल्द ही उन्हें घाटी में स्थिति को बाधित करने के लिए एक ‘हड़ताल मैन’ के रूप में देखा जाने लगा।उन्होंने शोपियां में 2009 के आंदोलन के दौरान हड़ताल का आह्वान करने के इस दृष्टिकोण को दोहराया, जहां एक नाले से दो महिलाओं के शव मिले थे। शुरू में यह आरोप लगाया गया था कि सुरक्षा बलों द्वारा उनके साथ बलात्कार करके उनकी हत्या कर दी गई, जो कि सही नहीं था क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह बात सामने आयी कि वे नाले में डूब गई थीं। हालांकि, गिलानी ने लगभग 45 दिनों तक बंद कराया। 2010 में, गिलानी ने अपने 2008 के प्रदर्शन को दोहराया और एक विरोध प्रदर्शन के दौरान आंसू गैस के गोले से एक युवक के मारे जाने के बाद कश्मीर घाटी में बंद कराया। गिलानी ने एक संसदीय प्रतिनिधिमंडल के लिए अपने दरवाजे खोलने से इनकार कर दिया था, जो कश्मीर घाटी के दौरे पर आया था। प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के पोस्टर बॉय बुरहान वानी की मौत के बाद गिलानी के हड़ताल के आह्वान से घाटी प्रभावित हुई थी। बार बार के बंद के आह्वान से बच्चों के करियर के साथ खिलवाड़ करने के लिए गिलानी की नागरिक समाज द्वारा आलोचना की गई थी जिससे शिक्षा प्रणाली के साथ-साथ पर्यटन क्षेत्र को भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ था। पर्यटन कश्मीर घाटी में कई लोगों का मुख्य आधार था।गिलानी तब अक्सर पाकिस्तान से नाराज़ दिखते थे जब वह भारत के साथ एक स्वस्थ संबंध बनाने की बात करता था। वह 2005 में नयी दिल्ली में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ से कश्मीर विवाद को हल करने के लिए उनकी चार-सूत्रीय योजना से असहमत थे। पूर्व रॉ प्रमुख और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के विशेष कार्याधिकारी ए एस दुलत ने कश्मीर पर अपनी पुस्तक में गिलानी को ‘‘जेहाद का जन्मदाता’’ करार दिया था। चुनाव बहिष्कार के गिलानी के आह्वान का भी कोई प्रभाव नहीं हुआ और 2002 के चुनावों के बाद मतदान प्रतिशत में वृद्धि देखी गई।कई बीमारियों से पीड़ित होने और पाकिस्तान द्वारा दरकिनार किये जाने के बाद गिलानी ने जून 2020 में हुर्रियत की राजनीति से यह कहते हुए विदाई ले ली थी दूसरी पीढ़ी के नेतृत्व ने केंद्र द्वारा 2019 में अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान समाप्त किये जाने के बाद सही तरीके से विरोध नहीं किया।पेसमेकर लगे होने और एक गुर्दा निकाले जाने के बाद गिलानी का स्वास्थ्य पिछले 18 महीनों में बिगड़ गया और वह डिमनेशिया से पीड़ित थे।गिलानी के दामाद अल्ताफ अहमद शाह और कट्टरपंथी मसर्रत आलम, जो गिलानी की अलगाववाद की राजनीति की विरासत को आगे बढ़ाने में सबसे आगे थे, वर्तमान में कश्मीर घाटी में विभिन्न आतंकी संगठनों के वित्तपोषण से संबंधित राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा दायर एक मामले में जेल में बंद हैं। 29 सितंबर, 1929 को जन्मे गिलानी ने लाहौर के ओरिएंटल कॉलेज से अपनी शिक्षा पूरी की और जमात-ए-इस्लामी में शामिल होने से पहले कुछ वर्षों तक शिक्षक के रूप में काम किया। जमात-ए-इस्लामी को अब प्रतिबंधित कर दिया गया है।

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Web Title: A chapter of separatist politics ends with the death of Syed Ali Shah Geelani

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