विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: भारतीयता देश के हर नागरिक की बने पहचान

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: September 27, 2018 05:17 IST2018-09-27T05:17:34+5:302018-09-27T05:17:34+5:30

वीडियो में इसे भागवत की एक और विशेषता बताया गया था।  लेकिन जांच करने पर पता चला कि वस्तुत:  भागवत नहीं, अनिल ओक नाम का कोई और व्यक्ति राष्ट्र-भक्ति की वह धुन बजा रहा था।

Vishwanath Sachdev's blog: Indiana identity of every citizen of the country | विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: भारतीयता देश के हर नागरिक की बने पहचान

विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: भारतीयता देश के हर नागरिक की बने पहचान

कुछ अरसा पहले फेसबुक पर एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें एक व्यक्ति बांसुरी पर ‘ए मेरे वतन के लोगों....’  की धुन बजाता दिख रहा है।  बांसुरी-वादन सचमुच बहुत अच्छा था और जो व्यक्ति बांसुरी बजा रहा था, वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत जैसा दिख रहा था।  

वीडियो में इसे भागवत की एक और विशेषता बताया गया था।  लेकिन जांच करने पर पता चला कि वस्तुत:  भागवत नहीं, अनिल ओक नाम का कोई और व्यक्ति राष्ट्र-भक्ति की वह धुन बजा रहा था।

उस व्यक्ति की शक्ल भागवत से काफी मिलती-जुलती है इसीलिए लोगों को आश्चर्य हुआ था कि क्या सचमुच सरसंघचालक इतनी अच्छी बांसुरी भी बजाते हैं? 
कुछ ऐसी ही प्रतिक्र या मेरी उस समय भी थी जब मैंने सरसंघचालक भागवत का तीन दिवसीय व्याख्यान सुना। 

 इस बहुचर्चित कार्यक्रम के बाद बहुत से लोगों को लगा होगा, क्या यह सब सचमुच भागवत ही बोल रहे हैं? हां, बांसुरी-वादक भले ही भागवत नहीं थे, पर संविधान में श्रद्धा प्रकट करने वाले, मुसलमानों के बिना हिंदुत्व को अधूरा बताने वाले, स्वतंत्रता-संग्राम में कांग्रेस की भूमिका की प्रशंसा करने वाले और मुक्त  नहीं युक्त  भारत की बात करने वाले वक्ता भागवत ही थे।  

यानी भारत की संघ की परिकल्पना को स्पष्ट करने के लिए आयोजित इस तीन दिवसीय विशेष कार्यक्रम में भागवत ने भारत की ही नहीं, संघ की भावी भूमिका को भी देश-दुनिया के सामने रखा।  यह अपने आप में एक आश्चर्य ही है कि कुछ अरसा पहले तक संघ की नींव रखने वाले डॉ  हेगडेवार एवं गुरुजी के नाम से जाने जाने वाले पूर्व सरसंघचालक गोलवलकर के कहे को अमिट आख्यान बताने वाले भागवत अब समय के साथ विचारों को बदलने की बात कर रहे हैं। 

 यही नहीं, इस कार्यक्रम में उन्होंने यह भी बताया कि गुरु गोलवलकर की चर्चित और विवादित पुस्तक ‘बंच आॅफ थॉट्स’ के संशोधित संस्करण में उन हिस्सों को हटा दिया गया है, जिन्हें लेकर विवाद होता रहा है।

  ज्ञातव्य है कि गुरु  गोलवलकर की इस पुस्तक में यह कहा गया है कि भारत को मुसलमानों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा हिटलर ने नाजियों के साथ किया था।  अर्थात् भारत में हिंदुओं को छोड़कर मुसलमानों या अन्य धर्मावलंबियों के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। 

 वैसे, संघ यह भी कहता रहा है कि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति जो भारत को अपनी मातृभूमि और पुण्यभूमि मानता है, हिंदू है।  लेकिन अब भागवत समय के साथ बदलने की दुहाई देते हुए ‘बंच आॅफ थॉट्स  को संपादित करने की बात कर रहे हैं।  

अब भारत का संविधान उनके लिए सर्वोपरि है।  अब वे धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में भी लचीला रु ख अपना रहे हैं।  अब वे कह रहे हैं, हम भारत के सब नागरिकों को हिंदू मानते हैं, लेकिन यदि कोई स्वयं को हिंदू के बजाय भारतीय कहता है तो हमें इससे ऐतराज नहीं है।  

कुछ अरसा पहले तक संघ को यह स्वीकार्य नहीं था।  सबको भारतीय समझने-कहने की वकालत करने वालों को संघ से जुड़े लोग ‘छद्म धर्म-निरपेक्ष’  अथवा ‘छद्म बुद्धिजीवी’ कहा करते थे।  मेरे जैसी सोच वाले कई लोग बार-बार इस बात की दुहाई देते रहे थे कि भारत के हर नागरिक को पहले भारतीय समझा जाना चाहिए, फिर कोई धर्मावलंबी।  लेकिन संघ और संघ से जुड़े संगठनों, जिसमें भाजपा भी शामिल है, यह बात रास नहीं आती थी।

  लेकिन अब सर संघचालक यह मानते हैं कि बदलते समय के साथ विचारों में भी परिवर्तन होना चाहिए।  एक से अधिक बार संविधान में संशोधन अथवा उसे बदलने की बात करने वाले संघ से जुड़े संगठनों के लोगों को शायद भागवत का यह कथन आसानी से रास नहीं आएगा कि भारतीय संविधान देश की आम राय का प्रतीक है।  

उनके लिए शायद भागवत का यह कथन समझना भी आसान नहीं होगा कि जिस दिन मुसलमानों को अस्वीकार्य बताया जाएगा, हिंदुत्व समाप्त हो जाएगा।  लेकिन सरसंघचालक का इन्हीं शब्दों में ये बातें कहना इस बात का संकेत तो है ही कि संघ यह दिखाना चाहता है कि सोच में यह परिवर्तन समय और आने वाले कल की सच्चाइयों की मांग है।  

 क्या सचमुच संघ बदल रहा है?  ऐसे प्रश्नों के उत्तर भी जरूरी हैं, लेकिन सबसे पहले तो सरसंघचालक को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके अनुयायी उनकी बातों के अनुसार कार्य करें।  स्वयं सरसंघचालक की ईमानदारी और स्वयंसेवकों की निष्ठा, दोनों दांव पर हैं। 

 समय के अनुसार जिन और जैसे परिवर्तनों की आवश्यकता भागवत ने रेखांकित की है, उस आवश्यकता की पूर्ति होनी ही चाहिए।  ऐ मेरे वतन.....की धुन बजाने वाला भले ही भागवत का हमशक्ल ही क्यों न हो, वह धुन यह मांग करती है कि भारत और भारतीयता को देश का हर नागरिक अपनी पहली पहचान माने।  हर नागरिक यानी संघ वाले भी। 

Web Title: Vishwanath Sachdev's blog: Indiana identity of every citizen of the country

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