विकास मिश्र का ब्लॉग: बहुत मुश्किल होगा अंतरिक्ष में चीन को रोकना
By विकास मिश्रा | Updated: June 23, 2021 13:40 IST2021-06-23T13:40:15+5:302021-06-23T13:40:35+5:30
जानकार कह रहे हैं कि चीन का स्पेस स्टेशन रोबोटिक आर्म से लैस होगा. चीन ने कुछ ऐसी व्यवस्थाएं जरूर की हैं या करेगा जिससे उसका स्पेस स्टेशन जंग में भी उसके काम आ सके.

(फोटो सोर्स- सोशल मीडिया)
चीनी स्पेस स्टेशन का निर्माण निश्चित रूप से पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन की तरह उसके निर्माणाधीन स्पेस स्टेशन की जानकारियां सार्वजनिक नहीं हैं और अमेरिका, रूस और दूसरे देशों की तरह उसने अभी तक कोई पारदर्शिता नहीं रखी है. चीन भले ही यह कहता है कि उसका मिशन देश की तरक्की के लिए है
लेकिन वास्तव में वह अंतरिक्ष में भी अपनी दादागीरी स्थापित करना चाहता है. 2024 में जब अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन काम करना बंद कर देगा तब वह अकेला खिलाड़ी रह जाएगा. जब धरती पर वह मनमानी करता रहता है तो जाहिर सी बात है कि अंतरिक्ष में भी उसका रवैया कोई अलग नहीं होगा. हालांकि भारत ने अपना स्पेस स्टेशन स्थापित करने की घोषणा की है लेकिन अभी यह तय नहीं है कि वह कब स्थापित होगा.
दुनिया में पूर्ण रूप से केवल अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन ही काम कर रहा है जिसमें अमेरिका, चीन, जापान, यूरोप और कनाडा की सहभागिता है. इसमें भले ही ये पांच देश शामिल रहे हैं लेकिन इसका लाभ दुनिया के कई देशों को मिलता रहा है. अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में इस स्पेस स्टेशन का योगदान वाकई कमाल का है. अब तक 18 देशों के 230 से अधिक व्यक्तियों ने स्पेस स्टेशन का दौरा किया है
जिसमें भारत की कल्पना चावला और भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स भी शामिल रही हैं. यह स्टेशन धरती से औसतन 400 किलोमीटर ऊपर करीब 28 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ता रहता है. 1998 से यह निरंतर काम करता रहा है लेकिन अब इसकी उम्र पूरी होने वाली है. निश्चित रूप से चीन ने इसी बात को ध्यान में रखते हुए अपने स्पेस स्टेशन का समय निर्धारित किया है. पिछले सप्ताह तीन चीनी यात्रियों को लेकर अंतरिक्ष यान निर्माणाधीन स्टेशन पर पहुंचा और सफलतापूर्वक उसने तीनों को स्टेशन में पहुंचा दिया.
अंतरिक्ष में चीन की सफलता वाकई कमाल की रही है. जब दुनिया के दूसरे देश यह मानकर चल रहे थे कि अंतरिक्ष में चीन पिछड़ रहा है तब चीन ने चुप्पी साधे रखी लेकिन चुपके चुपके वह तैयारियां कर रहा था. 2011 में उसने ‘हेवेनली प्लेजर’ नाम का एक प्रोटोटाइप स्पेस स्टेशन वायुमंडल में भेजा. शुरुआती सफलता के बाद 2016 में उससे चीन का संपर्क टूट गया और 2018 में वह दक्षिण प्रशांत महासागर में गिर गया.
उस समय पूरी दुनिया चिंतित थी क्योंकि चीन यह बता ही नहीं रहा था कि उस प्रोटोटाइप स्टेशन के वजनी टुकड़े कहां गिरेंगे? ऐसी और भी कई घटनाएं हुई हैं जिनमें चीन का रवैया सबकुछ छिपाने वाला रहा है. अमेरिका और रूस के साथ ही भारत ने हमेशा ही अपने रॉकेट को छोड़ने के बाद पृथ्वी की कक्षा में लौटने तक उस पर नियंत्रण रखा है लेकिन चीन ऐसा नहीं करता. जब भी उसके रॉकेट फेल हुए तो दुनिया भर के वैज्ञानिक सकते में आ गए कि पता नहीं गिरते हुए रॉकेट के टुकड़े कहां तबाही मचाएंगे? कई दुर्घटनाएं हुई भी हैं. इन सारी चिंताओं के बावजूद चीन ने अंतरिक्ष में काफी सफलताएं अर्जित की हैं. 2019 में उसने चांद पर पहला मानव रहित रोवर उतार दिया और ऐसा कमाल दिखाने वाला पहला देश बन गया. मंगल को लेकर भी उसकी प्रगति अच्छी रही है.
अमेरिका तो इसे लेकर चिंता जता भी चुका है. भारतीय दृष्टिकोण से देखें तो चीन हमारे लिए सबसे बड़ा खतरा है और चीन का यह स्पेस स्टेशन हमारे पड़ोसी पाकिस्तान के तो काम आएगा ही. हालांकि भारत इस स्थिति को समझता है इसलिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) इस दिशा में तेजी से काम कर रहा है और भारतीय स्पेस स्टेशन स्थापित करने की घोषणा की भी जा चुकी है लेकिन यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि यह कब तक स्थापित हो पाएगा. हालांकि अंतरिक्ष में नजर रखने के लिए हमारे पास अपने सैटेलाइट हैं लेकिन एक स्पेस स्टेशन की बात ही अलग होती है. वहां अंतरिक्ष यात्री स्वयं मौजूद रहते हैं. हमें उम्मीद करनी चाहिए कि भारत भी इस दिशा में तेजी से काम करेगा. चीन अपना स्टेशन स्थापित करने वाला पहला देश बनने जा रहा है तो कम से कम दूसरे स्थान पर हम तो रहें.
जहां तक चीन की महत्वाकांक्षा का सवाल है तो वह न केवल धरती बल्कि अंतरिक्ष में भी राज करना चाहता है. अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में महाशक्ति बनने की चाहत वह खुले रूप से प्रदर्शित भी करता रहा है. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने तो 2049 का लक्ष्य भी निर्धारित कर दिया है. उस साल चीनी कम्युनिस्ट शासन अपनी स्थापना के 100 साल पूरे करेगा. सामान्य तौर पर देखें तो इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए लेकिन चीन एक ऐसा देश है जिस पर किसी भी सूरत में भरोसा नहीं किया जा सकता. वह अपने बारे में दुनिया को उतनी ही जानकारी देता है जितना उसके हक में हो.
अंतरिक्ष के मामले में भी अभी तक दुनिया ने यही महसूस किया है. इसलिए शंका व्यक्त की जा रही है कि अंतरिक्ष में अपनी शक्ति का इस्तेमाल वह धरती पर युद्ध में कर सकता है. वह अमेरिका को मात देना चाहता है और इसके लिए वह किसी भी सीमा तक जा सकता है. दुनिया की चाहत केवल इतनी है कि अंतरिक्ष विज्ञान का इस्तेमाल शांतिपूर्ण तरीके से अपने विकास के लिए करे लेकिन इसका इस्तेमाल किसी को दबाव में लाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए.एक बात तो तय है कि 2024 में अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन समाप्त होने के बाद दूसरे देशों या देशों के समूह का स्पेस स्टेशन होना ही चाहिए ताकि चीन पर काबू रखा जा सके.