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विजय दर्डा का नजरियाः पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों का सफाया करें

By विजय दर्डा | Updated: February 18, 2019 04:44 IST

चले गए जो हंसते- हंसते बांध अपने सर पे कफन/ उन शहीदों के बलिदान को मेरा शत्-शत् नमन.

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मुझे न तन चाहिए, न धन चाहिए/ बस अमन से भरा यह वतन चाहिए/ जब तक जिंदा रहूं, इस मातृभूमि के लिए/ और जब मरूं तो तिरंगा कफन चाहिए.

ये पंक्तियां देश पर न्यौछावर होने के लिए तैयार हर भारतीय जवान के दिल की हुंकार हैं. सीमा पर मातृभूमि की रक्षा के लिए मुस्तैद हर सपूूत देश की अमूल्य धरोहर है और जब कोई उस पर कायराना हमला करता है तो देशवासियों का खून खौलने लगता है.

गुरुवार को कश्मीर में पुलवामा जिले के अवंतीपोरा में आतंकवादी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के हमले में केंद्रीय आरक्षित पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 40 जवानों के प्राण मां भारती के चरणों में  न्यौछावर हुए तो तमाम देशवासियों की तरह मेरे हृदय में भी भावनाओं  का ज्वार उठा. मेरा हृदय पीड़ा से कराहने लगा, गुस्से से उबलने लगा और दुश्मनों से बदला लेने के लिए छटपटाने लगा. पीड़ा हमले में इतनी बड़ी संख्या में जवानों के प्राण गंवाने की, गुस्सा सीमा पार से बार-बार होने वाले आतंकी हमलों पर और छटपटाहट हमारे जांबाजों की लगातार शहादत के बाद भी पाकिस्तान में बैठे आतंकियों के आकाओं को जीवन भर का सबक न सिखा पाने की. पुलवामा हमले के बाद तो देश का  हर नागरिक चाहता है कि पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों के ठिकाने ध्वस्त किए जाएं.

मेरे मन में बार-बार यह सवाल उठता है कि 9/11 के हमले के बाद अमेरिका में आतंकवादी दुबारा घुसने की हिम्मत नहीं कर पाते, 1972 के म्यूनिख ओलंपिक हमले के बाद दहशतगर्द दुबारा इजराइल की ओर आंख उठाकर  देखने का साहस जुटा नहीं पाते, रूस में आतंकी हमले पांच साल में 144 से घटकर 30 तक सिमट जाते हैं तो फिर हमारा देश क्यों इतना लाचार है. 1988 से 7 जनवरी 2018 तक  भारत में छोटे-बड़े  47234 आतंकवादी हमले हो चुके हैं. आतंकियों ने हमारे देश में लोकतंत्र की सबसे पवित्र तथा सर्वोच्च संस्था संसद और हमारी अस्मिता के प्रतीक लाल किले तक को निशाना बनाया. विडंबना देखिए, इसके बावजूद हम सीमा पार से चलने वाले आतंकवाद को नेस्तनाबूद नहीं कर सके और न ही इस जहरीले सांप को पालने वाले पाकिस्तान के नापाक इरादों को कुचल सके. 1972 में जब जर्मनी के म्यूनिख में हुए ओलंपिक खेलों में ‘ब्लैक सप्टेंबर’ नामक फिलिस्तीनी आतंकी संगठन ने 11 इजराइली खिलाड़ियों की हत्या कर दी थी तो यह छोटा सा देश खामोश नहीं बैठा. उसने इस हमले में शामिल एक-एक आतंकी को दुनिया के कोने-कोने में ढूंढकर मारा. आतंकवाद के खिलाफ हमारे नाम भी गर्व करने लायक उपलब्धि है. नब्बे के दशक में पंजाब से आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने में पी.वी. नरसिंह राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को कामयाबी मिली थी.  हमें सोचना होगा कि आतंकवाद को कुचलने में हम क्यों कामयाब नहीं हो पा रहे हैं. या तो हमारे खुफिया तंत्र में कुछ कमजोरियां हैं या हम आतंकी हरकतों पर निगाह रखते के लिए आधुनिकतम तकनीक का पर्याप्त उपयोग नहीं कर पा रहे हैं. हमें इजराइल तथा अमेरिका जैसे देशों से आतंकवाद से निपटने के लिए तरकीब और कौशल सीखना होगा. आश्चर्य है कि खुफिया तंत्र से पूर्व जानकारी मिलने के बावजूद हम यह हमला रोक नहीं सके. 

हमें यह भी संकल्प करना होगा कि अगर पाकिस्तान आतंकियों से निपटने में अक्षम है तो हम उसके यहां घुसकर आतंकी ठिकानों एवं दहशतगर्दो का सफाया कर दें. पाकिस्तान को 1971 जैसा सबक सिखाने के लिए इंदिरा गांधी के जैसा जज्बा और संकल्प चाहिए. 

 मैं एक बात और कहना चाहूंगा. आतंकवाद एक राष्ट्रीय मसला है, इसे राजनीतिक नजरिए से न देखें. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी तथा तमाम विपक्षी दलों ने पुलवामा हमले के बाद सरकार के साथ एकजुटता का प्रदर्शन किया है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने लखनऊ में अपनी प्रेस कांफ्रेंस रद्द कर शहीदों को श्रद्धासुमन अर्पित कर एक मिसाल पेश की. जब आतंकवाद जैसा संवेदनशील मसला हो तब राष्ट्रीय मसलों पर आम सहमति होनी चाहिए. पुलवामा आतंकी हमले पर विपक्ष ने दलगत हितों से परे हट देश को महत्व दिया है. मैं उनका अभिनंदन करता हूं. इसके अलावा हमारे देश में मीडिया को भी- चाहे वह प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया-ऐसे मौकों पर संयम बरतने की जरूरत है.

सुरक्षा बलों की शहादत पर मेरी राय है कि सेना के जवानों की तरह सीआरपीएफ, बीएसएफ,  आईटीबीपी के जवानों को भी मातृभूमि के लिए प्राण न्यौछावर करने पर शहीद का दर्जा मिले. सेना के शहीद जवानों के परिवारों की तरह उनके परिवारों को भी तमाम सुविधाएं मिलें. मैं जैसलमेर गया था. वहां भारत - पाकिस्तान सीमा पर मैंने महज 100 मीटर की दूरी पर सुरक्षा बलों के जवानों को राष्ट्र की रक्षा करते हुए पाया. सीमा कश्मीर से लगी हो या राजस्थान अथवा गुजरात या पूवरेत्तर से, हमला सबसे पहले केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के जवान ही ङोलते हैं तथा शत्रु का डटकर मुकाबला करते हैं. फिर उन्हें क्यों प्राण गंवाने पर शहीद के दज्रे से वंचित रखा जा रहा है?

पुलवामा हमले में शहीद परिवारों ने अपना प्रियतम खोया और देश ने जांबाज सपूत. शहीद परिवारों पर दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा है लेकिन उनके हौसले बुलंद हैं. वे गर्व से कह रहे हैं कि उनका एक सुपुत्र शहीद हुआ है, वह दूसरे को भी भारत माता की रक्षा के लिए भेजेंगे. जिस देश की माताओं की कोख से वीर सपूत जन्म लेते हैं, उसे आतंकवाद तो क्या दुनिया की बड़ी से बड़ी शक्ति विचलित नहीं कर सकती.

चले गए जो हंसते- हंसते बांध अपने सर पे कफन/ उन शहीदों के बलिदान को मेरा शत्-शत् नमन.

टॅग्स :पुलवामा आतंकी हमलासीआरपीएफआतंकी हमला
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