विजय दर्डा का ब्लॉगः मिलावट पर रोक क्यों नहीं लगा पाती सरकार?
By विजय दर्डा | Published: November 26, 2018 01:54 PM2018-11-26T13:54:58+5:302018-11-26T13:54:58+5:30
आपको पता है कि हल्दी में पीली मिट्टी मिलाने के सैकड़ों प्रकरण सामने आ चुके हैं? आप काली मिर्च खरीदते हैं तो क्या आप यह देखते हैं कि इसमें पपीते के बीज कितने मिले हैं? हम अमूमन नहीं देखते हैं और इस तरह मिलावटखोरी के शिकार होते रहते हैं.
आपने दुकानों पर लगे बोर्ड पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ पढ़ा होगा कि यहां शुद्ध घी मिलता है, यहां शुद्ध तेल मिलता है या यहां शुद्ध दूध मिलता है! यहां बिना मिलावट वाले मसाले मिलते हैं! विज्ञापनों में भी शुद्धता के दावे खूब किए जाते हैं. जाहिर सी बात है कि ‘शुद्ध’ शब्द लिखने की जरूरत इसलिए पैदा हुई है क्योंकि मिलावट हमारी जिंदगी में बुरी तरह शामिल हो चुका है. एक अविश्वास का वातावरण है कि हम जो खरीद रहे हैं वह शुद्ध है या नहीं?
मिलावट का बाजार पूरे देश में फैला हुआ है. गांव से लेकर शहर तक! लेकिन शहर इसकी चपेट में ज्यादा हैं क्योंकि शहरों में सबकुछ ‘रेडी टू यूज’ यानी डिब्बाबंद चाहिए! गांव में आज भी लोग कोशिश यही करते हैं कि खुद हल्दी पिसवा लें लेकिन शहर में यह दस्तूर करीब-करीब खत्म हो चुका है. क्या आपको पता है कि हल्दी में पीली मिट्टी मिलाने के सैकड़ों प्रकरण सामने आ चुके हैं? आप काली मिर्च खरीदते हैं तो क्या आप यह देखते हैं कि इसमें पपीते के बीज कितने मिले हैं? हम अमूमन नहीं देखते हैं और इस तरह मिलावटखोरी के शिकार होते रहते हैं. देख भी लें तो मिलावट इतने शातिराना तरीके से होती है कि पकड़ नहीं पाते हैं.
मिलावट को पकड़ने के लिए सरकार ने पूरा अमला स्थापित कर रखा है. कानून की कोई कमी नहीं है. मिलावट रोकने को लेकर आजादी के पहले भी कानून थे और उसके बाद भी कानून बने. 1954 में खाद्य अपमिश्रण निवारक अधिनियम (प्रिवेंशन ऑफ फूड एडल्टरेशन एक्ट) बनाया गया. अगले साल यानी 1955 में इसे लागू भी कर दिया गया लेकिन मिलावट पर रोक लगाने में सफलता नहीं मिली.
मैंने पार्लियामेंट की कमेटी में यह मामला कई बार उठाया कि शुद्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए. इसके बाद कानून में कुछ और प्रावधान जोड़े भी गए लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं. कानून को लागू करने वाला अमला सक्रियता नहीं दिखाता है. अभी महाराष्ट्र सरकार ने विधानसभा में एक बिल पारित करके सुनिश्चित किया है कि मिलावट करने वालों को आजीवन कारावास की सजा मिले.
लेकिन सवाल वही है कि क्या सभी मिलावटखोरों को जेल भेजना संभव हो पाएगा? बड़ी सीधी सी बात है कि जब तक कानून को लागू करने वाले अमले को सशक्त और उस विभाग की कार्यप्रणाली को पारदर्शी नहीं बनाया जाता तब तक मिलावट करने वालों को कानून का डर नहीं रहेगा! खाद्य निरीक्षकों को उत्तरदायी बनाना होगा कि यदि उनके क्षेत्र में मिलावटखोरी पाई गई तो उन्हें भी दंडित किया जाएगा. जब इस तरह की व्यवस्था हम करेंगे तभी समस्या को काबू में किया जा सकता है.
यह कितनी बड़ी विडंबना है कि विदेशों में ए टू गाय का दूध और घी प्रचलित हो रहा है क्योंकि वह काफी सेहतमंद होता है लेकिन क्या भारत में हमें उस गुणवत्ता का दूध या घी मिल रहा है? आप में से बहुत से लोगों ने महसूस किया होगा कि आपके घर तक जो दूध पहुंचता है वह मानक के अनुरूप नहीं होता. आप केवल दूध वाले से शिकायत करते रहते हैं. क्या आपको पता है कि गाय के दूध में फैट की मात्र औसतन 3.5 प्रतिशत जरूर रहनी चाहिए? इसी तरह भैंस के दूध में फैट कम से कम 5 प्रतिशत तो होना ही चाहिए. क्या इतने फैट वाला दूध मिलता है आपको? त्यौहारों में मिलावटी मावा तो हमारी किस्मत में ही शामिल हो चुका है. पनीर और दही भी शुद्ध नहीं मिलता है.
आप में से बहुत से लोगों को यह अंदाजा भी नहीं होगा कि सब्जियों को गहरा हरा दिखाने के लिए रंग का उपयोग होता है. फलों को आकर्षक बनाने के लिए वैक्स की पॉलिश की जाती है. रसीला बनाने के लिए इंजेक्शन दिए जाते हैं. यानी जो फल हम सेहत के लिए खाते हैं, वह जहर बन जाता है. इस सबका असर हमारे स्वास्थ्य पर होता है. इसके कारण हम बीमार भी होते हैं और उपचार के लिए अलग से पैसा खर्च करना पड़ता है. मिलावटखोरों के हौसले इतने बुलंद हैं कि वे दवाइयों में भी मिलावट करने लगे हैं. सरकारी अस्पतालों में दवाइयों की जो खरीदी होती है, वह हमेशा शंका के घेरे में रहती है. मिलावट का यह हाल है कि हमारी सड़कें भी इससे अछूती नहीं हैं. सड़कें घटिया बन रही हैं.
दरअसल मिलावटखोरों में डर नाम की चीज बची ही नहीं है. वे प्रशासनिक लापरवाही के कारण बच निकलते हैं. मेरा स्पष्ट मानना है कि मिलावटखोरों के खिलाफ पूरे भारत में एक साथ महाअभियान चलाया जाना चाहिए. कठोर दंड मिलना चाहिए. मैं मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को बधाई देता हूं कि उन्होंने एक सशक्त कदम उठाया है. उम्मीद करें कि आजीवन कारावास के भय से मिलावटखोर घबराएंगे और ऐसी करतूतों से बचेंगे.