विजय दर्डा का ब्लॉग: ये वक्त वैज्ञानिकों की हौसला अफजाई का है

By विजय दर्डा | Published: September 9, 2019 06:35 AM2019-09-09T06:35:21+5:302019-09-09T06:35:21+5:30

करीब 2.1 किलोमीटर पहले विक्रम रास्ता भटक गया और चांद से महज 335 मीटर की दूरी पर धरती से संपर्क खो बैठा. मैं प्रधानमंत्री की बात से पूरी तरह सहमत हूं कि चंद्रयान-2 की यात्र शानदार रही, जानदार रही! मैंने इसरो में अपने वैज्ञानिकों को काम करते हुए देखा है.

Vijay Darda's blog Over chandrayaan2: This is the time for the courage of scientists | विजय दर्डा का ब्लॉग: ये वक्त वैज्ञानिकों की हौसला अफजाई का है

विजय दर्डा का ब्लॉग: ये वक्त वैज्ञानिकों की हौसला अफजाई का है

चंद्रयान-2 से हमें वो परिणाम भले ही न मिले हों जिसकी हम आशा कर रहे थे, पर इस अभियान को हम असफल किसी भी सूरत में नहीं कहेंगे. चंद्रयान-2 ने 22 जुलाई को धरती से सफर शुरू करने के बाद करीब 3 लाख 80 हजार किलोमीटर की दूरी तय की. विक्रम ने लैंडिंग की शुरुआत भी बड़े शानदार तरीके से की.

वैज्ञानिक जिस अंतिम पंद्रह मिनट को दहशत का वक्त बता रहे थे, विक्रम ने उसे भी करीब-करीब पार कर लिया था, लेकिन उसके बाद कुछ हुआ. करीब 2.1 किलोमीटर पहले विक्रम रास्ता भटक गया और चांद से महज 335 मीटर की दूरी पर धरती से संपर्क खो बैठा. मैं प्रधानमंत्री की बात से पूरी तरह सहमत हूं कि चंद्रयान-2 की यात्र शानदार रही, जानदार रही! मैंने इसरो में अपने वैज्ञानिकों को काम करते हुए देखा है.

उनसे लंबी बातचीत का मुङो मौका मिला है. मुङो अपने वैज्ञानिकों पर पूरा भरोसा है और उसी भरोसे के साथ मैं कह सकता हूं कि चांद को हम जल्दी ही चूमेंगे. हमारे वैज्ञानिक हमेशा कुछ न कुछ नया सपना देखते हैं, उनके भीतर कुछ नया करने का जज्बा कूट-कूूट कर भरा होता है इसलिए तकनीकी परेशानियां उन्हें परेशान नहीं करती हैं बल्कि नए हौसले के साथ वे समाधान ढूंढने में लग जाते हैं. इस बार भी यही होगा. जल्दी ही वे नए मिशन को अंजाम दे रहे होंगे.

वैज्ञानिकों के हौसले कितने बुलंद होते हैं, इसका एक उदाहरण इसी चंद्रयान-2 से जुड़ा हुआ है. 2007 में रूस के साथ इसरो का अनुबंध हुआ और तय किया गया कि एक लैंडर और रोवर चांद के उस दक्षिणी ध्रुव पर भेजा जाएगा जहां कोई देश अपना यान उतार नहीं पाया है.

तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2008 में इस महत्वाकांक्षी अभियान को स्वीकृति प्रदान की. इस अभियान में हमें रूस की ओर से लैंडर मिलने वाला था. न जाने क्यों रूस लैंडर देने का मामला टालता रहा और 2016 में उसने मना कर दिया. हमारे वैज्ञानिकों ने इसे चुनौती की तरह लिया और तय किया कि खुद का लैंडर विकसित करेंगे. केवल दो साल की अवधि में उन्होंने यह करिश्मा कर दिखाया! भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के पितामह विक्रम साराभाई के नाम पर बना यह लैंडर (विक्रम) पूरी तरह भारतीय है. ..तो इतने करिश्माई हैं हमारे वैज्ञानिक !

हमारे वैज्ञानिक कितना हौसला रखते हैं, इसका उदाहरण तभी मिल गया था जब प्रक्षेपण स्थल तैयार करने की बात आई. डॉ. होमी भाभा और विक्रम साराभाई ऐसी जगह की तलाश में घूम रहे थे जहां से प्रक्षेपण आसान हो. अंतत: वे त्रिवेंद्रम के पास मछुआरों के एक गांव थुंबा जा पहुंचे. थुंबा मैग्नेटिक इक्वेटर के पास है इसलिए उसका चयन किया गया.

समस्या यह थी कि उस इलाके में एक बहुत पुराना चर्च मौजूद था. विक्रम साराभाई ने राजनेताओं से और अधिकारियों से मदद मांगी, लेकिन सबका यह कहना था कि चर्च को हटाना संभव नहीं है. तो एक दिन साराभाई चर्च के बिशप पीटर बर्नार्ड परेरा के पास जा पहुंचे और उन्हें अपनी योजनाओं से अवगत कराया. बिशप ने तत्काल तो कोई जवाब नहीं दिया लेकिन इतना जरूर कहा कि रविवार की प्रार्थना सभा में आइए!

साराभाई रविवार को वहां जा पहुंचे. बिशप पीटर बर्नार्ड परेरा ने प्रार्थना सभा में मौजूद श्रद्धालुओं से कहा कि मेरे साथ यहां एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक हैं जो स्पेस रिसर्च के लिए यह स्थान हमसे चाहते हैं. विज्ञान सत्य को सामने लाता है और इंसानी जिंदगी को बेहतर बनाने में मदद करता है. मैं धर्म के माध्यम से लोगों के मन में शांति लाने का प्रयास करता हूं. इसका मतलब है कि जो मैं कर रहा हूं या विक्रम साराभाई कर रहे हैं वह एक ही है. साराभाई ने मुङो भरोसा दिलाया है कि 6 महीने में नया चर्च बन जाएगा. क्या हम इन्हें गॉड का ये घर, मेरा घर और आपका घर देने को तैयार हैं? श्रद्धालुओं के बीच से आवाज आई- आमीन!

जाहिर है कि यह विक्रम साराभाई का प्रयास ही था जिसके कारण थुंबा प्रक्षेपण स्थल के रूप में विकसित हो पाया. 21 नवंबर 1963 को यहां से भारत ने साउंडिंग रॉकेट प्रक्षेपित किया जिसे भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत के रूप में देखा जाता है.

कहने का आशय यह है कि हमारे वैज्ञानिकों के भीतर गजब का हौसला है. गजब की तीक्ष्णता है. समस्याओं से वे विचलित नहीं होते बल्कि नई शक्ति, नई ऊर्जा के साथ काम में जुट जाते हैं. हमारे वैज्ञानिकों  की तारीफ नासा ने भी की है. मुङो विश्वास है कि इस बार भी वैज्ञानिक सफल होंगे. ऑर्बिटर ने तो विक्रम का पता भी लगा लिया है और उससे संपर्क साधने की कोशिश भी वैज्ञानिक कर रहे हैं.

मैं तारीफ करना चाहूंगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की, जिन्होंने इसरो अध्यक्ष के. सिवन को गले लगाया. उनकी भावनाओं को समझा, उनके दर्द को समझा और उन्हें सहलाया. वह भावनात्मक पल था. प्रधानमंत्री के इस भावनात्मक व्यवहार ने लोगों के दिलों को छू लिया. अपने इस व्यवहार से प्रधानमंत्री ने वैज्ञानिकों की हौसला अफजाई की है. हम सभी को इस हौसला अफजाई में शामिल होना चाहिए. हमें अपने वैज्ञानिकों के साथ खड़ा रहना चाहिए. हमारे वैज्ञानिक करिश्मा करते रहेंगे.

Web Title: Vijay Darda's blog Over chandrayaan2: This is the time for the courage of scientists

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