ब्लॉग: सत्येंद्र जैन की मालिश का वीडियो- कम नहीं हो रहे जेल में ऐशोआराम के किस्से
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: November 21, 2022 11:32 AM2022-11-21T11:32:16+5:302022-11-21T11:33:11+5:30
मौजूदा सच यही लगता है कि बड़ी संख्या में अपराधियों को जेल का डर नहीं है. यदि किसी के पास जेलों में सुविधाओं का प्रबंध करने की क्षमता है तो उसे अधिक चिंता करने की जरूरत नहीं है.
मनी लांड्रिंग मामले में तिहाड़ जेल में बंद दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन की मालिश के वीडियो से एक बार फिर जेलों में कैदियों को अवैध रूप से दी जा रही सुविधाएं चर्चा में हैं. हालांकि इसी सप्ताह तिहाड़ जेल के अधीक्षक को ‘वीआईपी ट्रीटमेंट’ देने के आरोप में निलंबित कर दिया गया था. फिर भी यह पहली और अलग घटना नहीं कही जा सकती है.
पिछले ही दिनों महाराष्ट्र के एक नेता जेल में अच्छे-खासे दिन बिताकर बाहर आए तो उनके काले बाल, कपड़े और चेहरा देखकर कोई नहीं कह सकता था कि वह जेल से बाहर आए हैं या कहीं से तैयार होकर आ रहे हैं. बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब जैसे अनेक राज्यों में बाहुबलियों और बहुचर्चित लोगों के जेल के किस्से मशहूर हैं. मोबाइल फोन से लेकर मादक पदार्थ और खाने से लेकर मनोरंजन तक सब उन्हें जेल की चारदीवारी में आसानी से मिल जाता है.
यही वजह है कि बड़ी संख्या में अपराधियों को जेल का डर नहीं है. यदि किसी के पास जेलों में सुविधाओं का प्रबंध करने की क्षमता है तो उसे अधिक चिंता करने की जरूरत नहीं है. स्पष्ट है कि जेलों में कैदियों को अवैध सुविधाएं मिल रही हैं तो उन पर जेल अधिकारियों-कर्मचारियों की सहमति अवश्य होगी. एक तरफ यह कहा जाता है कि जेलों में आम जरूरत की सुविधाएं नहीं मिलती हैं. इलाज तक की व्यवस्था काफी कमजोर रहती है.
मगर कुछ के मालिश कराने के दृश्य भी सामने आ जाते हैं. कई बार कैदियों की तड़पते हुए मौत भी हो जाती है और जेल प्रशासन कुछ नहीं करता है, क्योंकि उनके पास न तो पैसा होता है और न ही ‘पॉवर’. राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (सीएचआरआई) की जून 2022 की रिपोर्ट बताती है कि भारतीय जेलों में 4,88,511 कैदी हैं, जिनमें से 3,71,848 (76 प्रतिशत) विचाराधीन हैं. इनमें से ज्यादातर गरीब, अनपढ़ हैं.
इसके अलावा देश की लगभग सभी बड़ी जेलों में कैदियों की संख्या क्षमता से कई गुना अधिक है. इससे साफ है कि भारतीय जेलों में एक तरफ जहां दबाव है तो दूसरी तरफ उसके बीच ऐशो-आराम करने वाले कैदी भी हैं, जो बिंदास होकर जेलों में भी मौज काट रहे हैं.
सरकारों के पास इस समस्या का इलाज चंद अधिकारियों और कर्मचारियों को निलंबित कर बात को रफा-दफा करना है. कोई भी सरकार ठोस व्यवस्था करने के लिए तैयार नहीं है. राजनीति के खेल में कब-कौन अंदर-बाहर हो जाए, कहा नहीं जा सकता है. इसलिए ढुलमुल व्यवस्था से अगर सबका भला हो, तो भला किसको लग सकता है बुरा!