वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः भारत में महिला जजों की भारी कमी
By वेद प्रताप वैदिक | Published: September 28, 2021 11:27 AM2021-09-28T11:27:11+5:302021-09-28T11:31:54+5:30
देश के वकीलों में सुयोग्य महिलाओं की कमी नहीं होगी लेकिन दुर्भाग्य है कि देश के 17 लाख वकीलों में मुश्किल से 15 प्रतिशत महिलाएं हैं। राज्यों के वकील संघों में उनकी सदस्यता सिर्फ दो प्रतिशत है और भारत की बार कौंसिल में एक भी महिला नहीं है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश एन।वी। रमणा ने पिछले हफ्ते भारत की न्याय व्यवस्था को भारतीय भाषाओं में चलाने की वकालत की थी, इस हफ्ते उन्होंने एक और कमाल की बात कह दी है। उन्होंने भारत की अदालतों में महिला जजों की कमी पर राष्ट्र का ध्यान खींचा है। उन्होंने कहा है कि भारत के सभी न्यायालयों के जजों में महिलाओं की 50 प्रतिशत नियुक्ति क्यों नहीं होती?
सबसे पहले हम यह समझें कि आंकड़े क्या कहते हैं। हमारे सर्वोच्च न्यायालय में इस समय 34 जज हैं। उनमें से सिर्फ चार महिलाएं हैं। अभी तक सिर्फ 11 महिलाएं इस अदालत में जज बन सकी हैं। छोटी अदालतों में महिला जजों की संख्या ज्यादा है लेकिन वह भी 30 प्रतिशत से ज्यादा नहीं है। इस समय देश की अदालतों में कुल मिलाकर 677 जज हैं। इनमें से महिला जज सिर्फ 81 हैं यानी सिर्फ 12 प्रतिशत ! प्रदेशों के उच्च न्यायालयों में 1098 जज होने चाहिए लेकिन 465 पद खाली पड़े हैं। इन पदों पर महिलाओं को प्राथमिकता क्यों नहीं दी जाती ? महिलाओं को या किसी को भी जो 50 प्रतिशत आरक्षण मिले, उसमें योग्यता की शर्त अनिवार्य होनी चाहिए।
देश के वकीलों में सुयोग्य महिलाओं की कमी नहीं होगी लेकिन दुर्भाग्य है कि देश के 17 लाख वकीलों में मुश्किल से 15 प्रतिशत महिलाएं हैं। राज्यों के वकील संघों में उनकी सदस्यता सिर्फ दो प्रतिशत है और भारत की बार कौंसिल में एक भी महिला नहीं है। देश में कुल मिलाकर 60 हजार अदालतें हैं लेकिन लगभग 15 हजार में महिलाओं के लिए शौचालय नहीं हैं। हमारे इस पुरुष प्रधान देश की तुलना जरा हम करें, यूरोप के देश आइसलैंड से! वहां हुए संसद के चुनाव में 63 सांसदों में 33 महिलाएं चुनी गई हैं यानी 52 प्रतिशत। वहां की प्रधानमंत्री भी महिला ही हैं- श्रीमती केटरीन जेकबस्डोटिर। उसके पड़ोसी देश स्वीडन की संसद में 47 प्रतिशत महिलाएं हैं और अफ्रीका के रवांडा में 61 प्रतिशत हैं। दुनिया के कई पिछड़े हुए देशों में भी उनकी संसद में भारत के मुकाबले ज्यादा महिलाएं हैं। भारत गर्व कर सकता है कि उसके राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष पद पर महिलाएं रह चुकी हैं लेकिन देश के मंत्रिमंडलों, संसद और अदालतों में महिलाओं को समुचित प्रतिनिधित्व मिले, यह आवाज अब जोरों से उठनी चाहिए। इस स्त्री-पुरु ष समता का शुभारंभ हमारे राजनीतिक दल ही क्यों नहीं करते?