वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः रेवड़ियां बांटने की राजनीति पर प्रहार

By वेद प्रताप वैदिक | Published: August 13, 2022 02:16 PM2022-08-13T14:16:26+5:302022-08-13T14:16:42+5:30

आजकल हमारी प्रांतीय सरकारें लगभग 15 लाख करोड़ रु. के कर्ज में डूबी हुई हैं। वे रेवड़ियां बांटने में एक-दूसरे से आगे निकलने के लिए उतावली हो रही हैं। कुछ सरकारों ने तो अपने नागरिकों को बिजली और पानी मुफ्त में देने की घोषणा कर रखी है।

Vedpratap Vaidik blog An attack on the politics of distributing the ravadis | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः रेवड़ियां बांटने की राजनीति पर प्रहार

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः रेवड़ियां बांटने की राजनीति पर प्रहार

आजकल देश की लगभग सभी राजनीतिक पार्टियां थोक वोट बटोरने के लालच में मतदाताओं को तरह-तरह की चीजें उपहार में बांटती रहती हैं। कई राज्य सरकारों ने अपनी महिला वोटरों को मुफ्त साड़ियां, सोने की चेन, बर्तन, मिक्सी-ग्राइंडर और बच्चों को कम्प्यूटर, पोशाक आदि मुफ्त भेंट किए हैं। कई प्रदेश सरकारों ने मुफ्त साइकिलें भी भेंट में दी हैं। इसका नतीजा क्या होता है? यह होता है कि हमारी प्रांतीय सरकारें गले तक कर्ज में डूब जाती हैं। वे डूब जाएं तो डूब जाएं, मुफ्त रेवड़ियां बांटने वाले नेता तो तिर जाते हैं। 

आजकल हमारी प्रांतीय सरकारें लगभग 15 लाख करोड़ रु. के कर्ज में डूबी हुई हैं। वे रेवड़ियां बांटने में एक-दूसरे से आगे निकलने के लिए उतावली हो रही हैं। कुछ सरकारों ने तो अपने नागरिकों को बिजली और पानी मुफ्त में देने की घोषणा कर रखी है। महिलाओं के लिए बस-यात्रा मुफ्त कर दी गई है। इसका नतीजा यह है कि हमारी सरकारें देश के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में बहुत पिछड़ गई हैं। देश में गरीबी, बेरोजगारी, रोग और भुखमरी का बोलबाला है। इसी को लेकर आजकल सर्वोच्च न्यायालय में जमकर बहस चल रही है। एक याचिका में मांग की गई है कि उन राजनीतिक दलों को अवैध घोषित कर दिया जाना चाहिए, जिनकी सरकारें मुफ्त की रेवड़ियां बांटती हैं। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय की राय है कि यह तय करना न्यायालय नहीं, संसद का काम है। 

सर्वोच्च न्यायालय ने एक कमेटी बना दी है, जिसमें केंद्र सरकार के अलावा कई महत्वपूर्ण संस्थाओं के प्रतिनिधि अपने सुझाव देंगे। चुनाव आयोग ने इसका सदस्य बनने से इंकार कर दिया है, क्योंकि वह एक संवैधानिक संगठन है। सच्चाई तो यह है कि यह बहुत ही पेचीदा मामला है। सरकारें यदि राहत की राजनीति नहीं करेंगी तो उनका कोई महत्व ही नहीं रह जाएगा। यदि बाढ़ग्रस्त इलाकों में सरकारें खाद्य-सामग्री नहीं बांटेंगी तो उनका रहना और न रहना एक बराबर ही हो जाएगा। इसी तरह महामारी के दौरान 80 करोड़ लोगों को दिए गए मुफ्त अनाज को क्या कोई रिश्वत कह सकता है? वास्तव में भारत-जैसे विकासशील राष्ट्र में शिक्षा और चिकित्सा को सर्वसुलभ बनाने के लिए जनता को जो भी राहत दी जाए, वह सराहनीय मानी जानी चाहिए लेकिन शेष सभी रेवड़ियों को परोसे जाने के पहले न्याय के तराजू पर तौला जाना चाहिए।

Web Title: Vedpratap Vaidik blog An attack on the politics of distributing the ravadis

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