वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: युद्धस्तर पर लड़नी होगी कोविड से लड़ाई
By वेद प्रताप वैदिक | Published: May 4, 2021 12:39 PM2021-05-04T12:39:26+5:302021-05-04T12:42:29+5:30
कोरोना संकट ने भारत को झकझोर कर रख दिया है. लोग अस्पताल के बाहर कारों, फुटपाथों और बरामदों में पड़े दम तोड़ रहे हैं. इस संकट से जल्द निपटने की जरूरत है.
विदेशों से मिल रही जबर्दस्त मदद के बावजूद कोरोना मरीजों का जो हाल भारत में हो रहा है, उसने सारे देश को ऐसे हिलाकर रख दिया है, जैसे कि किसी युद्ध ने भी नहीं हिलाया था.
लोग यह समझ नहीं पा रहे हैं कि हजारों ऑक्सीजन-यंत्र और हजारों टन ऑक्सीजन के जहाजों के भारत पहुंचने के बाद भी कई अस्पतालों में मरीज क्यों मर रहे हैं?
उन्हें ऑक्सीजन क्यों नहीं मिल रही है? जो लापरवाही हमने बंगाल में चुनाव के दौरान देखी और कुंभ के मेले ने जैसे कोरोना को गांव-गांव तक पहुंचा दिया, उसे हम अभी भूल भी जाएं तो कम से कम इतना इंतजाम तो अभी तक हो जाना चाहिए था कि करोड़ों लोगों को टीका लग जाता. लेकिन अभी तक मुश्किल से तीन करोड़ लोगों को पूरे दो टीके लगे हैं. उन्हें भी 20-25 दिन बाद पूर्ण सुरक्षित माना जाएगा.
यदि डॉक्टरों और नर्सों की कमी है तो देश की फौज और पुलिस कब काम आएगी? यदि हमारे 20 लाख फौजी और पुलिस के जवान भिड़ा दिए जाएं तो वे कोरोना मरीजों को क्यों नहीं संभाल सकते हैं? फौज के पास तो अपने अस्पतालों और डॉक्टरों की भरमार है.
ऑक्सीजन सिलेंडरों को ढोने के लिए उसके पास क्या जहाजों और वाहनों की कमी है? फौज का इंजीनियरिंग विभाग इतना दक्ष है कि चुटकियों में सैकड़ों अस्पताल खड़े कर सकता है. दिल्ली में पांच हजार पलंगों के तात्कालिक अस्पताल का कितना प्रचार किया गया लेकिन खोदा पहाड़ और निकली चुहिया.
अभी तक वहां मुश्किल से दो सौ-ढाई सौ लोगों का ही इंतजाम हो पाया है. लोग अस्पताल के बाहर कारों, फुटपाथों और बरामदों में पड़े दम तोड़ रहे हैं. अस्पतालों के बाहर बोर्डों पर लिखा हुआ है कि सब वयस्कों को टीके नहीं लग पाएंगे, क्योंकि हैं ही नहीं.
सर्वोच्च न्यायालय और विविध उच्च न्यायालय सरकारों के कान जमकर खींच रहे हैं लेकिन उनका कोई ठोस असर होता दिखाई नहीं पड़ता.
केंद्र सरकार ने अभी तक विशेषज्ञों और जिम्मेदार अधिकारियों की कोई कमेटी भी नहीं बनाई है जो लोगों की समस्याओं को सुलझा सके और संकट में फंसे लोगों को राहत पहुंचा सके. अकेला स्वास्थ्य मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय इस अपूर्व संकट को कैसे झेल सकता है?
यह युद्ध से भी बड़ा संकट है. यह अपूर्व आफतकाल है. देश के विरोधी दल के नेता अपनी बयानबाजी बंद करें और सरकार उनसे भी निरंतर परामर्श और सहयोग ले, यह जरूरी है.
हम जब अपने प्रतिद्वंद्वी चीन से हजारों वेंटिलेटर और ऑक्सीजन जनरेटर ले रहे हैं तो मेरी समझ में नहीं आता कि हमारे नेतागण आपस में तकरार क्यों कर रहे हैं?
जो गैर-सरकारी स्वयंसेवी संगठन हैं, उनको भी सक्रिय किया जाए ताकि अति शीघ्र इस महामारी पर काबू पा लिया जाए. हर नागरिक को मुफ्त टीका लगे और हर मरीज का इलाज हो, यह जरूरी है.