वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: भारत व अमेरिका के बीच परस्पर सहयोग के नए आयाम
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 21, 2019 04:53 AM2019-12-21T04:53:26+5:302019-12-21T04:53:26+5:30
ट्रम्प ने भारत की नीतियों का समर्थन तो किया ही, अमेरिका के रक्षा मंत्नी मार्क एस्पर और विदेश मंत्नी माइक पोंपियो ने पाकिस्तान से पैदा हो रहे आतंकवाद की भी कड़ी भर्त्सना की और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संगठन से भी उस पर दबाव डलवाने का वादा किया. उन्होंने दोनों देशों की सेनाओं के तीनों अंगों के मिले-जुले अभ्यास की बात भी कही.
वेदप्रताप वैदिक
हमारे रक्षा मंत्नी राजनाथ सिंह और विदेश मंत्नी जयशंकर की ताजा अमेरिका-यात्ना दोनों देशों के संबंधों में कुछ नए आयाम जोड़ रही है. अब दोनों देश जब शस्त्न-निर्माण में आपसी सहयोग करेंगे तो गैर-सरकारी शस्त्न-निर्माताओं को वे तकनीकी जानकारी भी दे देंगे.
यह समझौता दोनों देशों के शस्त्न-निर्माण उद्योग को नया आयाम प्रदान करेगा लेकिन भारत के कुछ विपक्षी दल कह सकते हैं कि यह समझौता मोदी सरकार ने इसलिए किया है कि वह अपने कुछ प्रिय पूंजीपतियों को विशेष लाभ पहुंचाना चाहती है.
ऐसे आरोप फ्रांस के साथ हुए रक्षा-समझौते के दौरान भी लगाए गए थे. जो भी हो, इसमें शक नहीं है कि यदि शस्त्न-निर्माण का कार्य निजी क्षेत्नों में बढ़ेगा तो उम्मीद यही है कि वह बेहतर होगा और शस्त्नों की कीमतें भी यथोचित होंगी. तीसरी दुनिया के देशों को उचित कीमतों पर भारत का शस्त्न-निर्यात काफी बढ़ सकता है.
दोनों मंत्रियों को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मिलने का समय दिया, यह भी उल्लेखनीय घटना है, क्योंकि कल ही उनके विरुद्ध महाभियोग का मुकदमा अमेरिकी कांग्रेस के निचले सदन ने पारित किया है.
ट्रम्प ने भारत की नीतियों का समर्थन तो किया ही, अमेरिका के रक्षा मंत्नी मार्क एस्पर और विदेश मंत्नी माइक पोंपियो ने पाकिस्तान से पैदा हो रहे आतंकवाद की भी कड़ी भर्त्सना की और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संगठन से भी उस पर दबाव डलवाने का वादा किया. उन्होंने दोनों देशों की सेनाओं के तीनों अंगों के मिले-जुले अभ्यास की बात भी कही. अमेरिकी नेताओं ने पत्नकारों के सवालों का जवाब देते हुए चीन की भी कुछ आलोचना की.
लेकिन भारत बचा हो, ऐसा भी नहीं है. भारत में चल रहे नागरिकता-कानून विरोधी आंदोलन का जिक्र जरूर किया गया और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की बात भी पोंपियो ने जोर देकर कही. इस यात्ना के दौरान भारत-अमेरिका व्यापार की अड़चनों का मामला जहां था, वहीं अटका रहा. अमेरिका अपने राष्ट्रहितों की रक्षा बड़ी मुस्तैदी से करता है, इसका प्रमाण स्पष्ट है.