वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः धर्म-निरपेक्ष और धर्म-सापेक्ष का फर्क

By वेद प्रताप वैदिक | Published: February 24, 2022 11:55 AM2022-02-24T11:55:28+5:302022-02-24T12:03:44+5:30

मनु महाराज ने धर्म के ये लक्षण बताए हैं- धीरज, क्षमा, मन-नियंत्रण, चोरी या लालच से बचना, शरीर-मन-बुद्धि को शुद्ध रखना, इंद्रिय-संयम, बुद्धिप्रधान रहना, सत्याचरण और क्रोध-नियंत्रण। क्या कोई मजहब, पंथ या संप्रदाय धर्म के इन लक्षणों को अनुचित बता सकता है?

Vedapratap Vaidik Blog difference between secular and religious | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः धर्म-निरपेक्ष और धर्म-सापेक्ष का फर्क

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः धर्म-निरपेक्ष और धर्म-सापेक्ष का फर्क

भारत को धर्म-निरपेक्ष नहीं, धर्म-सापेक्ष राष्ट्र बनाएं, यह बात मैं कई दशकों से कहता रहा हूं लेकिन इसी बात को बलपूर्वक कहकर जैन मुनि विद्यासागरजी महाराज ने इस धारणा में चार चांद लगा दिए हैं। विद्यासागरजी दिगंबर जैन मुनि हैं। उनकी मातृभाषा कन्नड़ है, लेकिन हिंदी और संस्कृत में उन्होंने विलक्षण दर्शन ग्रंथों की रचना की है। भारत को धर्म-सापेक्ष बनाएं, यह बात उन्होंने मध्य प्रदेश के कुंडलपुर में आयोजित पंचकल्याणक समारोह में कही। वहां लाखों भक्तों के अलावा देश के जाने-माने नेता भी उपस्थित थे। भारत को धर्म-सापेक्ष बनाने का अर्थ उसे किसी रिलीजन या संप्रदाय या मत या पंथ का अनुयायी बना देना नहीं है बल्कि ऐसा राष्ट्र बनाना है, जिसका प्रत्येक नागरिक और सरकार भी धार्मिक है।

भारत के संविधान में कहीं भी धर्म-निरपेक्ष शब्द नहीं आया है। उसकी प्रस्तावना में भारत को ‘पंथ-निरपेक्ष’ कहा गया है। लेकिन हमारे देश के नेता धर्म-निरपेक्ष शब्द का ही प्राय: इस्तेमाल करते रहते हैं। इसका असली कारण अंग्रेजी भाषा की गुलामी ही है, क्योंकि अंग्रेजी में धर्म को ‘रिलीजन’ ही कहते हैं। ‘सेक्युलर’ शब्द यूरोप में चलता है। आप सेक्युलर हैं यानी धर्म-निरपेक्ष हैं। मैं तो कहता हूं कि जो लोग सचमुच सेक्युलर हैं यानी किसी भी पंथ, संप्रदाय या भगवान को भी नहीं मानते, वे भी परम धार्मिक हो सकते हैं। धर्म का अर्थ है- धारण करने योग्य। मनुष्य का, पशु का, पक्षी का, राजा का, प्रजा का, मालिक का, नौकर का- सबका अपना धर्म होता है। सब अपने-अपने कर्तव्य का पालन करें, यही धर्म है। धर्म क्या है, इसकी परिभाषा मनुस्मृति में कितनी अच्छी है।

मनु महाराज ने धर्म के ये लक्षण बताए हैं- धीरज, क्षमा, मन-नियंत्रण, चोरी या लालच से बचना, शरीर-मन-बुद्धि को शुद्ध रखना, इंद्रिय-संयम, बुद्धिप्रधान रहना, सत्याचरण और क्रोध-नियंत्रण। क्या कोई मजहब, पंथ या संप्रदाय धर्म के इन लक्षणों को अनुचित बता सकता है? दुनिया के हर संप्रदाय या रिलीजन का भक्त इस धर्म का अनुसरण कर सकता है। इसे ही वेदों में मानव-धर्म कहा गया है। ऋग्वेद कहता है- मनुर्भव: यानी मनुष्य बनो। कोई भी मनुष्य किसी भी मजहब या पंथ का अनुयायी हो या किसी का भी न हो, वह भी इन लक्षणों को धारण कर सकता है। इनको धारण करना ही धर्म है। इनका जो उल्लंघन करे और अपने आपको वह किसी भी रिलीजन या संप्रदाय का परम भक्त कहे तो वह किसी भी हालत में धार्मिक व्यक्ति नहीं कहला सकता। सच्ची नैतिकता ही धर्म है। जिसमें नैतिकता नहीं, वह विचार और कर्म अधर्म ही है। ऐसे अधर्म को हम छोड़ें और भारत ही नहीं, दुनिया के सारे राष्ट्र धर्म-सापेक्ष बनें तो यह पृथ्वी ही स्वर्ग बन जाएगी।

Web Title: Vedapratap Vaidik Blog difference between secular and religious

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