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वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः बातचीत से ही निकलेगा राम मंदिर मुद्दे का समाधान

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: February 1, 2019 09:28 IST

सरकार को सभी साधु-संतों और अपने हिंदू वोट-बैंक को यह कहने का बहाना मिल जाएगा कि हमने कौन-सी कोशिश नहीं की लेकिन हम मजबूर हैं, अदालत के आगे.

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नरेंद्र मोदी सरकार को पता है कि अब राम मंदिर ही उसके पास आखिरी दांव बचा है. यदि यह तुरुप का पत्ता भी गिर गया तो वह क्या करेगी? नरेंद्र मोदी ने महीने भर पहले यह कह ही दिया था कि हम सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का इंतजार करेंगे यानी अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए अध्यादेश नहीं लाएंगे. अध्यादेश लाने की मांग विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जोरों से कर रहे हैं. सारे साधु-संतों ने भी इस मामले में सरकार पर दबाव बना रखा है. 

ऐसे में मोदी सरकार क्या करे. इधर वह साहिल से और उधर तूफान से टकरा रही है. इसी हड़बड़ाहट में उसने सर्वोच्च न्यायालय से अपील की है कि मंदिर-मस्जिद के आसपास की जो 67 एकड़ जमीन नरसिंहराव सरकार ने एक अध्यादेश के द्वारा 1993 में अधिगृहीत की थी, उसे वह मुक्त कर दे ताकि वहां राम मंदिर की शुरुआत की जा सके. वहां 42 एकड़ जमीन रामजन्मभूमि न्यास की है. उसी पर शुभारंभ हो सकता है. लेकिन पहला प्रश्न यही है कि क्या वह रामजन्मभूमि है?

दूसरा प्रश्न यह कि सर्वोच्च न्यायालय अपने दो फैसलों में उस अधिगृहीत जमीन को तब तक वैसे ही रखने की बात कह चुका है, जब तक कि पौने तीन एकड़ रामजन्मभूमि की मिल्कियत का फैसला न हो जाए. तीसरा प्रश्न यह कि अटलजी ने संसद में अदालत के इस फैसले को सही बताया था. चौथा प्रश्न यह कि उस अधिगृहीत जमीन के दर्जनों मालिक से अब मुआवजा कैसे वसूल करेंगे. पांचवां प्रश्न यह कि यदि सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहरा दिया तो मस्जिद तक पहुंचने के लिए मुसलमानों को रास्ता कैसे मिलेगा?

मुझे लगता है कि अदालत सरकार की इस प्रार्थना को रद्द कर देगी. सरकार को सभी साधु-संतों और अपने हिंदू वोट-बैंक को यह कहने का बहाना मिल जाएगा कि हमने कौन-सी कोशिश नहीं की लेकिन हम मजबूर हैं, अदालत के आगे. उस 70 एकड़ जमीन में शानदार राम मंदिर के साथ-साथ सभी धर्मो के पूजा-स्थल बन सकते थे और यह ऐतिहासिक समाधान अदालत और अध्यादेश से नहीं, बातचीत से निकल सकता है.

टॅग्स :राम मंदिरअयोध्या
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