वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः अयोध्या मामले पर भाजपा पर भारी शिवसेना
By वेद प्रताप वैदिक | Published: November 24, 2018 11:08 PM2018-11-24T23:08:00+5:302018-11-24T23:08:00+5:30
6 दिसंबर 1992 को रविवार था. उस दिन दोनों ने मुझसे कई बार फोन पर बात की थी. अब भी भाजपा के योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्नी हैं और भाजपा के वरिष्ठ नेता राम नाईक राज्यपाल हैं.
अयोध्या अब 26 साल बाद फिर खबरों में है. इस बार वहां दो लाख से भी ज्यादा भक्तों के इकट्ठा होने का अंदाजा है. उन्हें संभालने के लिए 70 हजार सिपाहियों को उत्तर प्रदेश सरकार ने तैनात कर दिया है. इतना डर इसलिए पैदा हुआ है कि इस प्रदर्शन का आयोजन शिवसेना ने किया है. 1992 में जब मस्जिद गिरी थी, तब भी उ.प्र. में कल्याण सिंह की भाजपा सरकार थी और आंध्र के समाजवादी नेता सत्यनारायण रेड्डी राज्यपाल थे.
6 दिसंबर 1992 को रविवार था. उस दिन दोनों ने मुझसे कई बार फोन पर बात की थी. अब भी भाजपा के योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्नी हैं और भाजपा के वरिष्ठ नेता राम नाईक राज्यपाल हैं.
राम मंदिर के मुद्दे को शिवसेना भाजपा के हाथ से छीन लेना चाहती है. वह मोदी सरकार को कोस रही है कि राम मंदिर के सवाल पर वह चार साल से खर्राटे भर रही है. शिवसेना और विश्व हिंदू परिषद अब सरकार के भरोसे नहीं रहना चाहती हैं और यही भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है.
यदि शिवसैनिकों ने मंदिर बनाना शुरू कर दिया तो सरकार उसे रोकेगी कैसे? यदि वह नहीं रोकेगी तो राम मंदिर का ताज शिवसेना के मस्तक पर सुशोभित हो जाएगा. भाजपा हाथ मलती रह जाएगी और दांत पीसती रह जाएगी. 2019 का चुनाव जीतने का आखिरी पासा भी हाथ से फिसल जाएगा. यदि सरकार मूक-दर्शक बनी रही तो उसका सरकार कहलाना ही खटाई में पड़ जाएगा.
मैं चाहता हूं कि सरकार और अदालत दोनों की इज्जत बची रहे और राम मंदिर भी बन जाए. इसका एक ही तरीका है. अदालत के तीन याचिकाकर्ताओं को एक जगह बिठाकर उन्हें मनाया जाए. वे मुकदमा वापस लें. 1993 में नरसिंहराव ने जो अध्यादेश जारी किया था, उसके मुताबिक 70 एकड़ जमीन में अत्यंत भव्य राम मंदिर बने और उसके साथ-साथ वहां दुनिया के सभी प्रमुख धर्मो के पूजा-स्थल बनें. सर्वधर्म संग्रहालय, धर्मशाला, सभागार और अतिथिशाला भी बने. मस्जिद भी बने. यह समाधान भारतीय समाधान है.