वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: संघ करे सामाजिक क्रांति
By वेद प्रताप वैदिक | Published: March 11, 2019 11:58 AM2019-03-11T11:58:19+5:302019-03-11T11:58:19+5:30
यह ठीक है कि शिक्षा और सेवा के क्षेत्न में संघ सराहनीय काम कर रहा है लेकिन सामाजिक बुराइयों के खिलाफ यदि वह कटिबद्ध नहीं होगा तो उसके ये सेवा-कार्य भी निर्थक सिद्ध हो जाएंगे.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर्वोच्च अधिकारियों की जो बैठक इस समय ग्वालियर में चल रही है, वह पिछले पांच वर्षो की बैठकों में सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह चुनाव का मौसम है. इसमें शक नहीं कि भाजपा को जिता कर लाने में संघ अपनी पूरी ताकत लगा देगा. संघ-जैसा सशक्त संगठन भाजपा के पास है, वैसा हिंदुस्तान के किसी भी दल के पास नहीं है.
यह ठीक है कि शिक्षा और सेवा के क्षेत्न में संघ सराहनीय काम कर रहा है लेकिन सामाजिक बुराइयों के खिलाफ यदि वह कटिबद्ध नहीं होगा तो उसके ये सेवा-कार्य भी निर्थक सिद्ध हो जाएंगे. ये बातें अब से लगभग 55-60 साल पहले मैं जब भी गुरुजी से इंदौर में किया करता था तो उनका जवाब होता था कि इस समय हमारा सिर्फ एक लक्ष्य है, वह है हिंदू समाज को संगठित करना.
क्या अब भी इसी लक्ष्य की आड़ लेकर संघ अकर्म की मुद्रा धारण किए रहेगा? मैं तो समझता हूं कि सिर्फ हिंदू समाज ही नहीं, देश के सभी तबकों को साथ लेकर संघ चाहे तो सामाजिक क्रांति का सूत्नपात कर सकता है. जो काम दर्जनों सरकारें मिलकर नहीं कर सकतीं, वह अकेला संघ कर
सकता है.
मुझे खुशी है कि पूर्व सरसंघचालक स्व. सुदर्शनजी ने मुस्लिम मंच खड़े किए. भारत राष्ट्र को यदि सृदृढ़ बनाना है तो संघ को चाहिए कि सारे भारतीयों को वह सबसे पहले अंग्रेजी भाषा की गुलामी से मुक्ति दिलाए. मोहन भागवत ने पांच साल पहले बेंगलुरु के अधिवेशन में इस अभियान को शुरू किया था.
उसे बढ़ाया जाए. जैसे स्वभाषा में हस्ताक्षर के लिए सबसे संकल्प करवाया गया था, वैसे ही संकल्प करोड़ों लोगों से नशे, मांसाहार, रिश्वत लेने-देने और जातिवाद के विरुद्ध करवाएं. अराकान (म्यांमार) से खुरासान (ईरान) और त्रिविष्टुप (तिब्बत) से मालदीव तक आर्यावर्त का महासंघ खड़ा करना या जन-दक्षेस बनाना भी बहुत जरूरी है. अगर संघ इसे नहीं करेगा तो कौन करेगा?