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वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: राफेल-संदेह अभी भी बाकी है

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: February 15, 2019 12:32 IST

पिछले 12 साल में महंगाई और डॉलर या यूरो की कीमत कितनी बढ़ी? उस विमान में क्या-क्या नए यंत्न या हथियार जोड़े गए? इस बढ़ी हुई कीमत के पीछे अगर कोई प्रतिरक्षा संबंधी रहस्य हैं तो उन्हें सरकार जरूर प्रकट न करे लेकिन इस कीमत को सही ठहराने के लिए यदि वह इस रपट का टेका लेना जरूरी समझती है तो अपने इरादों पर वह खुद ही शक पैदा कर रही है.

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राफेल सौदे पर महालेखा नियंत्नक की रपट संसद में पेश क्या हुई, उजाला और अंधेरा एक साथ हो गया है. सरकार के लोग अपनी पीठ खुद ही थपथपा रहे हैं, यह कहते हुए कि इस रपट के मुताबिक मनमोहन सरकार जिस दाम पर यह विमान खरीद रही थी, मोदी सरकार ने वह सौदा 2.86 प्रतिशत सस्ते में किया है. जबकि विरोधी इसी रपट के कई अंश निकाल-निकालकर बता रहे हैं कि हमारी सरकार ने राफेल-सौदे में फ्रांसीसी सरकार और डसाल्ट कंपनी के आगे कैसे घुटने टेके हैं. 12 साल से चल रही यह सौदेबाजी बोफोर्स की तोपों से भी ज्यादा विवाद पैदा कर रही है. दोनों पार्टियां, कांग्रेस और भाजपा, देश को यह ठीक से बता नहीं पा रही हैं कि अरबों-खरबों रु. के ये रक्षा-सौदे साफ-सुथरे क्यों नहीं हो सकते? उनमें इतना लंबा समय क्यों लगता है? सरकार यह क्यों नहीं बता पा रही है कि उसने 500 करोड़ का विमान 1600 करोड़ रु. में क्यों खरीदा? इसमें महालेखा नियंत्नक के सहारे की जरूरत ही क्या है? पिछले 12 साल में महंगाई और डॉलर या यूरो की कीमत कितनी बढ़ी? उस विमान में क्या-क्या नए यंत्न या हथियार जोड़े गए? इस बढ़ी हुई कीमत के पीछे अगर कोई प्रतिरक्षा संबंधी रहस्य हैं तो उन्हें सरकार जरूर प्रकट न करे लेकिन इस कीमत को सही ठहराने के लिए यदि वह इस रपट का टेका लेना जरूरी समझती है तो अपने इरादों पर वह खुद ही शक पैदा कर रही है.यह शक तब और भी गहरा हो जाता है, जब इस सौदे के भारतीय कर्णधार के तौर पर अनिल अंबानी की कंपनी का नाम आता है. ऐसी कंपनी, जिसे प्रतिरक्षा-उत्पादन का क ख ग भी पता नहीं. कुछ फ्रांसीसी अखबारों और ‘हिंदू’- जैसे भारतीय अखबार ने इस सौदे की इतनी अंदरूनी पर्ते उखाड़ कर रख दी हैं कि यदि वी.पी. सिंह या चंद्रशेखर जैसा कोई नेता आज विपक्ष में होता तो वह ठोस सबूतों के साथ जनता को राफेल सौदे की सच्चाई बताता.

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