वेदप्रताप वैदिक का कॉलमः सिर्फ कानून बनाने से नहीं खत्म होगा जातिवाद, चलाना होगा जाति-तोड़ो आंदोलन
By वेद प्रताप वैदिक | Published: August 3, 2018 10:57 AM2018-08-03T10:57:22+5:302018-08-03T10:57:22+5:30
अदालत ने 20 मार्च को फैसला दिया था कि इस कानून में तीन सुधार किए जाएं। पहला, किसी भी दलित पर अत्याचार की थाने में प्रथम सूचना रपट लिखवाने के पहले उसकी जांच की जाए।
वोट की राजनीति नेताओं को कैसे-कैसे पापड़ बेलवाती है, इसका प्रमाण है वह कानून जो दलितों के बारे में अब इसी सत्न में लाया जाएगा।
इस नए कानून संशोधन के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले को रद्द कर दिया जाएगा, जिसके अंतर्गत पुराने दलित अत्याचार निवारण कानून (1989) में सुधार किया गया था।
अदालत ने 20 मार्च को फैसला दिया था कि इस कानून में तीन सुधार किए जाएं। पहला, किसी भी दलित पर अत्याचार की थाने में प्रथम सूचना रपट लिखवाने के पहले उसकी जांच की जाए।
दूसरा, किसी भी आरोपी को गिरफ्तार करने के पहले, यदि वह सरकारी कर्मचारी हो तो उसके अफसर से अनुमति ली जाए। तीसरा, आरोपी को अग्रिम जमानत की सुविधा मिले।
मोदी सरकार के कुछ मंत्रियों ने इस पर हंगामा खड़ा कर दिया। विपक्ष ने कहा कि मोदी सरकार अदालत के कंधे पर रखकर अपनी जातिवादी बंदूक चला रही है।
इसके अलावा राज्यों के चुनाव सिर पर हैं। देश में दलितों की संख्या 18 प्रतिशत मानी जाती है और वे थोक में वोट डालते हैं। जाहिर है कि कोई भी सरकार अपना नुकसान क्यों करवाएगी?
यह ठीक है कि अदालत के सुधार लागू होते तो इस कानून का डर काफी घट जाता। शायद दलितों पर अत्याचार बढ़ जाते।
इस कठोर कानून के बावजूद इन मुकदमों में मुश्किल से 15 प्रतिशत अपराधी सजा पाते हैं। जरूरी यह है कि देश में समता का वातावरण पैदा किया जाए।
सिर्फ कानून से यह भेदभाव समाप्त नहीं हो सकता। हमारे देश में जाति-तोड़ो आंदोलन बड़े जोरों से चलना चाहिए। लोगों को जातीय उपनाम हटाने का संकल्प करना चाहिए।
इसके अलावा शारीरिक श्रम और मानसिक श्रम का फासला घटना चाहिए।
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