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वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: नारी की पूजा कहां होती है?

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: March 9, 2020 07:19 IST

संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रपट के मुताबिक दुनिया के लगभग 90 प्रतिशत पुरुष ऐसे हैं, जो महिलाओं को अपने से कमतर समझते हैं. वे भूल जाते हैं कि भारत, श्रीलंका और इजराइल की प्रधानमंत्नी कौन थीं. इंदिरा गांधी, सिरिमाओ भंडारनायके और गोल्डा मायर के मुकाबले के कितने पुरुष प्रधानमंत्नी इन तीनों देशों में हुए हैं?

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रविवार को पूरी दुनिया में महिला दिवस मनाया गया. लेकिन सभी क्षेत्नों में क्या हम महिलाओं को समुचित अनुपात में देख पाते हैं? मैंने ‘समुचित’ अनुपात शब्द का प्रयोग किया है, ‘उचित’ अनुपात का नहीं. उचित का अर्थ तो यह भी लगाया जा सकता है कि दुनिया में जितने भी काम-धंधे हैं, उन सब में 50 प्रतिशत संख्या महिलाओं की होनी चाहिए. यह ठीक नहीं है. कुछ काम ऐसे हैं, जिनमें महिलाओं की संख्या 50 प्रतिशत से भी ज्यादा रखना फायदेमंद है और कुछ में वह कम भी हो सकती है.

असली बात यह है कि जिस काम को जो भी दक्षतापूर्वक कर सके, वह उसे मिलना चाहिए. उसमें स्त्नी-पुरुष का भेदभाव नहीं होना चाहिए. जाति और मजहब का भी नहीं. लेकिन इस 21वीं सदी की दुनिया का हाल क्या है?

संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रपट के मुताबिक दुनिया के लगभग 90 प्रतिशत पुरुष ऐसे हैं, जो महिलाओं को अपने से कमतर समझते हैं. वे भूल जाते हैं कि भारत, श्रीलंका और इजराइल की प्रधानमंत्नी कौन थीं. इंदिरा गांधी, सिरिमाओ भंडारनायके और गोल्डा मायर के मुकाबले के कितने पुरुष प्रधानमंत्नी इन तीनों देशों में हुए हैं?

क्या ब्रिटेन की प्रधानमंत्नी मार्गरेट थैचर और जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल को हम भूल गए हैं? भारत की कई महान महारानियों के नाम मैं यहां नहीं ले रहा हूं, जिन्होंने कई महाराजाओं और बादशाहों के छक्के छुड़ा दिए थे.

इस समय 193 देशों में से सिर्फ 10 देशों में महिलाएं शीर्ष राजनीतिक पदों पर हैं. दुनिया की संसदों में महिलाओं की संख्या 24 प्रतिशत भी नहीं है. डॉक्टरों, इंजीनियरों, वकीलों और वैज्ञानिकों में उनकी संख्या और भी कम है. भारत में महिलाओं से भेदभाव करने वाले पुरुषों की संख्या 98.28 प्रतिशत है तो पाकिस्तान हमसे भी आगे है. उसमें यह संख्या 99.81 प्रतिशत है.

यूरोप, अमेरिका, चीन और जापान जैसे देशों में इधर 40-50 वर्षो में काफी बदलाव आया है. उसी का नतीजा है कि ये देश महाशक्ति कहलाने लगे हैं. अपने आधे समाज के प्रति उपेक्षा का भाव हम छोड़ सकें तो हमारे दक्षिण एशिया के सभी देश शीघ्र ही संपन्न और सुखी हो सकते हैं. हमारे यहां अभी यह सिर्फ कहावत ही रह गई है कि जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवताओं का वास होता है.

टॅग्स :अंतरराष्ट्रीय महिला दिवसमहिलाइंडिया
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