भरत झुनझुनवाला का ब्लॉगः कुछ बिंदुओं पर विचार की जरूरत

By भरत झुनझुनवाला | Published: July 6, 2019 10:31 AM2019-07-06T10:31:54+5:302019-07-06T10:31:54+5:30

union budget 2019: Some points need to be considered by narendra modi government | भरत झुनझुनवाला का ब्लॉगः कुछ बिंदुओं पर विचार की जरूरत

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वित्त मंत्नी निर्मला सीतारमण द्वारा संतुलित बजट पेश किया गया है. उन्होंने पेट्रोल के आयात पर एक रुपए प्रति लीटर की कस्टम डय़ूटी बढ़ाई है जो स्वागत योग्य है. इससे सरकार के राजस्व में वृद्धि होगी, देश में पेट्रोल की खपत कम होगी और  हमारी आयातों पर निर्भरता घटेगी. उन्होंने तमाम माल जैसे पीवीसी, काजू, टाइल्स, ऑटो पार्ट्स, ऑप्टिकल फाइबर केबल इत्यादि पर आयात कर बढ़ाए हैं. यह कदम सही दिशा में है क्योंकि ऐसा करने से आयातित माल महंगे हो जाएंगे और घरेलू उत्पादन को बढ़ने का मौका मिलेगा. साथ ही कुछ कच्चे माल पर आयात कर घटाए हैं, जिससे घरेलू उत्पादन की लागत घटेगी व देश में उत्पादन बढ़ेगा. 

वित्त मंत्नी ने सेवा क्षेत्न के विस्तार के लिए अप्रत्यक्ष रूप से कई बातें कही हैं जो कि सही दिशा में हैं. जैसे अंतरिक्ष में इसरो द्वारा किए गए रिसर्च का वाणिज्यिक लाभ उठाने के लिए न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड नाम की इकाई की स्थापना की बात कही है. आम आदमी की कुशलता बढ़ाने के लिए विदेशी भाषा पढ़ाने को बढ़ावा दिया है. 

फिर भी वित्त मंत्नी को कुछ बिंदुओं पर पुनर्विचार करने की जरूरत है. पहला बिंदु वित्तीय घाटे का है. एनडीए प्रथम सरकार ने वित्तीय घाटे पर लगातार नियंत्नण किया है. उसी रणनीति को बढ़ाते हुए वित्त मंत्नी ने वर्तमान वर्ष में वित्तीय घाटे को 3.4 प्रतिशत से घटा कर 3.3 प्रतिशत करने की बात कही है. लेकिन वित्तीय घाटे में यह कटौती पूर्णतया पूंजी निवेश में कटौती कर हासिल की गई है. 

सरकार की खपत में निरंतर वृद्धि हो रही है. वित्तीय घाटे के दो हिस्से होते हैं- पूंजी घाटा और चालू घाटा. सरकार द्वारा बाजार से निवेश के लिए लिए गए ऋण को पूंजी घाटा कहते हैं. सरकार द्वारा बाजार से अपनी खपत जैसे सरकारी कर्मियों को वेतन देने के लिए लिए गए ¬ण को चालू घाटा कहते हैं. सरकार को चाहिए कि पूंजी घाटे को बढ़ने दे लेकिन चालू घाटे पर नियंत्नण करे. पूंजी घाटे से वित्तीय घाटा बढ़ता है तो चिंता न करे. 

दूसरा कदम जीएसटी के ढांचे में परिवर्तन का होना चाहिए था. वर्तमान में जीएसटी का मूल चरित्न छोटे उद्योगों के विपरीत है. छोटे उद्योग दबाव में हैं, रोजगार दबाव में है, अर्थव्यवस्था में मांग नहीं है और हमारी जीडीपी की ग्रोथ रेट सपाट पड़ी हुई है. जीएसटी में छोटे उद्योगों के लिए कंपाउंडिंग स्कीम है. लेकिन इस स्कीम में छोटे उद्योगों द्वारा जो कच्चा माल खरीदा जाता है, उस पर जो जीएसटी अदा की जाती है, उसका उन्हें रिफंड नहीं मिलता है. 

उपाय यह है कि कंपाउंडिंग स्कीम में छोटे उद्योगों द्वारा कच्चे माल की खरीद पर अदा की गई जीएसटी का नगद रिफंड देने की व्यवस्था की जाए. तब छोटे उद्योग की लागत कम हो जाएगी. वे अपना माल बड़े उद्योग की प्रतिस्पर्धा में बेच सकेंगे. तीसरा क्षेत्न जहां पुनर्विचार करने की जरूरत है वह सार्वजनिक बैंकों का है. 

बजट में वित्त मंत्नी ने आगामी वर्ष में सत्तर हजार करोड़ रुपए की विशाल रकम सरकारी बैंकों की पूंजी में वृद्धि के लिए आवंटित करने की बात कही है. यह रकम मुख्यत: सरकारी बैंकों के भ्रष्टाचार एवं अकुशलता को पोषित करने में व्यय हो जाएगी. जरूरी था कि सरकारी बैंकों का निजीकरण कर दिया जाता.

Web Title: union budget 2019: Some points need to be considered by narendra modi government

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