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एम. वेंकैया नायडू का ब्लॉगः अमिट छाप छोड़कर चले गए दो परम मित्र

By एम वेंकैया नायडू | Updated: August 10, 2019 11:31 IST

उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू लिखते हैं- पिछले दस दिनों में दो विशिष्ट और प्रिय दोस्त जयपाल रेड्डी और सुषमा स्वराज दुनिया से विदा हो गए।

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पिछले दस दिनों में दो विशिष्ट और प्रिय दोस्त जयपाल रेड्डी और सुषमा स्वराज दुनिया से विदा हो गए. मैं बेहद खालीपन महसूस कर रहा हूं. एस. जयपाल रेड्डी और श्रीमती सुषमा स्वराज तो मेरे लिए भाई-बहन की तरह थे. जयपाल बड़े भाई जैसे तो सुषमा छोटी बहन की तरह. बेहतरीन सांसद, कुशल प्रशासक और अद्भुत वक्ताओं के तौर पर उन्होंने अमिट छाप छोड़ी है.

दोनों के बीच कुछ समानताएं थीं तो कुछ भिन्नता भी थी. समानताओं की बात की जाए तो दोनों ने साबित किया कि काबिलियत, खूबियों तथा कमियों के साथ सार्वजनिक जीवन में विभिन्न भूमिकाओं का कुशलतापूर्वक निर्वाह किया जा सकता है. पहले बात दिव्यांगता की. 77 वर्षीय जयपाल रेड्डी पोलियो पीड़ित थे, लेकिन उन्होंने इसे कभी अपने हौसले पर हावी नहीं होने दिया. अपनी बातों, काम और उपलब्धियों से उन्होंने खुद को असाधारण साबित किया, बेहद कुशल व्यक्ति. मैंने उनसे कई बार पूछा कि क्या उन्होंने यह दिखाने के लिए कोई अतिरिक्त प्रयास किया कि दिव्यांगता उनकी राह की बाधा नहीं है. वह इस विचार को परे कर देते थे और कहते थे कि हौसला ही असली मायने रखता है और शारीरिक दुर्बलता उनके अपराजेय हौसले को प्रभावित नहीं कर सकती. उनकी जिंदगी, हर किस्म की बाधा को पार कर अचंभित कर देने वाली ऊंचाइयों को छू लेने वाले रचनात्मक हौसले से लबरेज थी. 

जयपाल रेड्डी एक ओजस्वी वक्ता और बुद्धिजीवी थे, जो प्रत्येक मामले के विश्लेषण की काबिलियत रखते थे. तीक्ष्ण बुद्धि और व्यंग्य की अद्भुत क्षमता के कारण वह अपनी पार्टी के दमदार प्रवक्ता थे. उनका अंग्रेजी और तेलुगू पर एक समान प्रभुत्व था. आंध्र प्रदेश विधानसभा में हम दोनों पास-पास ही बैठा करते थे और एक-दूसरे से नोट्स का आदान-प्रदान किया करते थे. सत्तारूढ़ दल के लोग हमें तिरुपति वेंकट कावुलु कहा करते थे. दरअसल यह तेलुगू कवियों की ऐसी जोड़ी थी, जो साथ-साथ मिलकर कविताएं किया करती थी. 

हमारे सामाजिक-राजनीतिक तानेबाने में लिंगभेद आज भी एक बड़ा मसला है जो महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने की राह में रोड़े खड़े करता है. 67 वर्षीय सुषमा स्वराज ने इस सामाजिक बाधा के तिलस्म को तोड़ डाला. अपने शब्दों, अपने काम और अपनी उपलब्धियों से उन्होंने जयपाल की ही तरह कई मजबूत सामाजिक बाधाओं को तोड़ा. रूढ़ीवादी सामाजिक ताने-बाने वाले हरियाणा में जन्म लेने के बाद वह राज्य सरकार की सबसे युवा कैबिनेट मंत्री से लेकर देश की पूर्णकालिक विदेश मंत्री के महत्वपूर्ण पद तक पहुंचीं. इस उपलब्धि को किसी भी तरह से कम नहीं कहा जा सकता. अब अंतर की बात की जाए. जयपाल और सुषमा का झुकाव अलग-अलग विचारधारा की ओर था, लेकिन राजनीतिक घटनाक्रम ने उन्हें कुछ समय के लिए ही सही, एक साथ ला दिया था, जब दोनों आपातकाल के बाद जनता पार्टी में थे. राजनीतिक झुकाव को परे रख दिया जाए तो दोनों ही में भारत को मजबूत करने की भावना कूट-कूटकर भरी थी. 

संयुक्त आंध्र प्रदेश की राजनीति में जयपाल और मैं काफी अरसे तक हमसफर रहे. हम दोनों आमजन से जुड़े मुद्दों, सरकार की गलतियों को लेकर मुखर स्वर में राज्य विधानसभा में भूचाल ला दिया करते थे. विधानसभा में मुझसे एक कार्यकाल वरिष्ठ जयपाल ने राजनीति के मेरे शुरुआती दिनों में मेरा दोस्ताना मार्गदर्शन किया. मैं 1978 में पहली बार आंध्र प्रदेश विधानसभा के लिए चुना गया था. सुषमा, राजनीति में मेरी बेहद प्रिय मित्र थीं. हमारे मधुर संबंधों का तानाबाना हर गुजरते दिन के साथ उनकी दुनिया से विदाई तक मजबूत होता चला गया. मैं जब सुषमा को श्रद्धांजलि देने गया तो उनकी बेटी बांसुरी फूट-फूटकर रोने लगी और बोली, मां बताती थी,‘‘जब भी मैं वैंकेयाजी से मिलती हूं तो तनावमुक्त हो जाती हूं. मैं अपनी बातें उनसे वैसे ही साझा करती हूं, जैसे एक छोटी बहन अपने बड़े भैया से करती है. ’’ क्रूर नियति ने मुझसे इतनी प्यारी बहन को छीन लिया.

सुषमा स्वराज देशवासियों के बीच लोकप्रिय थीं क्योंकि वह भारतीय संस्कारों की प्रतिमूर्ति थीं, हमारे देश के आधारभूत मूल्यों की सच्ची प्रतिनिधि. उनका परिधान, उनका करिश्माई व्यक्तित्व, शब्दों का चयन, बात को कहने का तरीका, गर्मजोशी, विनम्रता, स्नेह, वरिष्ठों के प्रति आदर, किसी भी बात को पुख्ता तरीके से रखना, तर्क, किसी को भी बिना दुखाए अपनी बात कहने के हुनर ने ही सुषमा को भारत के आधुनिक युग के सबसे लोकप्रिय नेताओं में शामिल करा दिया. एक ऐसी राजनेता जिन्हें सभी राजनीतिक दलों के लोग भी सम्मान देते थे.

टॅग्स :सुषमा स्वराजएम. वेकैंया नायडू
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