ब्लॉग: लोगों को बांटने के बजाय जोड़ने की कोशिश करें

By विश्वनाथ सचदेव | Updated: January 2, 2025 06:36 IST2025-01-02T06:34:32+5:302025-01-02T06:36:22+5:30

आखिर ईश्वर के एक होने की बात कहने वाले किसी भजन में कोई बात आपत्तिजनक हो भी कैसे सकती है?

Try to unite people instead of dividing them | ब्लॉग: लोगों को बांटने के बजाय जोड़ने की कोशिश करें

ब्लॉग: लोगों को बांटने के बजाय जोड़ने की कोशिश करें

'एकं सत् विप्रा बहुधा वदंति' - उपनिषद का यह संदेश वस्तुत: दुनिया को भारत का एक संदेश है जो ईश्वर के एक होने की बात कहकर मनुष्य मात्र की एकता-समानता को रेखांकित करता है. ईश्वर के एक होने का यह संदेश तो हम अक्सर दुहराते रहते हैं, पर इस तथ्य को कितने विश्वास के साथ स्वीकारते हैं, इसका उदाहरण हाल ही में पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में फिर से सामने आया है.

स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित इस कार्यक्रम में जब एक लोकगायिका महात्मा गांधी का प्रिय भजन ‘रघुुपति राघव...’ गा रही थी तो अचानक ‘जय श्री राम’ के नारे लगने लगे. कुछ लोगों को यह स्वीकार नहीं था कि इस भजन में गांधीजी द्वारा जोड़ी गई पंक्ति ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान’ का पाठ हो. शोर इतना मचा कि गायिका को, और आयोजकों को भी, इस पंक्ति को बोलने के ‘अपराध’ के लिए क्षमा मांगनी पड़ी.

सब जानते हैं कि यह लोकप्रिय भजन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को बहुत प्रिय था और वे रोज सुबह प्रार्थना-सभा में इसे गाते-गवाते थे. तब कभी किसी को इस भजन में कुछ गलत नहीं लगता था. गांधीजी की हत्या के बाद भी उनका यह भजन सब तरफ गूंजता रहा है- कभी किसी को कुछ गलत नहीं लगा था. आखिर ईश्वर के एक होने की बात कहने वाले किसी भजन में कोई बात आपत्तिजनक हो भी कैसे सकती है? नहीं होनी चाहिए थी, पर हुई. गांधी के विरोधियों को अचानक आपत्ति होने लगी.

आपत्ति इस बात पर थी कि मूल भजन में यह पंक्ति नहीं थी, गांधी ने कैसे यह बात जोड़ दी? वैसे तो, भगवान का भजन चाहे किसी ने भी लिखा हो, सबका होता है. हर कोई अपने तरीके से भजन में कुछ जोड़-घटा कर अपने आराध्य को याद कर लेता है. कोई नहीं पूछता अमुक भजन या प्रार्थना किसने लिखी है. पर गांधी के इस प्रिय भजन को लेकर एक विवाद खड़ा कर दिया गया है.

भजन में इस पंक्ति को जोड़े जाने का विरोध करने वालों का कहना है कि मूल भजन में यह पंक्ति नहीं थी, गांधी को इसमें जोड़ने-घटाने का अधिकार नहीं है. हम में से कितने जानते हैं कि यह भजन किसका लिखा हुआ है? कुछ लोग इसे तुलसीदास द्वारा रचा मानते हैं, कुछ इसे रामदास की कृति कहते हैं. पर ज्यादातर लोग मानते हैं कि मूल भजन  लक्ष्मणाचार्य ने अपनी ‘नम: रामायणम’ में लिखा था.

भजन किसी ने भी रचा हो, इसकी लोकप्रियता का कारण रचनाकार नहीं, रचना का संदेश है. महात्मा गांधी ने इसे अपनी प्रतिदिन की प्रार्थना में जोड़ा था और शांति, सद्भावना और भाई-चारे की भावना को प्रेरित करने के उद्देश्य से रोज गाते-गवाते थे. इस उद्देश्य से भला किसी को कोई आपत्ति क्यों होनी चाहिए?

आज धर्म के नाम पर जिस तरह से मनुष्य को बांटने की प्रवृत्ति पनप रही है, वह भयावह है. इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगना ही चाहिए.

Web Title: Try to unite people instead of dividing them

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