संकट में आदिवासियों की भाषाएं

By प्रमोद भार्गव | Published: August 10, 2019 01:04 AM2019-08-10T01:04:42+5:302019-08-10T01:04:42+5:30

एक भाषा में कई बोलियां विलय रहती हैं. यूं भी कह सकते हैं कि एक भाषा को कई बोलियों के रूपों में बोला जाता है

Tribal languages in crisis | संकट में आदिवासियों की भाषाएं

संकट में आदिवासियों की भाषाएं

एक भाषा में कई बोलियां विलय रहती हैं. यूं भी कह सकते हैं कि एक भाषा को कई बोलियों के रूपों में बोला जाता है. हिंदी लिखी जरूर देवनागरी लिपि में जाती है, लेकिन उसे समृद्ध बनाने का काम हिंदी भू-क्षेत्र में प्रचलित बोलियों ने ही किया है. इस समय अंग्रेजी वर्चस्व के चलते पूरी दुनिया में लोक-भाषा और लोक-बोलियों पर संकट गहराया हुआ है.

कमोबेश यही स्थिति देश की जनजातियों अर्थात् आदिवासियों द्वारा बोली जाने वाली बोली और भाषाओं की है. आदिवासी बोली एवं भाषाओं पर विलोपीकरण के खतरे को रेखांकित करने की दृष्टि से ही संयुक्त राष्ट्र ने हर साल 9 अगस्त को मनाए जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस को इस बार आदिवासी समुदाय की भाषाओं के लिए समर्पित किया है, ताकि इनकी लुप्त हो रही भाषा और बोलियों को प्रोत्साहित, संरक्षित व पुनर्जीवित किया जा सके.

इस दिवस की शुरुआत 1994 से हुई है. इस समय सबसे ज्यादा मध्य-प्रदेश के सहरिया आदिवासी और पूर्वोत्तर भारत के आदिवासियों की भाषाएं व बोलियां अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं. गौरतलब है कि स्वाधीनता दिवस 26 जनवरी 2010 को अंडमान द्वीप समूह की 85 वर्षीय बोआ के निधन के साथ ग्रेट अंडमानी भाषा ‘बो’ हमेशा के लिए विलुप्त हो गई है. इसी तरह नवंबर 2009 में एक और महिला बोरो की मौत के साथ ‘खोरा’ भाषा का अस्तित्व समाप्त हो गया. भारत में ऐसी 780 भाषाएं बोली जाती हैं, जिनमें से अनेक भाषाएं संकटग्रस्त हैं. विशेषत: जनजातियों द्वारा बोली जाने वाली बोलियां लुप्त हो जाने के करीब हैं. विलोपीकरण के निकट खड़ी भाषाएं 86 विभिन्न लिपियों में लिखी जाती हैं.

इनमें से 122 भाषाएं ऐसी हैं, जिनके बोलने वालों की संख्या लगभग दस हजार ही रह गई है. बीसवीं सदी से लेकर अब तक भारत की 250 भाषाएं विलुप्त हो चुकी हैं. किसी भी भाषा की मौत सिर्फ एक भाषा की ही मृत्यु नहीं होती है, बल्कि उसके साथ ही उस भाषा का ज्ञान-भंडार, इतिहास, संस्कृति, उस क्षेत्र का भूगोल और बोलने वालों के जीवन से जुड़े अनेक तथ्य और व्यक्ति भी इतिहास का हिस्सा भर रह जाते हैं. खासतौर से जनजातीय समुदायों से जुड़े लोगों के पास जड़ी-बूटियों की जानकारी और इनके औषधीय उपयोग का बृहद् ज्ञान है. अत: यह ध्यान रखना होगा कि इनके बोलने वाले सिमटकर इक्का-दुक्का बोलने वाले और सुनने वालों तक ही न सिमट जाएं

Web Title: Tribal languages in crisis

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