आज का सामाजिक यथार्थ और महात्मा गांधी का जीवन सत्य
By गिरीश्वर मिश्र | Published: June 30, 2019 12:03 PM2019-06-30T12:03:10+5:302019-06-30T12:03:10+5:30
यह भी बेहद गौरतलब है कि आज के युग का जो माहौल बन रहा है उसमें बहुतों को मौन, उपवास, इंद्रिय-निग्रह, पंच महाभूतों (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश) का आदर, ईश-प्रार्थना, ब्रrाचर्य, अहिंसा, करुणा, त्याग, सत्याग्रह, अपरिग्रह (जरूरत भर की चीजों को रखना), अस्तेय (दूसरे का सामान चोरी न करना), और सत्य जैसे शब्द निरे किताबी लगते हैं और उनसे जुड़े व्यवहार सुनने में बड़े ही अव्यावहारिक, ढोंगी, अनुपयोगी, प्रगतिविरोधी और एक हद तक पिछड़ेपन का चिह्न् लगते हैं.
आज के राजनीतिज्ञ जिस तरह आचरण कर रहे हैं वे सार्वजनिक जीवन की शुचिता और मानवीयता के सामने गहरे प्रश्नचिह्न् खड़ा कर रहे हैं. कहने को गरीबी, अशिक्षा, बीमारी, भ्रष्टाचार और अन्याय के विरु द्ध सभी दल और नेता जिहाद छेड़े हुए हैं परंतु जो वास्तविकता है वह शर्म से सबका सिर झुका देने के लिए काफी है. आए दिन जिस तरह की घटनाएं और आरोप-प्रत्यारोप सामने आ रहे हैं वे चिंताजनक हैं. यह सब हम लोग यानी महात्मा गांधी के उत्तराधिकारी कर रहे हैं.
संयोग से हम सब उनकी 150वीं जयंती मनाने का अनुष्ठान भी इस वर्ष आयोजित कर रहे हैं. उनका पुण्य स्मरण करना और बार-बार करते रहना जरूरी है. हमको यह याद करना चाहिए कि महात्मा गांधी ने आधुनिक विश्व के लिए एक मानवीय दृष्टि का विकास किया और दक्षिण अफ्रीका तथा भारत में उसका सफलतापूर्वक प्रयोग किया. उनके इस प्रयास से भारत के बाहर द. अफ्रीका में नेल्सन मंडेला, अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग (जूनियर) तथा म्यांमार में सू की आदि अनेक नेताओं ने अपने-अपने देशों में जनसंघर्ष के लिए प्रेरणा प्राप्त की. गांधीजी द्वारा आरंभ किया गया प्रयोग किसी भी कसौटी पर आज के युग में क्रांतिकारी कहा जाएगा. वे स्वयं को ‘आध्यात्मिक’ कहते थे, ईश्वर में गहरी आस्था रखते थे और जीवन में अनेक व्रतों, सिद्धांतों का सतत पालन करते रहे.
यह भी बेहद गौरतलब है कि आज के युग का जो माहौल बन रहा है उसमें बहुतों को मौन, उपवास, इंद्रिय-निग्रह, पंच महाभूतों (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश) का आदर, ईश-प्रार्थना, ब्रrाचर्य, अहिंसा, करुणा, त्याग, सत्याग्रह, अपरिग्रह (जरूरत भर की चीजों को रखना), अस्तेय (दूसरे का सामान चोरी न करना), और सत्य जैसे शब्द निरे किताबी लगते हैं और उनसे जुड़े व्यवहार सुनने में बड़े ही अव्यावहारिक, ढोंगी, अनुपयोगी, प्रगतिविरोधी और एक हद तक पिछड़ेपन का चिह्न् लगते हैं. अव्वल तो यह सब सुनने के लिए किसी के पास समय ही नहीं है और यदि समय है भी तो इसे समकालीन प्रवृत्ति या धारा के विपरीत और असंभव करार देंगे. पर ठीक इसके विपरीत गांधीजी के लिए ये सभी अनुकरणीय और सहज में ही प्रयुक्त होने वाले जरूरी व्यावहारिक आदर्श थे. गीता और उपनिषद से आत्मसात करने के बाद ये उनके जीवन के व्याकरण के जरूरी नियम बन गए थे जिन पर चलना ही उनके लिए एकमात्न रास्ता था. गांधीजी की नजर में हम जहां रहते हैं उसके परिवेश और समाज की सीमाओं व ताकतों को नजरंदाज नहीं करना चाहिए. पर सबसे ऊंचा है मानव धर्म. वे महाभारत जैसे विराट युद्ध को जीत कर भी जो पीड़ा विजयी युधिष्ठिर को हो रही थी उसे पहचान रहे थे और उसकी व्यर्थता को देख रहे थे.
गांधीजी ने अपने लिए जिन व्यावहारिक आदर्शो को अपनाया उन तक पहुंचना किसी भी तरह सरल न था. इनको पाने में गांधीजी को बार-बार लज्जा, भय, हानि, खतरा, असुरक्षा और संशय सबका सामना करना पड़ा. फिर भी वे डटे रहे और इन सबको खोजा, जांचा-परखा, आजमाया और स्वयं संतुष्ट होने के बाद उन पर वे जीवनर्पयत चलते रहे. तरह-तरह के आकर्षणों और प्रलोभनों से भरी दुनिया में अपने को अलग कर इतना आत्म-परिष्कार निश्चय ही सहज नहीं था. इसके लिए जिस कठोर संयम और ईश्वर के प्रति निष्कपट समर्पण की जरूरत थी उसके लिए आत्मिक बल गांधीजी ने स्वयं अपने अनुभव और मानसिक दृढ़ता से एकत्न किया था.
अपने निजी संकल्प से जीवन में गांधीजी ने स्वयं अपना मार्ग निश्चित किया और उस पर अविचल भाव से चलते रहे. हम सब मूर्तिपूजक ठहरे, सो बापू के पुतले बना कर वर्षो से पूजा करते आ रहे हैं. जरूरत है कि उसकी प्राण-प्रतिष्ठा करने के लिए उनके विचारों पर अमल किया जाए. आज भी महात्मा गांधी प्रेरणा के स्रोत हैं.