ब्लॉग: अब समय आ गया है जब पूरे एशिया को एकजुट करने की पहल हो, अगर भारत ने साथ दिया तो एशियाई राष्ट्र यूरोप से भी अधिक हो सकते है समृद्ध
By वेद प्रताप वैदिक | Published: December 8, 2022 04:13 PM2022-12-08T16:13:03+5:302022-12-08T16:24:52+5:30
आपको बता दें कि नई दिल्ली में कल पांचों मध्य एशियाई राष्ट्र जिसमें तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान, उजबेकिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिजस्तान भी शामिल है, उनके सुरक्षा सलाहकारों का पहला सम्मेलन आयोजित किया गया था।
नई दिल्ली: पिछले साल काबुल पर तालिबान का कब्जा होते ही भारत सरकार हतप्रभ रह गई थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। हमारे विदेश मंत्री ने कहा था कि हम बैठे हैं और देख रहे हैं। उसी समय मैंने तालिबान के कब्जे के एक-दो दिन पहले ही लिखा था कि भारत सरकार को अत्यंत सतर्क रहने की जरूरत है।
इस तरह भारत सरकार ने तालिबान सरकार से संवाद किया शुरू
मुझे खुशी है कि हमारे कुछ अनुभवी अफसरों की पहल पर भारत सरकार ने ठीक रास्ता पकड़ लिया है। उसने दोहा (कतर) में स्थित तालिबानी तत्वों से संपर्क बढ़ाया, अफगानिस्तान को हजारों टन गेहूं और दवाइयां भेजने की घोषणा की और तालिबान सरकार से भी संवाद किया।
यही नहीं काबुल स्थित अपने दूतावास को भी सक्रिय कर दिया है। उधर तालिबान नेताओं और प्रवक्ता ने भारत की मदद का आभार माना है। हालांकि भारत सरकार ने उनकी सरकार को कोई मान्यता नहीं दी है।
भारत ने पांचों मध्य एशियाई राष्ट्रों के सुरक्षा सलाहकारों के साथ किया है सम्मेलन
इस बीच, इस साल जनवरी में प्रधानमंत्री मोदी ने मध्य एशिया के पांचों गणतंत्रों के मुखियाओं के साथ सीधा संवाद भी कायम किया था। उन्होंने शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन में अफगानिस्तान के बारे में भारत की चिंता को व्यक्त किया था।
अफगानिस्तान में आतंकवादी शक्तियां अब ज्यादा सक्रिय न हो जाएं, इस दृष्टि से भारत ने कई पड़ोसी देशों के प्रतिनिधियों का सम्मेलन भी किया था लेकिन हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल बधाई के पात्र हैं कि जिन्होंने नई दिल्ली में कल पांचों मध्य एशियाई राष्ट्रों- तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान, उजबेकिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिजस्तान - के सुरक्षा सलाहकारों का पहला सम्मेलन आयोजित किया है।
पूरे एशिया को क्या करना चाहिए
इस सम्मेलन में मुख्य विषय यही था कि अफगानिस्तान को आतंकवाद का अड्डा बनने से कैसे रोका जाए, इस पर चर्चा हुई है। मुझे लगता है कि फिलहाल जरूरत है, संपूर्ण दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के राष्ट्रों के बीच यूरोपीय संघ की तरह एक साझी संसद, साझी न्यायपालिका, साझा बाजार, साझी मुद्रा, मुक्त व्यापार और मुक्त आवागमन की व्यवस्था कायम हो।
यदि भारत इसकी पहल नहीं करेगा तो कौन करेगा? यदि भारत पहल करे तो एशिया अपने 10 वर्षों में ही यूरोप से अधिक समृद्ध हो सकता है।