ब्लॉगः नई शिक्षा नीति के तीन साल और शिक्षकों का दायित्व
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: July 29, 2023 03:34 PM2023-07-29T15:34:47+5:302023-07-29T15:35:51+5:30
इस शिक्षा नीति ने शिक्षकों पर सर्वाधिक भरोसा किया है, बावजूद इसके कि शिक्षक-शिक्षा के मूल्यांकन के लिए गठित न्यायमूर्ति जे।एस। वर्मा कमेटी (2012) की रिपोर्ट यह बताती है कि अयोग्य शिक्षक तैयार करके हम देश के 37 करोड़ से अधिक बच्चों को खतरे में डाल रहे हैं।
डॉ. संजय शर्माः 29 जुलाई 2020 इस मायने में महत्वपूर्ण है कि तीन दशक बाद देश को प्रो. के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में शिक्षा की एक राष्ट्रीय नीति मिली, जिसे अब तीन साल पूरे होने को हैं। इन तीन सालों में इस नीति पर कई संदर्भों एवं स्तरों पर इसकी विचार प्रक्रिया से लेकर इसकी निर्मिति तक लगातार विमर्श हुआ है, जो इस नीति को अपेक्षाकृत जनसरोकारी एवं लोकतांत्रिक बनाता है। यह शैक्षिक दस्तावेज इस रूप में भी विशिष्ट है कि यह नीति, रीति और संदर्भ में स्वयं ही अपने क्रियान्वयन की रणनीतियों एवं प्रक्रियाओं के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। इस आलोक में शिक्षा नीति के सफल संचालन की जिम्मेदारी और जवाबदेही शिक्षा संस्थानों और शिक्षकों की हो जाती है। गौरतलब है कि विश्वस्तरीय गुणात्मक शैक्षिक संस्थाओं के अभाव से जूझ रहे भारतीय अकादमिक जगत के लिए यह एक सुअवसर है जहां वह अपने संपूर्ण कलेवर मसलन संरचना, प्रक्रिया, विनियम, पाठ्यक्रम, अनुसंधान, संसाधन आदि को नए अर्थ-संदर्भों में पुनर्संरचित करते हुए और अधिक प्रासंगिक बना सके।
इस शिक्षा नीति ने शिक्षकों पर सर्वाधिक भरोसा किया है, बावजूद इसके कि शिक्षक-शिक्षा के मूल्यांकन के लिए गठित न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा कमेटी (2012) की रिपोर्ट यह बताती है कि अयोग्य शिक्षक तैयार करके हम देश के 37 करोड़ से अधिक बच्चों को खतरे में डाल रहे हैं। शिक्षकों में सीखने के प्रति उपेक्षा, अपनी क्षमताओं का उचित मूल्यांकन न कर पाना और अपनी नेतृत्व क्षमता के प्रति अविश्वास के कारण ही शिक्षक स्वयं को एक ‘सामाजिक परिवर्तनकर्ता’ के रूप में प्रस्तुत नहीं कर सके हैं।
अधिकांश शिक्षकों के पास स्व-मूल्यांकन के प्रति कोई व्यवस्थित, ज्ञानात्मक एवं संरचनात्मक दृष्टि नहीं है, जिसके आधार पर वे अपने उत्तरोत्तर विकास को देख सकें। शिक्षा संस्थानों में मौजूद ‘संरचनात्मक जड़ता, बौद्धिक पदानुक्रम एवं सीखने की संस्कृति’ का अभाव भी अक्सर शिक्षकों को सीखने से रोकता है। हालांकि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 शिक्षकों को उनकी वर्तमान पारंपरिक एवं जड़ कार्य-संस्कृति, असुरक्षित सेवा स्थितियां एवं अपर्याप्त वेतन देने जैसे विभिन्न प्रकार के उत्पीड़नों आदि से बाहर निकालने में समर्थ दिखती है। भारतीय कक्षाओं में बेहतर नहीं सीख पाने की स्थितियों के लिए शिक्षकों को दोष देने के बजाय यह शिक्षा नीति शिक्षकों की गुणवत्ता और उनमें प्रेरणा की कमी के लिए शिक्षक-शिक्षा, असुरक्षित सेवा नियोजन, कार्य संस्कृति के अभाव, असम्मानजनक सेवा शर्तों आदि के परिणामस्वरूप विकसित हुई निराशाजनक कार्यात्मक संरचनाओं एवं स्थितियों को जिम्मेदार ठहराती है।