ब्लॉग: राजनीति में परिवारवाद के खात्मे के ईमानदार प्रयास हों

By विश्वनाथ सचदेव | Updated: October 23, 2024 09:43 IST2024-10-23T09:43:14+5:302024-10-23T09:43:18+5:30

आज प्रधानमंत्री गैर-राजनीतिक परिवारों के युवाओं को आगे लाने की बात करते हैं,

There should be honest efforts to end nepotism in politics | ब्लॉग: राजनीति में परिवारवाद के खात्मे के ईमानदार प्रयास हों

ब्लॉग: राजनीति में परिवारवाद के खात्मे के ईमानदार प्रयास हों

इस बार स्वाधीनता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से दिए गए अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनीति में भाई-भतीजावाद के वर्चस्व को नकारने का आह्वान किया था. उन्होंने कहा था कि वह देश के एक लाख ऐसे युवाओं को राजनीति में सक्रिय करना चाहते हैं जिनका राजनीतिक परिवारों से कोई रिश्ता न हो.

प्रधानमंत्री ने अपनी इस बात को अब फिर दुहराया है. अपने चुनाव-क्षेत्र बनारस में एक विशाल सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि “देश को परिवारवाद से बहुत बड़ा खतरा है. देश के युवाओं को सबसे ज्यादा नुकसान इसी परिवारवाद से हुआ है.” प्रधानमंत्री की बात का कुल मिलाकर देश में अनुमोदन ही हुआ है.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि भाई-भतीजावाद की इस संस्कृति ने हमारी राजनीति को एक पारिवारिक व्यवसाय बना कर रख दिया है. कांग्रेस पर इसे बढ़ावा देने का आरोप कोई भी गलत नहीं ठहरा सकता. पर यह सच सिर्फ कांग्रेस पार्टी का नहीं है.

हमारे देश की लगभग सभी पार्टियां इस बीमारी का शिकार हैं. हां, कम्युनिस्ट पार्टी वाले अवश्य इसका शिकार होने से बचे हुए दिखते हैं. बाकी सारे राजनीतिक दल, चाहे वे राष्ट्रीय स्तर के हों या फिर क्षेत्रीय दल हों, भाई-भतीजावाद के दलदल में डूबे दिखाई देते हैं.

लगभग चार साल पहले एक अध्ययन में यह पाया गया था कि हमारी तत्कालीन लोकसभा में 30 वर्ष से कम आयु के सभी सांसद राजनीतिक परिवारों की राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले थे. 40 साल से अधिक उम्र वाले दो तिहाई सांसद ऐसे ही परिवार वाले थे. अध्ययन का निष्कर्ष यह था कि यदि यही गति रही तो संभव है हमारी संसद राजनीतिक परिवारों का अड्डा बन कर रह जाए-यानी फिर वही वंशवादी राजनीति, जिससे छुटकारा पाने के लिए हमने जनतांत्रिक व्यवस्था को स्वीकारा था. इस व्यवस्था में वंश-परंपरा नहीं, नागरिक की योग्यता-क्षमता का स्वीकार ही किसी के राजनीति में आने का आधार है.

परिवारवादी राजनीति जनतांत्रिक मूल्यों को नकारती है. ऐसा नहीं है कि राजनीतिक परिवार का होने के कारण कोई व्यक्ति राजनीति में आने लायक न समझा जाए,  पर उसके राजनीति में स्थान पाने का कारण उसका परिवार नहीं होना चाहिए. माता या पिता का राजनीतिक वर्चस्व संतान को राजनीति में योग्यता का प्रमाणपत्र नहीं देता.

व्यक्ति को अपनी क्षमता प्रमाणित करने का अवसर मिलना गलत नहीं है, पर इसका आधार किसी राजनीतिक परिवार का होना नहीं हो सकता. आज प्रधानमंत्री गैर-राजनीतिक परिवारों के युवाओं को आगे लाने की बात करते हैं, पर भाजपा समेत राजनीतिक दलों में जो हो रहा है वह इस संदर्भ में निराश ही करता है. यह स्थिति कब और कैसे बदलेगी, यह  सोचना होगा हमें-यानी हर नागरिक को। 

Web Title: There should be honest efforts to end nepotism in politics

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