वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: बेलगाम जासूसी ठीक नहीं

By वेद प्रताप वैदिक | Published: November 24, 2021 09:42 AM2021-11-24T09:42:13+5:302021-11-24T09:42:13+5:30

साल 2018 में जस्टिस श्रीकृष्ण कमेटी ने इस संबंध में जो रपट तैयार की थी, उसमें सरकार की इस निरंकुशता पर न्यायालय के अंकुश का प्रावधान था। लेकिन इस विधेयक में सरकार के अधिकारी ही न्यायाधीश की भूमिका निभाएंगे।

The Personal Data Protection Bill Vedpratap Vaidik blog | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: बेलगाम जासूसी ठीक नहीं

संसद की संयुक्त संसदीय समिति ने ‘व्यक्तिगत जानकारी सुरक्षा विधेयक’ पर अपनी रपट पेश कर दी है।

संसद की संयुक्त संसदीय समिति ने ‘व्यक्तिगत जानकारी सुरक्षा विधेयक’ पर अपनी रपट पेश कर दी है। संसद के अगले सत्र में कुछ दिन बाद ही यह विधेयक कानून का रूप ले सकता है। इस समिति के 30 सदस्यों में से छह ने इस विधेयक से अपनी असहमति जताई है।

इस विधेयक का उद्देश्य है लोगों के लेन-देन, कथनोपकथन, गतिविधि, पत्र-व्यवहार आदि पर निगरानी रखना यानी यह देखना कि कोई राष्ट्रविरोधी गतिविधि तो चुपचाप नहीं चलाई जा रही है। इस निगरानी के लिए जासूसी-तंत्र को अत्यधिक समर्थ और चुस्त बनाना आवश्यक है।

इस दृष्टि से कोई भी सरकार चाहेगी कि उसके जासूसी-कर्म पर कोई भी बंधन न हो। वह निर्बाध जासूसी, जिस पर चाहे उस पर कर सके। इसी उद्देश्य से इस विधेयक को कानून बनाने की तैयारी है।

लेकिन पेगासस-कांड ने देश में व्यक्तिश: जासूसी के खिलाफ इतना तगड़ा माहौल बना दिया है कि यह विधेयक इसी रूप में कानून बन पाएगा, इसकी संभावना कम ही है क्योंकि यह सरकार को निरंकुश अधिकार दे रहा है।

इसके अनुच्छेद 35 के अनुसार सरकार की एजेंसियां ‘शांति और व्यवस्था’, ‘संप्रभुता’, ‘राज्य की सुरक्षा’ के बहाने किसी भी व्यक्ति या संगठन की जासूसी कर सकती हैं और किसी को भी कोई आपत्ति करने का अधिकार नहीं होगा।

कोई भी व्यक्ति जो अपनी निजता का हनन होते हुए देखता है, वह न तो अदालत में जा सकता है, न किसी सरकारी निकाय में शिकायत कर सकता है और न ही संसद में गुहार लगवा सकता है।

यानी सरकार पूर्णरूपेण निरंकुश जासूसी कर सकती है। 2018 में जस्टिस श्रीकृष्ण कमेटी ने इस संबंध में जो रपट तैयार की थी, उसमें सरकार की इस निरंकुशता पर न्यायालय के अंकुश का प्रावधान था। लेकिन इस विधेयक में सरकार के अधिकारी ही न्यायाधीश की भूमिका निभाएंगे।

संसद की किसी कमेटी को भी निगरानी के लिए कोई अधिकार नहीं दिया गया है। इसका नतीजा क्या होगा? नागरिकों की निजता भंग होगी। सत्तारूढ़ लोग अपने विरोधियों की जमकर जासूसी करवाएंगे। संविधान में दिए गए मूलभूत अधिकारों का हनन होगा।

यह ठीक है कि आतंकवादियों, तस्करों, अपराधियों, ठगों, विदेशी दलालों आदि पर कड़ी नजर रखना किसी भी सरकार का आवश्यक कर्तव्य है लेकिन उसके नाम पर यदि मानव अधिकारों का हनन होता है तो यह भारतीय संविधान और लोकतंत्र की अवहेलना है।

मुझे आशा है कि संसदीय बहस के दौरान सत्तारूढ़ भाजपा-गठबंधन के सांसद भी इस मुद्दे पर अपनी बेखौफ राय पेश करेंगे। 

Web Title: The Personal Data Protection Bill Vedpratap Vaidik blog

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