सुप्रीम कोर्ट की फटकार से जागा निर्वाचन आयोग

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 16, 2019 07:25 AM2019-04-16T07:25:39+5:302019-04-16T07:25:39+5:30

निर्वाचन आयोग जब सार्वजनिक जीवन में पवित्रता तथा शालीनता की रक्षा नहीं कर पाया तो सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा.

The Election Commission of the Supreme Court | सुप्रीम कोर्ट की फटकार से जागा निर्वाचन आयोग

सुप्रीम कोर्ट की फटकार से जागा निर्वाचन आयोग

निर्वाचन आयोग जब सार्वजनिक जीवन में पवित्रता तथा शालीनता की रक्षा नहीं कर पाया तो सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा. सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद निर्वाचन आयोग जागा और आचार संहिता का उल्लंघन करने के आरोप में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तथा बसपा की मुखिया मायावती को क्रमश: तीन एवं दो दिन के लिए चुनाव प्रचार करने से प्रतिबंधित कर दिया. देश में लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है.

मतदान का पहला चरण 11 अप्रैल को संपन्न हो गया और 18 अप्रैल को दूसरा चरण होगा. भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा एवं तमाम ताकतवर क्षेत्रीय दल चुनाव जीतने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं. चुनाव में धनबल तथा बाहुबल का इस्तेमाल तो आम हो गया है. पहले यह पर्दे के पीछे से होता था, अब बाहुबली खुद राजनीतिक दलों के झंडे तले चुनाव में ताल ठोंकने लगे हैं. निश्चित रूप से सार्वजनिक जीवन में बढ़ती अनैतिकता के लिए राजनीतिक दलों के साथ-साथ चुनाव आयोग भी अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकता. राजनीति के अपराधीकरण की छूट मिलने का नतीजा यह हुआ कि बड़े-बड़े राजनेताओं की जुबान बेलगाम हो गई. नेताओं की बदजुबानी इस चुनाव में सीमा लांघने लगी है.

जाति, संप्रदाय तथा धर्म के नाम पर वोटों को अपनी ओर खींचने की होड़ तक तो समझ में आता है लेकिन एक-दूसरे पर निम्नतम स्तर पर जाकर कीचड़ उछालना लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है. हमारा देश बहुलतावाद के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है. इस छवि को राजनेताओं का अमर्यादित आचरण धूमिल करता है. मायावती तथा योगी अपवाद नहीं हैं. देश के तमाम शीर्ष राजनेताओं ने समय-समय पर वोट बैंक पर नजर रखकर भड़काने एवं उकसाने वाले भाषण दिए हैं. आजादी के बाद से अब तक जाति तथा धार्मिक समीकरणों के आधार पर तमाम दल टिकट बांटते आए हैं मगर धर्म या संप्रदाय के नाम पर भड़कानेवाली बोली से आमतौर पर नेता बचते रहे हैं. नब्बे के दशक में मंडल-कमंडल की राजनीति के उभार के साथ ही कट्टरपंथी तत्व राजनीति में घुसपैठ करने लगे.

इन तत्वों को राजनीतिक दलों से संरक्षण भी मिलने लगा. यही नहीं इन तत्वों के आग उगलने वाले भाषण वोट जुटाने  के माध्यम बन गए. इन भाषणों का अनुसरण राजनेता भी करने लगे. टी.एन. शेषन ने मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में निर्वाचन आयोग की एक निष्पक्ष तथा कठोर छवि गढ़ी थी. उस छवि को उनके उत्तराधिकारी कायम नहीं रख सके. अफसोस इस बात का है कि मौजूदा निर्वाचन आयोग के पदाधिकारियों को इस स्वायत्त संवैधानिक संस्था के अधिकार तक मालूम नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट को हिदायत देनी पड़ रही है कि अफसर आयोग के अधिकारों की जानकारी लेकर उसके समक्ष पेश हों. योगी तथा मायावती पर कार्रवाई से उम्मीद की जानी चाहिए कि राजनेताओं को अपनी बोली पर संयम रखने का सबक मिलेगा. 

Web Title: The Election Commission of the Supreme Court

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