समुद्र पर मंडरा रहा प्लास्टिक छर्रों से प्रदूषण का खतरा 

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: June 13, 2025 07:28 IST2025-06-13T07:28:32+5:302025-06-13T07:28:35+5:30

न कि केवल तात्कालिक सफाई. मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियां और कीचड़ वाले तट जैसे तटीय पारिस्थितिकी तंत्र विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं

The danger of pollution from plastic pellets looms over the sea | समुद्र पर मंडरा रहा प्लास्टिक छर्रों से प्रदूषण का खतरा 

समुद्र पर मंडरा रहा प्लास्टिक छर्रों से प्रदूषण का खतरा 

विगत 26 मई को  कोच्चि के पास जलमग्न हो गए लाइबेरिया के जहाज से फिलहाल तेल के फैलाव और उसमें भरे रसायनों की पानी से क्रिया से उपजने वाले संभावित प्रदूषण का खतरा तो सामने नहीं आया है लेकिन जहाज में लदे कुछ कंटेनर के टूटने के बाद उसमें भरे प्लास्टिक की छोटी-छोटी गेंद के आकार के अनगिनत छर्रे, जिन्हें नर्डल्स कहा जाता है, का फैलाव अब कन्याकुमारी तक हो गया है.

यह न केवल समुद्री तट पर बल्कि व्यापक रूप से जल- जीवन के लिए बड़ा संकट बन गया है. छोटे और हल्के होने के कारण नर्डल पानी पर तैरते हैं और समुद्री धाराओं, नालों और नदियों द्वारा दूर-दूर तक ले जाए जाते हैं.  एक तो समय से पहले मानसून आ गया, दूसरा इन दिनों अरब सागर में बड़ी लहरें और छोटे चक्रवात भी हैं. इसके चलते यह प्लास्टिक छर्रे अपेक्षा से अधिक दूर तक फैल गए हैं. उल्लेखनीय है कि समुद्री कंटेनर में भरे सामान को सुरक्षित रखने के लिए इस तरह के छर्रे भरे जाते हैं.

तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले के 42 तटीय गांवों में से 36 के समुद्र तटों पर प्लास्टिक के छर्रों का ढेर लग गया है.  इस प्रदूषण के चलते विशेष रूप से किलियूर तालुका के तटीय आवासीय क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुए हैं जहां के सभी 16 गांव प्रभावित हुए हैं. प्लास्टिक के ये छोटे-छोटे छर्रे अब गंभीर पर्यावरणीय संकट पैदा कर रहे हैं. हालांकि ये छर्रे विषैले तो  नहीं होते, लेकिन इनसे उपजा प्रदूषण लंबे समय तक जहर से कम नहीं होता.

इनके अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रभावों में आवासीय पर्यावरण का प्रदूषण, इनका माइक्रो और नैनो प्लास्टिक में टूटना और खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करना शामिल है.  किनारे लग गए प्लास्टिक को तलाशना और उसे एकत्र करना हालांकि दूभर कार्य है फिर भी संभव है लेकिन जो प्लास्टिक कण समुद्र में ही रह गए, उनके दुष्प्रभावों से निजात का कोई  तरीका ही नहीं है.

समुद्र रातों-रात ठीक नहीं होता. विज्ञान, इतिहास और अनुभव हमें बताते हैं कि अरब सागर को फिर से सामान्य होने में कितना समय लग सकता है - और क्यों इस समय लंबी अवधि की सोच जरूरी है, न कि केवल तात्कालिक सफाई. मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियां और कीचड़ वाले तट जैसे तटीय पारिस्थितिकी तंत्र विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं. प्लास्टिक  जड़ों को ढक सकता है और ऑक्सीजन के आदान-प्रदान को रोक सकता है, जिससे पारिस्थितिकविद ‘पारिस्थितिक मृत’ क्षेत्र कहते हैं - ऐसे क्षेत्र जहां जीवन वापस आने के लिए संघर्ष करता है.

समुद्री जीव जैसे व्हेल, मछलियां और कछुए प्लास्टिक के कचरे को अपना शिकार समझकर खा लेते हैं. पेट में प्लास्टिक भरे होने की वजह से वे अंदरूनी चोटों का शिकार होते हैं और उनके तैरने की क्षमता भी कम हो जाती है. प्लास्टिक एक ऐसी चीज है जो खत्म नहीं होती, प्लास्टिक का कचरा छोटे-छोटे हिस्सों में टूट जाता है जो माइक्रोप्लास्टिक कहलाता है और यह इतना महीन होता है कि हम इसे देख भी नहीं पाते. यह माइक्रोप्लास्टिक जलीय जीवों के अंदर जाता है और फिर जलीय जीवों के जरिये यह हमारी फूड चेन का हिस्सा भी बन जाता है.

Web Title: The danger of pollution from plastic pellets looms over the sea

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