ब्लॉग: तकनीक के उपयोग से मुकदमों के शीघ्र निपटारे में मदद मिलेगी

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: May 17, 2024 10:33 IST2024-05-17T10:32:05+5:302024-05-17T10:33:00+5:30

सभी विकसित तथा कई विकासशील देशों की न्यायपालिका तकनीकी सुविधाओं से लैस है और वे सुनवाई के परंपरागत तरीकों से हटकर तकनीक का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करते हैं. भारतीय न्यायपालिका ने भी इस दिशा में मजबूती से कदम बढ़ाए हैं और उसके सकारात्मक नतीजे नजर आने लगे हैं.

technology will help in speedy disposal of cases | ब्लॉग: तकनीक के उपयोग से मुकदमों के शीघ्र निपटारे में मदद मिलेगी

(फाइल फोटो)

Highlightsतकनीक जैसे-जैसे आधुनिक होती जा रही है, हर क्षेत्र में कार्य निष्पादन बेहतर होने लगा हैभारतीय न्यायपालिका भी मुकदमों की सुनवाई तथा उनका निपटारा करने के लिए अत्याधुनिक तकनीक का सहारा लेने लगी हैइससे न्यायदान की प्रक्रिया कई तरह की जटिलताओं से मुक्त हो जाएगी

तकनीक जैसे-जैसे आधुनिक होती जा रही है, हर क्षेत्र में कार्य निष्पादन बेहतर होने लगा है. भारतीय न्यायपालिका भी मुकदमों की सुनवाई तथा उनका निपटारा करने के लिए अत्याधुनिक तकनीक  का सहारा लेने लगी है. इससे न्यायदान की प्रक्रिया कई तरह की जटिलताओं से मुक्त हो जाएगी और मुकदमों का फैसला जल्दी करने में मदद मिलेगी. सभी विकसित तथा कई विकासशील देशों की न्यायपालिका तकनीकी सुविधाओं से लैस है और वे सुनवाई के परंपरागत तरीकों से हटकर तकनीक का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करते हैं. भारतीय न्यायपालिका ने भी इस दिशा में मजबूती से कदम बढ़ाए हैं और उसके सकारात्मक नतीजे नजर आने लगे हैं.  

सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने ब्राजील की राजधानी रियो डी जनेरियो में बुधवार को हुए शिखर सम्मेलन में बताया कि भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने तकनीक के उपयोग में महत्वपूर्ण मुकाम हासिल किए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से साढ़े सात लाख से ज्यादा मुकदमों की सुनवाई की. यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट में डेढ़ लाख से ज्यादा मुकदमे ऑनलाइन दायर किए गए हैं. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि ऑनलाइन माध्यम से सुनवाई ने उच्चतम न्यायालय तक पहुंच को लोकतांत्रिक बना दिया है. प्रौद्योगिकी से न्यायपालिका तथा कानून से जुड़ी विभिन्न एजेंसियों के बीच तालमेल बेहतर हुआ है. 

भारतीय न्यायपालिका में यह बदलाव ई-कोर्ट मिशन मोड परियोजना का नतीजा है. इसके तहत तीन चरणों में न्यायपालिका में नीचे से लेकर ऊपर तक सूचना और संचार प्रौद्योगिकी को लागू करने का प्रयास किया जा रहा है. यह परियोजना जिला तथा उसकी अधीनस्थ अदालतों, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लागू की जा रही है. इसका उद्देश्य न्यायपालिका तक पीड़ित पक्षों की पहुंच आसान बनाना, न्यायदान व्यवस्था को  सरल तथा  सस्ता बनाना और न्यायदान की प्रक्रिया को तेज करना है. 

तकनीक के उपयोग से कोई भी व्यक्ति अदालत में ऑनलाइन मुकदमा दायर कर सकता है. कम्प्यूटर पर एक क्लिक से अपने मुकदमे की ताजा स्थिति के बारे में जानकारी हासिल कर सकता है. यही नहीं अदालत की कार्यवाही को इच्छुक लोग ऑनलाइन देख भी सकते हैं. इसके अलावा मुजरिमों को कड़ी सुरक्षा में अदालत में बार-बार ले जाने, सुनवाई के इंतजार में अदालत में घंटों रुकने की समस्या से भी तकनीक के इस्तेमाल से छुटकारा मिल जाएगा. कैदियों की सुरक्षा एक अहम मसला है और उसे लेकर हमारी सुरक्षा एजेंसियां कई बार काफी तनाव में रहती हैं. खासकर जब किसी खतरनाक आतंकवादी या उनके जैसे ही खूंखार अपराधियों को जब भी सुनवाई के लिए अदालत ले जाना होता है तो सुरक्षा के व्यापक इंतजाम करने पड़ते हैं. ऑनलाइन सुनवाई से ये सब जटिलताएं खत्म हो जाएंगी. 

भारतीय न्याय व्यवस्था को विश्व की सर्वश्रेष्ठ न्यायदान प्रणाली में शुमार किया जाता है. लेकिन वह देर से न्याय देने के कारण सवालों के घेरे में भी रहती है. इस वक्त देश की विभिन्न अदालतों में चार करोड़ से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं. इनमें से हजारों मुकदमे तीन-तीन पीढ़ियों से चल रहे हैं. वकील और मुवक्किल अदालतों के चक्कर काट-काटकर परेशान हो जाते हैं लेकिन जल्दी न्याय नहीं मिलता. तकनीक के इस्तेमाल से दूर रहने के कारण संबंधित पतों पर अदालती निर्देशों की जानकारी डाक से भिजवाई जाती रही जिससे कई दिन लग जाते थे. अब हालात बदल रहे हैं. मुकदमे के हर पल की जानकारी अब तकनीक के इस्तेमाल से तुरंत मिलने लगी है. 

तकनीक के उपयोग की शुरुआत का भारतीय न्यायपालिका में यह आरंभिक चरण है. कई विधिवेत्ताओं तथा वर्तमान एवं पूर्व न्यायाधीशों ने अदालती कामकाज में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग की वकालत की है. निकट भविष्य में हम इस तकनीक को भी न्यायपालिका में प्रभावी भूमिका निभाते देखेंगे. इसी तरह ई-फाइलिंग की दिशा में अदालतों को अभी लंबा सफर तय करना है. ई-फाइलिंग अदालती रिकॉर्ड को कागजरहित, पारदर्शी बनाने के साथ-साथ आसानी से सुलभ बना देगी. तकनीक का उपयोग हर क्षेत्र का चेहरा-मोहरा बदल रहा है और हमारी न्यायपालिका भी इससे अछूती नहीं है. उम्मीद की जानी चाहिए कि निचली अदालतें भी आधुनिक तकनीक को अपनाने में तेजी दिखाएंगी.

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