ब्लॉग: प्रासंगिक है स्वामी विवेकानंद का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

By निरंकार सिंह | Published: January 12, 2022 10:35 AM2022-01-12T10:35:09+5:302022-01-12T10:36:09+5:30

1893 में अमेरिका के शिकागो में विश्व के सभी धर्मो के महासम्मेलन में स्वामी विवेकानंद ने जिस ज्ञान, उदारता, विवेक और वाग्मिता का परिचय दिया, उससे पूरी दुनिया उनकी कायल हो गई.

Swami Vivekananda jayanti and how his cultural nationalism relevant | ब्लॉग: प्रासंगिक है स्वामी विवेकानंद का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

ब्लॉग: प्रासंगिक है स्वामी विवेकानंद का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

युवाओं को सही मार्गदर्शन के लिए हर साल स्वामी विवेकानंद की जयंती 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है. शिकागो के विश्व महाधर्म सम्मेलन में जब स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म और हिंदुत्व का परचम फहराया था, तब वह युवा ही थे. इस साल 12 से 16 जनवरी तक राष्ट्रीय युवा महोत्सव के साथ-साथ राष्ट्रीय युवा संसद महोत्सव का भी आयोजन किया जा रहा है. 

24वें राष्ट्रीय युवा महोत्सव का उद्घाटन समारोह और दूसरे राष्ट्रीय युवा संसद महोत्सव का समापन समारोह 12 जनवरी को संसद के सेंट्रल हॉल में होगा. 16 जनवरी को 24वें राष्ट्रीय युवा महोत्सव का समापन नई दिल्ली के डॉ. आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में होगा. किसी भी देश का भविष्य उस देश के युवाओं पर निर्भर करता है. देश के विकास में युवाओं का बड़ा योगदान होता है.

स्वामी विवेकानंद प्राचीन भारतीय ऋषि-महर्षियों की परंपरा के एक ऐसे क्रांतिकारी संन्यासी थे, जिन्होंने अपने उपदेशों और क्रांतिकारी विचारों के माध्यम से हिंदुओं में राष्ट्रीय चेतना और स्वाभिमान की भावना उत्पन्न कर उन्हें भारत राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा के लिए सतत संघर्ष करते रहने की प्रेरणा दी. स्वामीजी के तेजस्वी व्यक्तित्व और ओजस्वी वाणी में ऐसा विलक्षण आकर्षण था कि साधारण व्यक्ति से लेकर अग्रणी बुद्धिजीवी तक उनके प्रति श्रद्धावनत हो जाते थे. 

अल्प समय में ही स्वामीजी ने हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति की विजय पताका सात समुद्र पार के अनेक देशों में फहराकर अपने भारत राष्ट्र को गौरवान्वित करने में सफलता प्राप्त की थी. अपने अल्पजीवन काल (1863-1902) में ही इस विलक्षण ओजस्वी संन्यासी ने जिस प्रकार संसारव्यापी ख्याति प्राप्त की थी, वह अन्य किसी को प्राप्त नहीं हुई. 

प्रसिद्ध फ्रांसीसी दार्शनिक रोम्यां रोलां ने उनके विषय में ठीक ही लिखा था- ‘उनके द्वितीय होने की कल्पना करना असंभव है. वे जहां भी पहुंचे अद्वितीय रहे. हर कोई उनमें अपने नेता का, मार्गदर्शक का दर्शन करता था. वे ईश्वर के प्रतिनिधि थे और सब पर प्रभुत्व प्राप्त कर लेना ही उनकी विशिष्टता थी.’

12 जनवरी 1863 को कोलकाता में सुविख्यात विधिवेत्ता विश्वनाथ दत्त तथा भुवनेश्वरी देवी के पुत्र के रूप में जन्मे, ‘नरेंद्र’ का प्रादुर्भाव ही अपनी विलक्षण प्रतिभा तथा तेजोमय व्यक्तित्व के माध्यम से विदेशी दासता के बंधनों में जकड़े हुए भारत राष्ट्र में स्वाभिमान की भावना का संचार करने व संसार भर में सनातन धर्म के आध्यात्मिक मूल्यों का संदेश पहुंचाने के लिए हुआ था. 

सन् 1893 ई. में शिकागो (अमेरिका) में विश्व के सभी धर्मो के महासम्मेलन में स्वामीजी ने जिस ज्ञान, जिस उदारता, जिस विवेक और जिस वाग्मिता का परिचय दिया, उससे वहां के सभी लोग मंत्र-मुग्ध और पहले ही दिन से उनके भक्त हो गए. 

उनके भाषणों पर टिप्पणी करते हुए ‘द न्यूयॉर्क हेराल्ड’ ने लिखा था, ‘धर्मो की पार्लियामेंट में सबसे महान व्यक्ति विवेकानंद हैं. उनका भाषण सुन लेने पर अनायास यह प्रश्न उठ खड़ा होता है कि ऐसे ज्ञानी देश को सुधारने के लिए धर्म-प्रचारक भेजने की बात कितनी बेवकूफी की बात है.’ शिकागो सम्मेलन से उत्साहित होकर स्वामीजी अमेरिका और इंग्लैंड में तीन साल तक रह गए और इस अवधि में भाषणों, वार्तालापों, लेखों, कविताओं और वक्तव्यों के द्वारा उन्होंने हिंदू धर्म के सार को सारे यूरोप में फैला दिया.

जब स्वामी विवेकानंद का आविर्भाव हुआ, उस समय देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था. देश के उस पराधीनता काल में भी किसी भी तरह की आत्महीनता की बजाय भारत को, हिंदू चिंतन को विश्व में प्रतिष्ठा दिलाकर एक दिग्विजयी योद्धा की भांति स्वामी विवेकानंद भारत लौटे. उन्होंने भारत भ्रमण कर निरंतर देशवासियों को जगाया, अपने समाज जीवन की कुरीतियों, मानसिक जड़ता और अंधविश्वासों के कुहासे को चीरकर अपने स्वत्व को पहचानने व अपने पूर्वजों की थाती को संभालने का आह्वान किया.

भारत माता को साक्षात देवी मानकर उसके उत्कर्ष के लिए उसकी सेवा में सर्वस्व न्योछावर कर देने की भावना, दरिद्रनारायण की सेवा, स्त्री चेतना का जागरण, शिक्षा का प्रसार, राष्ट्रोन्नयन में युवाओं की भूमिका, उनका चरित्र निर्माण, उनका बलशाली बनना, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का बोध, भारत की आध्यात्मिक चेतना का प्रवाह, जाति, पंथ भेद से ऊपर उठकर सामाजिक समरसता व लोक कल्याण के द्वारा भारत का उत्थान, राष्ट्रीय एकात्मभाव का जागरण, हिंदू संस्कृति का गौरवबोध, झोपड़ियों में से भारत उदय का आर्थिक चिंतन, ऐसी बहुआयामी सार्वकालिक विचार दृष्टि स्वामीजी ने हमें दी जो हमारे वैयक्तिक, सामाजिक व राष्ट्रजीवन के सर्वतोमुखी उत्कर्ष की भावभूमि है.

Web Title: Swami Vivekananda jayanti and how his cultural nationalism relevant

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