ब्लॉग: भारत के खिलाफ बड़ी आतंकी साजिश का शक

By राजेश बादल | Published: June 13, 2023 10:27 AM2023-06-13T10:27:48+5:302023-06-13T10:29:11+5:30

कनाडा में हिंसा अथवा उग्रवाद के लिए कोई जगह नहीं है तो भी यह कैसे भूल सकते हैं कि पंजाब में खालिस्तानी आंदोलन की जड़ें कनाडा में ही थीं. जगजीत सिंह चौहान को लंबे समय तक कनाडा सरकार का ही संरक्षण मिलता रहा.

Suspicion of big terrorist conspiracy against India | ब्लॉग: भारत के खिलाफ बड़ी आतंकी साजिश का शक

ब्लॉग: भारत के खिलाफ बड़ी आतंकी साजिश का शक

समंदर पार से आ रही कुछ सूचनाएं चिंता बढ़ाने वाली हैं. भारत विरोधी कट्टरपंथी तथा आतंकवादी तत्वों को सुनियोजित ढंग से संरक्षण दिए जाने के सबूत मिल रहे हैं. भारतीय विदेश और सुरक्षा नीति के लिए आने वाले समय में यह सूचनाएं गंभीर चुनौती के रूप में प्रस्तुत हो सकती हैं. इन जानकारियों के आधार पर आपात कार्ययोजना तैयार करने की आवश्यकता इसलिए भी है क्योंकि वैश्विक राजनीति में दहशतगर्दी को सियासी समर्थन बड़ी ताकतों की नीति का हिस्सा बनता जा रहा है. 

अब सरकारें अपने राष्ट्रीय हितों के चलते एक ऐसा खामोश और खतरनाक मुखौटा लगा बैठी हैं, जो बहुत साफ-साफ नहीं दिखाई देता. इस वजह से उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई करना भी आसान नहीं रहा है.

ताजा मामला बीते दिनों कनाडा से आया. पंजाब में आतंकवाद रोकने के लिए की गई भारतीय सेना की कार्रवाई ऑपरेशन ब्लू स्टार की सालाना तारीख से दो दिन पहले ब्रेम्पटन शहर में एक प्रदर्शन झांकी यात्रा शहर की सड़कों पर निकाली गई. इसमें एक झांकी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या के बारे में थी. इसमें श्रीमती गांधी को उनका सुरक्षाकर्मी गोली मारता दिखाया गया था. उसके साथ एक बड़े बैनर में लिखा था कि यह बदला है. इसके अलावा अन्य झांकियों में आतंकवाद को महिमामंडित करते हुए आपत्तिजनक नारे और पोस्टर दिखाए गए थे. 

भारत ने इसका कड़ा विरोध किया तो ब्रेम्पटन के महापौर पैट्रिक ब्राउन उस झांकी के समर्थन में उतर आए. उन्होंने कहा कि झांकी में कुछ भी गलत नहीं है और यह कनाडा के कानून के तहत घृणा अपराध की श्रेणी में नहीं आता. महापौर के कार्यालय ने बाकायदा इस संबंध में एक बयान भी जारी किया. उसमें कहा गया था कि कनाडा अभिव्यक्ति की आजादी को रोक नहीं सकता. जब भारत के विदेश मंत्री ने इस पर सख्त ऐतराज किया तो कनाडा के दिल्ली उच्चायुक्त कैमरन मैके ने सफाई दी कि कनाडा में हिंसा या नफरत के महिमामंडन के लिए कोई स्थान नहीं है.

एक बार मान लें कि कनाडा में हिंसा अथवा उग्रवाद के लिए कोई जगह नहीं है तो भी यह कैसे भूल सकते हैं कि पंजाब में खालिस्तानी आंदोलन की जड़ें कनाडा में ही थीं. जगजीत सिंह चौहान को लंबे समय तक कनाडा सरकार का ही संरक्षण मिलता रहा. इसके अलावा वहां की सियासत में ऐसे तत्व हावी हैं जो भारत में आतंकवादी गतिविधियों को चोरी-छिपे समर्थन देते रहे हैं. 

भारत ने समय-समय पर विरोध भी जताया, मगर कनाडा की हुकूमत ने उसे कभी गंभीरता से नहीं लिया. विदेश और रक्षा नीति नियामकों के लिए अब इस पर सख्त कार्रवाई करने का अवसर आ गया है. इन्हीं तत्वों ने पंजाब में विधानसभा चुनाव के बाद नए सिरे से अशांति और अस्थिरता फैलाने के प्रयास किए हैं. सूबे की सरकार इन तत्वों से कड़ाई के साथ निपटने में नाकाम रही है.

कनाडा और अमेरिका एक तरह से जुड़वां देश माने जाते हैं और यह संयोग नहीं है कि इन्हीं दिनों पाकिस्तान सरकार का समर्थन पा रहा लश्कर-ए-तैयबा अमेरिका के अनेक नगरों में कश्मीर के मुद्दे पर व्याख्यानमालाओं का आयोजन कर रहा है. यह आयोजन पाकिस्तान इंस्टीट्यूट फॉर कनफ्लिक्ट एंड सिक्योरिटी के बैनर तले हो रहे हैं. इसे पाकिस्तान के थिंक टैंक की तरह स्वीकार किया जाता है. इसका मुखिया अब्दुल्ला खान है. वह अमेरिका की प्रतिबंधित सूची में शामिल है. उसे अब्दुल्ला मुंतजिर के नाम से जाना जाता है. 

एक अमेरिकी रिपोर्ट कहती है कि अब्दुल्ला पिछले पच्चीस साल से लश्कर-ए-तैयबा का मीडिया प्रमुख है. एक तरफ तो यह आयोजक अमेरिका की प्रतिबंधित सूची में है, दूसरी ओर उसके आयोजनों में अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत मसूद खान, पाकिस्तान के पूर्व विधि मंत्री अहमद बिलाल सूफी और अमेरिकी सरकार के प्रतिनिधि माइकल जाते हैं. मसूद खान पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के प्रमुख रह चुके हैं और पाकिस्तानी हुकूमत के इशारे पर वहां आतंकवादी शिविरों को पर्दे के पीछे से मदद करते रहे हैं. वे अब्दुल्ला को उस इलाके में भाषणों के लिए आमंत्रित करते रहे हैं. यानी अब पाकिस्तान कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर राजनीतिक मुद्दा बनाकर पेश करना चाहता है.

अब्दुल्ला के अमेरिका में आयोजनों का भारत ने पुरजोर विरोध किया तो माइकल और मसूद ने बाद के आयोजनों से किनारा कर लिया. लेकिन उससे पहले ऐसे आयोजनों में उनकी सहमति को अनजाने में दी गई तो नहीं माना जा सकता. पाकिस्तान के सेंटर फॉर रिसर्च एंड सिक्योरिटी स्टडी के कार्यकारी निदेशक इम्तियाज गुल भी इस खुलासे से हैरान हैं. वे स्पष्ट कहते हैं उनके मुल्क की हालत अत्यंत खराब है और यदि ऐसे में कोई भी सरकार पड़ोस में अस्थिरता फैलाने को अपने एजेंडे में रखती है तो इससे बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण क्या हो सकता है?

कनाडा और अमेरिका की जिन दो घटनाओं का मैंने हवाला दिया, वे अलग-अलग करके नहीं देखी जा सकतीं. यही नहीं, एशिया की दो बड़ी ताकतों चीन और रूस की भूमिका को भी इससे जोड़कर देखा जाना चाहिए. रूस और भारत के बीच गहरे रिश्ते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच उतार चढ़ाव भी देखने को मिले हैं. ताजा खबर रूस से आई है कि वह पाकिस्तान को भी कच्चा तेल देगा. 

इसके लिए लंबे समय से चीन उसे मना रहा था. चीन बहुत दिनों से एशिया में खुद को एकछत्र स्वामी के रूप में देखना चाहता है. भारत उसमें आड़े आता है. काफी पहले चीन का एक खुफिया प्लान उजागर हुआ था, जिसमें भारत के विघटन की बात कही गई थी. पंजाब और कश्मीर के मसले को सियासी रंग देकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की साजिश भी इसी खुफिया योजना का हिस्सा क्यों नहीं मानी जानी चाहिए?

Web Title: Suspicion of big terrorist conspiracy against India

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