खाप पंचायत पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना काम कर दिया है, अब हमारी बारी है
By भारती द्विवेदी | Published: April 1, 2018 07:22 AM2018-04-01T07:22:37+5:302018-04-01T08:30:19+5:30
"परिवार की इज्जत" के नाम पर दो बालिगों के साथ हो रही हिंसा में, हमारा चुप रहना भी हमें अपराधी बनाता है।
पिछले कुछ दिनों से सुप्रीम कोर्ट एक के बाद एक गलत करने वालों को फटकार लगा रही है। चाहे सरकार का कोई गलत फैसला हो या कोई सामाजिक मुद्दा। इसी क्रम में 27 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने खाप पंचायत को फटाकर लगाते हुए प्यार करने वालों के पक्ष में एक फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला अंतरजातीय विवाह या दूसरे धर्म में शादी करने वाले जोड़ों के लिए वो आजादी है, जिसके लिए वो दर-दर भटकते हैं। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला उन सारे असामाजिक तत्वों के मुंह पर तमाचा है, जो खुद को कानून-संविधान से ऊपर समझते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हर बालिग को अपना पार्टनर चुनने का अधिकार है। खाप पंचायत या कोई भी दूसरी संस्था इन जोड़ों के मौलिक अधिकार में दखल नहीं दे सकती।
प्रेमी या शादीशुदा जोड़ों की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी गाइडलाइंस के मुख्य बिंदू-
- राज्य सरकारों को पिछले 5 साल में जहां भी ऑनर किलिंग हुई या खाप पंचायत ने प्रेमी जोड़ों के जिंदगी में दखल दिया है, उन सबकी पहचान करने को कहा।
- कपल्स के खिलाफ जहां पर खाप पंचायत की बैठक हो, सूचना मिलते ही जिले के सीनियर अधिकारियों को सूचित किया जाए।
- डीएसपी लेवल के अधिकारी खाप पंचायत के लोगों से मिले और उन्हें समझाएं कि ये गैरकानूनी है। ना समझने पर डीएम-एसपी को सूचित कर धारा 144 लगाई जाए।
- बालिग कपल्स के खिलाफ फैसला सुनाने वाले खाप पंचायत के सदस्यों पर आईपीसी की धाराओं के तहत केस दर्ज किया जाया।
- जिन जोड़ों को खाप का डर हो उन्हें पुलिस सुरक्षा दें। साथ ही उनके लिए सेफ होम बनाए जाए।
- ऑनर किलिंग मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनें और सुनवाई छह महीने के अंदर पूरी हो।
- लापरवाही बरतने वाले पुलिस या प्रशासन के अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई की जाए।
- राज्य सरकारें हर जिले में स्पेशल सेल बनाए, जिसमें एसपी, जिला सोशल वेलफेयर ऑफिसर हों। स्पेशल सेल में 24 घंटे की हेल्प लाइन बनाई जाएं, जहां शिकायतें दर्ज हों।
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस देखें तो कानून की तरफ से एक प्रेमी जोड़े को सुरक्षित करने का हर संभव प्रयास किया गया है। अब तक अपनी पसंद को अपना जीवनसाथी बनाने को लेकर ना जाने कितनी ही जिंदगियां बलि चढ़ा दी गई है या उनकी परिवार को गांव से निकाला दिया गया, उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया क्योंकि उनके बच्चों ने अपनी पंसद को चुन लिया। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसला से ना जाने कितने जोड़ों की जिदंगी बच जाएगी। कितने ही जोड़ों को ये हिम्मत मिलेगी कि आगे बढ़कर वो अपनी मन मुताबिक साथी को चुन सकेंगे।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राहत जरूर मिली है, लेकिन बिना समाज की भागीदारी के हालात नहीं बदलने वाले हैं। कहीं भी कोई प्रेमी जोड़ों को लेकर हिंसा हो रही है या पंचायत अपना फरमान सुन रहा है। वहां हमें जागरुकता दिखाते हुए उन्हें रोकने की पहल करनी होगी, या फिर पुलिस के पास कंप्लेन करना होगा। हिंसा का वीडियो बनाकर वायरल करने से ज्यादा जरूरी, उसे रोकना जरूरी है या समझना होगा।