शरद जोशी की कहानीः रुपए और सेंट का चक्कर

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: February 10, 2019 15:24 IST2019-02-10T15:24:31+5:302019-02-10T15:24:31+5:30

पैसे की जगह सेंट चलेंगे. यह खबर सेंट पर सेंट ठीक है. पैसे का चलन खत्म हो रहा है और वह जमाना तो बीत चुका जब लोग कौड़ियों का, पाइयों का इस्तेमाल करते थे.

Story of Sharad Joshi: The rupees and the affair of Sent | शरद जोशी की कहानीः रुपए और सेंट का चक्कर

शरद जोशी की कहानीः रुपए और सेंट का चक्कर

यह बात सोलह आने सच है कि रुपए में सोलह आने और चौंसठ पैसेवाली प्रथा बड़ी बेतुकी है.

यों हर बेतुकी चीज जिससे हमारा लगाव हो गया हो, बरसों बीत जाने पर हमारी जिंदगी का इतना कीमती टुकड़ा हो जाती है कि छूटना मुश्किल हो जाता है. छह बच्चों की मां तो कानून पास होने के बाद भी पति को तलाक नहीं दे सकती. इसी प्रकार से ये सितारों जैसी प्यारी इकन्नियां और तांबे के पैसे, जिन्हें जेब में रखकर हम पैसेवाले कहलाते हैं, अब सुना है कि जमाने के बदलते तेवरों के साथ बदल जाएंगे और उसकी जगह वह चीज आएगी जिससे अभी तक हम इत्र का ही मतलब लेते थे.

पैसे की जगह सेंट चलेंगे. यह खबर सेंट पर सेंट ठीक है. पैसे का चलन खत्म हो रहा है और वह जमाना तो बीत चुका जब लोग कौड़ियों का, पाइयों का इस्तेमाल करते थे. अब तो मुर्दा ले जाते समय भी कोई कौड़ी नहीं फेंकता, वहां भी पैसे फेंकते हैं. धेले कभी नजर आ जाते हैं तो मन को ऐसा लगता है, जैसे पुराने मुलाकाती से मिले हों! पाइयां तो सिर्फ लिखने के काम आती हैं, छह पाई लिखनेवाला कभी छह पाई छू भी नहीं पाता.

और यों अब पैसे की भी क्या इज्जत रह गई है. आजकल जो नई जात के भिखारी आए हैं, वे पैसा नहीं मांगते. उससे मांगनेवाले की इज्जत गिरती है और देनेवाले की भी. वह एक आना मांगता है. अधन्ना बड़ी छोटी चीज है. लोग सहज ही फेंक देते हैं, जैसे पान खाकर थूका हो- अच्छा नहीं बना. अब मामला इकन्नी पर है. पॉलिशवाला, सिटी बसवाला इकन्नी मांगता है. अभी तक पैसे, आने, चवन्नी की बात थी. पर अब दूसरी बात बन रही है. 
समाज भी बदल रहा है. पहले चौंसठ मजदूरों पर चार अफसर, दो सेक्रेटरी, एक राजा होता था. तब चौंसठ पैसे, चार चवन्नी, दो अठन्नी और एक रुपया ठीक था- मगर अब सामुदायिक योजना का युग है. सौ मजदूर, चार अफसर व एक मिनिस्टर. सौ सेंट का एक रुपया होगा. मैं छोटा था तब अपने क्लास के लड़कों से पूछा करता था कि बताओ, एक अमेरिकन सेंट, एसेंट, टु ए सेंट, विथ ए सेंट, फुल ऑफ सेंट का क्या अर्थ हुआ? वे मुझसे इन सेंटों की स्पेलिंग पूछते. मगर मुंह से कोई स्पेलिंग बोलता है?

मुंह से यदि स्पेलिंग निकलते तो कई विद्वान मूर्ख सिद्ध हो जाएं. अंग्रेजी की यह माया है. पर यह भाषा का चक्कर है और सुनीतिकुमार चाटुज्र्या और डॉ. धीरेन्द्र वर्मा ने इसमें कुछ लिखने की मुङो मनाही कर दी है. यों सेंट तथा पैसे पर भी मेरा विवेचन इतना सुंदर है कि अब देशमुख कहेंगे कि आप इस पर न लिखा करें. मगर फिर भी वह सेंट केवल आर्थिक जीवन में आत्मा की तरह अदृश्य रहेगा. एक रुपए की चिल्लर के सौ सेंट कौन जेब में रखेगा और एक-दो सेंट में मिलेगा भी क्या? यों रीसेंट ये सेंट की योजना डीसेंट है.
 (रचनाकाल - 1950 का दशक)

Web Title: Story of Sharad Joshi: The rupees and the affair of Sent

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