जातिगत भेदभाव दूर करने की दिशा में कदम

By अवधेश कुमार | Updated: September 26, 2025 07:07 IST2025-09-26T07:07:09+5:302025-09-26T07:07:12+5:30

पुलिस द्वारा तैयार अभिलेखों में आरोपी के पिता के नाम के साथ माता का नाम भी अंकित किया जाएगा. अगर किसी तरह की कानूनी बाधाएं हैं तो अंकित किया जा सकता है.

Steps towards eliminating caste discrimination | जातिगत भेदभाव दूर करने की दिशा में कदम

जातिगत भेदभाव दूर करने की दिशा में कदम

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जाति उल्लेख करने के संबंध में जारी शासनादेश निस्संदेह दिन-रात जाति-जाति के शोर की कर्कश ध्वनि के बिल्कुल विपरीत है. विरोधी पार्टियों की प्रतिक्रियाएं अनुकूल नहीं हो सकतीं. इसलिए इसका मूल्यांकन उसके आधार पर नहीं वरन् संविधान में जाति, लिंग, नस्ल भेद से ऊपर समानता के व्यवहार के राज्य के दायित्व, भारतीय समाज की एकता तथा देश की अखंडता की दृष्टि से क्या होना चाहिए इस कसौटी पर किया जाएगा.

सामान्य सिद्धांत है कि जब किसी भी विषय की अति हो जाती है तो समाज में वितृष्णा पैदा होती है और प्रतिक्रियाएं उसी अनुरूप आने लगती हैं. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सरकार को आदेश दिए थे कि पुलिस रिकॉर्ड व सार्वजनिक स्थलों पर लोगों के नाम के साथ जाति के उल्लेख पर रोक लगाई जाए. वर्तमान राजनीतिक माहौल में प्रदेश में दूसरी सरकार होती तो इसके विरुद्ध याचिका दायर करती.

किंतु उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने हाईकोर्ट की मंशा को समझा, राज्य के अंदर आम लोगों की सामूहिक भावनाओं को महसूस किया तथा जाति उल्लेख से उत्पन्न की जाने वाली डरावनी व समाज के लिए विघातक स्थितियों का ध्यान रखते हुए विस्तृत आदेश जारी किया है.

शासनादेशों पर दृष्टि डालें तो सबसे पहले मुकदमों के संदर्भ में कहा गया है कि अभियुक्तों की जाति का उल्लेख नहीं करने के संदर्भ में राज्य सरकार नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) से सीसीटीएनएस में इसका कॉलम हटाने का अनुरोध करेगी. एफआईआर में आरोपियों की जाति का उल्लेख नहीं किया जाता है, लेकिन सीसीटीएनएस (क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग एंड नेटवर्क सिस्टम) पोर्टल में है.

इस कॉलम को डिलीट करने एवं आरोपी के साथ उसकी माता का नाम अंकित करने के लिए पोर्टल में बदलाव का अनुरोध किया जाएगा. थानों के नोटिस बोर्ड पर ही नहीं, हिस्ट्रीशीटर के नाम, पंचनामा, गिरफ्तारी मेमो, व्यक्तिगत तलाशी मेमो तथा थानों से वरिष्ठ अधिकारियों को भेजी जाने वाली मुकदमों व अपराधों से जुड़ी रिपोर्ट में भी अब जाति का उल्लेख नहीं किया जाएगा. पुलिस द्वारा तैयार अभिलेखों में आरोपी के पिता के नाम के साथ माता का नाम भी अंकित किया जाएगा. अगर किसी तरह की कानूनी बाधाएं हैं तो अंकित किया जा सकता है.

जैसे अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण कानून वाले अपराधों के आरोपियों तथा शिकायतकर्ता की जाति लिखी जाएगी. साफ है कि इसके लिए पुलिस नियमावली व मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) में संशोधन करना होगा.

जरा सोचिए, एक ओर हमारा संविधान जाति, नस्ल, पंथ, लिंग सभी भेदों से परे समानता पर आधारित व्यवस्था का आदेश देता है और दूसरी ओर राज्य में सरकारी नियम के अनुसार अपराध के आरोपियों और शिकायतकर्ताओं की जाति अंकित की जा रही है! पुलिस नियमावली और एसओपी में इसे शामिल करना ही संविधान की भावनाओं के विपरीत था. जाति लिखे होने से पुलिस प्रशासन के संबंधित कर्मियों द्वारा भी कार्रवाई में पक्षपात या विरोधी भावना से कार्रवाई की घटनाएं सामने आती रही हैं.

Web Title: Steps towards eliminating caste discrimination

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