असुरक्षा के भाव का शिकार हैं राज्यों की सरकारें, अभय कुमार दुबे का ब्लॉग

By अभय कुमार दुबे | Published: June 23, 2021 02:46 PM2021-06-23T14:46:50+5:302021-06-23T14:48:19+5:30

भाजपा का आलाकमान उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपनी बातें मनवाने में नाकाम है. उत्तराखंड में उसके वर्तमान और निवर्तमान मुख्यमंत्री के बीच जंग चल रही है.

State governments victims sense of insecurity up mp punjab congress bjp Abhay Kumar Dubey's blog | असुरक्षा के भाव का शिकार हैं राज्यों की सरकारें, अभय कुमार दुबे का ब्लॉग

छत्तीसगढ़ में ढाई साल पूरे होने के बाद जूदेव की तरफ से बघेल के खिलाफ पेशबंदी शुरू हो गई है.

Highlightsमध्य प्रदेश में रोज खबर उड़ती है कि शिवराज सिंह चौहान को बदलने की तैयारियां हो रही हैं.कांग्रेस भी अपने राज्यों के नेतृत्व को पूरी तरह से नियंत्रित कर पाने में असमर्थ है. राजस्थान में गहलोत की सरकार  सचिन पायलट की चुनौती को हाशिये पर नहीं डाल पा रही है.

क्षेत्रीय शक्तियों की लगातार मौजूदगी इस बात का प्रमाण है कि जिन पार्टियों को हम राष्ट्रीय दल कहते हैं वे वास्तव में बहुप्रादेशिक पार्टियां हैं.

पूरे देश में किसी भी पार्टी का एकसार प्रभाव नहीं है. इस बात को इस तरह से भी कहा जा सकता है कि कोई एक पार्टी हर प्रदेश में सत्ता की दावेदार नहीं है. जिन पार्टियों की एक से ज्यादा प्रदेशों में सरकारें हैं भी (जैसे भाजपा और कांग्रेस), उनके आलाकमान अपनी राज्य सरकारों को नियंत्रित कर पाने के मामले में हमेशा सांसत में फंसे रहते हैं. इस समय भी ऐसी ही स्थिति है.

शिवराज सिंह चौहान को बदलने की तैयारियां

भाजपा का आलाकमान उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपनी बातें मनवाने में नाकाम है. उत्तराखंड में उसके वर्तमान और निवर्तमान मुख्यमंत्री के बीच जंग चल रही है. मध्य प्रदेश में रोज खबर उड़ती है कि शिवराज सिंह चौहान को बदलने की तैयारियां हो रही हैं.

अगर येदियुरप्पा नाराज हो गए तो

कर्नाटक के बुजुर्ग मुख्यमंत्री को आलाकमान बदलना चाहता है लेकिन पिछला अनुभव बताता है कि अगर येदियुरप्पा नाराज हो गए तो प्रदेश में भाजपा का पूरी तरह से कबाड़ा कर सकते हैं. राजस्थान में आलाकमान वसुंधरा राजे सिंधिया से छुटकारा पाना चाहता है लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री ने अपनी अहमियत बनाए रखी है.

जूदेव की तरफ से बघेल के खिलाफ पेशबंदी

कांग्रेस भी अपने राज्यों के नेतृत्व को पूरी तरह से नियंत्रित कर पाने में असमर्थ है. राजस्थान में गहलोत की सरकार  सचिन पायलट की चुनौती को हाशिये पर नहीं डाल पा रही है. पंजाब में अमरिंदर सिंह की सरकार को लगातार सिद्धू और बाजवा की असंतुष्ट गतिविधियों का सामना करना पड़ रहा है. छत्तीसगढ़ में ढाई साल पूरे होने के बाद जूदेव की तरफ से बघेल के खिलाफ पेशबंदी शुरू हो गई है.

अमरिंदर सिंह की खुदमुख्तारी पसंद नहीं

कहा यह जा रहा है कि दोनों के बीच कोई ढाई-ढाई साल का फार्मूला था, जिसका अब पालन होना चाहिए. कांग्रेस का आलाकमान इस समय न तो पार्टी को ठीक से चला पा रहा है, और न ही अपनी राज्य सरकारों की समस्याओं का समाधान करने की स्थिति में है. एक तरफ तो वह अनिर्णय का शिकार लग रहा है, दूसरी तरफ यह भी प्रतीत हो रहा है कि आलाकमान अपनी ही सरकारों के मुख्यमंत्रियों के खिलाफ असंतोष को हवा देने में लगा है. अगर वे चाहें तो पंजाब में सिद्धू की आवाज को कभी भी बंद करा सकते हैं, लेकिन उन्हें अमरिंदर सिंह की खुदमुख्तारी पसंद नहीं है.

पंजाब और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के पास भी विधायकों की कमी नहीं

कुल मिला कर स्थिति यह है कि केंद्र की सरकार सुरक्षित और मजबूत है लेकिन राज्यों की सरकारें असुरक्षा और अस्थिरता में फंसी हुई हैं. खास बात यह है इस असुरक्षा का कारण विधायकों की संख्या कम होना नहीं है. उ.प्र. में भाजपा के पास बहुमत से कहीं ज्यादा सवा तीन सौ विधायक हैं. पंजाब और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के पास भी विधायकों की कमी नहीं है.

लेकिन, मुख्यमंत्रियों को या तो आलाकमान का आशीर्वाद प्राप्त नहीं है, या प्रदेश में मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखने वाली शक्तियों को संयमित कर पाने में आलाकमान सफल नहीं है. जिन प्रदेशों में चुनाव नजदीक आ रहा है, वहां असंतोष की आवाज सबसे ज्यादा बुलंद है. पार्टी के बाहर और भीतर मोर्चे खुले हुए हैं. दोनों तरफ सौदेबाजियां चल रही हैं.

हर बगावत को बुरी तरह से कुचल डालता

राष्ट्रीय पार्टियों की राज्य सरकारों की इस बुरी हालत के मुकाबले रख कर देखा जाए तो क्षेत्रीय शक्तियों की राज्य सरकारें बेहतर स्थिति में हैं. दरअसल, क्षेत्रीय ताकतों की राजनीति का ढांचा ही अलग है. वहां हर मुख्यमंत्री अपने-आप में आलाकमान भी है, और अपने खिलाफ होने वाली हर बगावत को बुरी तरह से कुचल डालता है.

रामाराव ने अपनी पत्नी लक्ष्मी पार्वती को अपना उत्तराधिकारी बनाया था

ओडिशा में हम देख चुके हैं कि नवीन पटनायक के खिलाफ हुए विद्रोह का क्या हश्र हुआ था. क्षेत्रीय ताकतों की सरकारें उसी समय हिलती हैं जब उन्हें नियंत्रित करने वाले परिवारों के भीतर ही विभाजन हो जाए. ऐसा तेलुगू देशम पार्टी में हो चुका है. रामाराव ने अपनी पत्नी लक्ष्मी पार्वती को अपना उत्तराधिकारी बनाया था.

लेकिन उनके खिलाफ उन्हीं के दामाद चंद्रबाबू नायडू ने विद्रोह करके नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया था. नब्बे का दशक राज्यों की राजनीति का दशक था. क्षेत्रीय शक्तियां इतने सांसद जिता लाती थीं कि उन्हें केंद्र में सत्तारूढ़ हो सकने वाले मोर्चे को प्रभावित कर पाने का मौका मिल जाता था.

भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय राजनीति पर दबदबा कायम रहेगा

लेकिन जब से उत्तर प्रदेश और बिहार की क्षेत्रीय शक्तियों (राजद, सपा, बसपा, जद-यू) ने भाजपा की ताकत के सामने हथियार डाले हैं, तभी से भाजपा को उसके प्रभाव-क्षेत्र में तीन चुनावों से लगातार निर्णायक बढ़त प्राप्त हो रही है. जब तक ये ताकतें अपना चुनावी प्रदर्शन नहीं सुधारेंगी, तब तक भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय राजनीति पर दबदबा कायम रहेगा.

ओडिशा, बंगाल, आंध्र, तमिलनाडु, केरल और पंजाब ने दिखाया है कि वे ‘मोदी डिविडेंड’ में कटौती कर सकते हैं. ‘मोदी डिविडेंड’ का मतलब है लोकसभा में मोदी की शख्सियत के कारण भाजपा के वोटों में हो जाने वाली बढ़ोतरी. छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भाजपा विधानसभा में हार गई थी, लेकिन लोकसभा में उसने ‘मोदी डिविडेंड’ के कारण जबर्दस्त कामयाबी हासिल की. अब अगले लोकसभा चुनाव में एक बार फिर परीक्षा होगी कि ‘मोदी डिविडेंड’ का दबदबा कायम रहेगा, या राज्यों के केंद्र में हस्तक्षेप की वापसी होगी.

Web Title: State governments victims sense of insecurity up mp punjab congress bjp Abhay Kumar Dubey's blog

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे